पटना (Patna)- ओबीसी जातियों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आधार वोट माना जाता रहा है, माना जाता है कि गुजरात के सीएम से देश के पीएम तक की इस यात्रा में प्रधानमंत्री मोदी को ओबीसी जातियों का भरपूर सहयोग और प्यार मिला.
हालांकि सच यह भी है कि प्रधानमंत्री मोदी ने कभी भी परंपरागत रुप से सामाजिक न्याय की राजनीति का दावा नहीं किया, इसके उलट उनका पूरा जोर हिन्दुत्ववादी रुक्षान पर ही रहा है, बावजूद इसके देश की बहुसंख्यक पिछड़ी आबादी को उनमें अपना चेहरा दिखता रहा है.
2024 की लड़ाई के लिए तैयार हो रहा है सामाजिक समीकरण
लेकिन क्या जदयू की ओर से अब प्रधानमंत्री मोदी के इस आधार वोट में सेंधमारी करने की तैयारी की जा रही है, इसकी चर्चा इसलिए भी जरुरी है कि जदयू ने अपनी नयी राष्ट्रीय कार्यकारणी में जिन- जिन चेहरों को सामने लाया है, और जिन-जिन चहरों को पीछे किया है, उससे यह संदेश जाता है कि आने वाले 2024 के महासमर में जदयू का पूरा फोकस ओबीसी और दलित जातियों को अपने पाले में करने की है. इसके साथ ही उसकी कोशिश अति पिछड़ी जातियों को भी जदयू को सम्मानित स्थान देने की है.
रामनाथ ठाकुर को आगे कर अतिपिछड़ी जातियों को संदेश देने की कोशिश
रामनाथ ठाकुर, अली अशरफ फातमी, गिरधारी यादव, संतोष कुमार कुशवाहा, रामसेवक सिंह, चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी, दसई चौधरी, गुलाम रसूल बलियावी, आरपी मंडल, विजय कुमार मांझी, भगवान सिंह कुशवाहा, कहकशां परवीन के नामों को आगे किया जाना इसी रणनीति का हिस्सा लगता है.
दोनों ही खेमों का अतिपिछड़ी और दलित जातियों पर जोर
कहा जा सकता है कि बिहार में एनडीए और महागठबंधन खेमा दोनों का ही जोर अति पिछड़ी, पिछड़ी, और दलित जातियों को अपने पाले में करने की है. जदयू और राजद दोनों का ही आधार वोट पिछड़ी, अतिपिछड़ी, दलित और अल्पसंख्यकों को माना जाता है. यही कारण है कि इस सामाजिक आधार को और भी मजबूती प्रदान करने लिए इस वर्ग से ही चेहरों को आगे कर राष्ट्रीय कार्यकारणी में उतारा गया है. संदेश साफ है कि पार्टी यह दिखलाना चाहती है कि जदयू में समाज के सभी वर्गों और सामाजिक समूहों की भागीदारी है. यहां किसी भी वर्ग के साथ नाइंसाफी नहीं होती, शायद यही कारण है कि केसी त्यागी को पीछे कर संजय झा के नाम को आगे किया गया है.
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