रांची(RANCHI): लोकसभा चुनाव का परिणाम सामने आने के बाद झारखंड के बड़े नेताओं की कलई खुल गई है. नाम बड़े और दर्शन छोटे जैसा हाल हो गया है. जिनके कंधे पर आदिवासी वोटरों को पार्टी में रुझाने की जिम्मेवारी थी वो फेल गई. एक भी ST रिजर्व सीट पार्टी के खाते में नहीं डाल सके. तो दूसरे ने भी पार्टी की फजीहत कर दी. सात सीट में से दो ही जीतने में कामयाब हो पाए. बाकी जिस सीट पर आलाकमन को ज्यादा उम्मीद थी वहाँ पानी फिर गया. इन दोनों नेता की अब फजीहत होना तय है. हो सकता है दोनों की कुर्सी भी चली जाए.
सबसे पहले भाजपा की बात करें तो लोकसभा चुनाव में भले ही नौ सीट जीतने में कामयाब हो गई. लेकिन सवाल प्रदेश नेतृत्व पर उठने लगा है. केन्द्रीय नेतृत्व झारखंड भाजपा में आदिवसी चेहरे की तलाश लंबे समय से कर रहा था. जिसकी पकड़ आदिवासी वोटरों में हो. जिसे देखते हुए भाजपा आलाकमान ने JVM सुप्रीमो बाबूलाल की पार्टी का विलय भाजपा में कराया.बाद में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेवारी दी गई. जिससे चुनाव में आदिवासी सीट पर भाजपा का दबदबा कायम हो सके. लेकिन परिणाम इसके उलट सामने आया. झारखंड की सभी ST रिजर्व सीट पर भाजपा का हाथ खाली रहा.
अगर बात 2019 के लोकसभा चुनाव की करें. झारखंड में 12 सीट भाजपा के झोली में गई थी. इसमें खूंटी,लोहरदगा,दुमका पर जीत मिली थी बाद में सिंहभूम सीट से सांसद भी भाजपा में शामिल हो गई. लेकिन 2024 के चुनाव में देखे तो दुमका,लोहरदगा,खूंटी ,सिंहभूम सीट पर बड़े अंतर से भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है. आदिवासियों के बीच भाजपा अपना विश्वास जमाने में कामयाब नहीं हो पाई. इसके बाद भाजपा प्रदेश नेतृत्व सवालों के घेरे में आगया है.
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अब बात कांग्रेस की करें तो झारखंड में सात सीट पर चुनावी मैदान में थी. लेकिन दो सीट ही अपने झोली में डालने में सफल होसकी. चतरा, धनबाद, हजारीबाग,रांची और गोड्डा में हार का सामना करना पड़ा है.इस हार में प्रत्याशीयों के चयन में देरी भी बताया जा रहा है. कांग्रेस ने सबसे देरी से अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की थी. इसके अलावा गोड्डा सीट पर पहले महगमा विधायक दीपिका पांडे सिंह को टिकट देकर वापस लेना भी पार्टी को महंगा पड़ा है. गोड्डा सीट पर प्रदीप यादव खुद के विधानसभा सीट से भी बढ़त लेने में कामयाब नहीं हुए है. इसके अलावा चतरा,धनबाद और रांची सीट पर भी प्रदेश नेतृत्व की रणनीति फेल साबित हुई.
प्रदेश नेतृत्व किस तरह से चुनाव की फील्डिंग कर रहा था. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि खुद के बूथ पर भी कांग्रेस को लीड दिलाने में फेल हो गए थे.अगर कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की के इलाके को देखे तो यहाँ कांग्रेस ने बेहतर बढ़त बनाया था. भाजपा के मुकाबले 50 हजार अधिक वोट का मार्जिन लोहरदगा लोकसभा सीट के मांडर में मिली. लेकिन प्रदेश अध्यक्ष के क्षेत्र बोकारो से ही कांग्रेस पिछड़ गई. भाजपा के मुकाबले बोकारो से कांग्रेस को 60 हजार कम वोट मिले.
बहरहाल अब देखना होगा की आखिर इसी साल सूबे में विधानसभा का भी चुनाव है. तो क्या केन्द्रीय नेतृत्व फिर से इन नेताओं पर भरोसा जताने वाली है या फिर नए लोगों पर भरोसा कर मैदान में आएगी. अगर देखे तो कांग्रेस में लंबे समय से प्रदेश नेतृत्व पर सवाल खुद कांग्रेसी नेता उठाते दिखे है. इसके अलावा भाजपा प्रदेश नेतृत्व के खिलाफ कोई खुल कर भले ना बोले. लेकिन अंदर खाने प्रदेश अध्यक्ष के प्रति नाराजगी है.
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