रांची-बजट सत्र के अंतिम दिन नियोजन नीति पर अपनी बात रखते हुए सीएम हेमंत ने विपक्ष पर कई सवाल खड़े किये है. विपक्ष को घेरे में लेते हुए उन्होंने कहा कि सरकार से एक ही सवाल पूछ रहा है कि क्या 1932 को लेकर स्टैंड में कोई बदलाव आया है? क्या हम 1932 से पीछे हटने की कोशिश कर रहे हैं? इन सभी सवालों का हमारा एक ही जवाब है, 1932 हमारा था, हमारा है और हमारा रहेगा.
परिस्थतियों के हिसाब से रणनीति में बदलाव
हालांकि मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि कभी-कभी परिस्थतियों के हिसाब से रणनीति में बदलाव करना पड़ता है, कई बार सफलता के लिए आपको दो कदम आगे बढ़ाकर एक कदम पीछे खिंचना पड़ता है, यह युद्ध की रणनीति है.
उन्होंने कहा कि 1932 को लेकर हमारा स्टैंड तो बिल्कूल साफ है, इसमें कोई बदलाव ना आया है ना आने वाला है, लेकिन असली सवाल तो विपक्ष से है, विपक्ष बताये की नियोजन नीति और 1932 पर उसका स्टैंड क्या है. वह 1932 के साथ है या 1985 के साथ, विपक्ष को अपना स्टैंड तो क्लियर करना चाहिए.
सियार शेर की खाल पहन ले तो वह शेर नहीं हो जाता
भाजपा को निशाने पर लेते हुए सीएम हेमंत ने कहा कि सियार शेर की खाल पहन ले तो शेर नहीं हो जाता, वह सियार ही बना रहता है, भाजपा 1932 को लेकर चाहे जितना भी सवाल करे, लेकिन सच्चाई यह है कि 1932 के साथ वह कभी खड़ा नहीं हो सकती. ये तो वही लोग है जो राज्य सरकार की नियोजन नीति को कोर्ट में चुनौती दिया था. 1932 की संवैधानिकता को चुनौती दी था, आज ये लोग 1932 का राग अलाप रहे हैं.
60-40 के सवाल पर सीएम का बयान
हमारी सरकार से पूछा जा रहा है कि 60-40 क्या है? हम इसका भी जवाब देंगे, लेकिन पहले भाजपा यह बताये तो वह किसके साथ है. वह 1932 के साथ है या 1985 के साथ. इसके साथ ही सारी स्थिति स्पष्ट हो जायेगी, आज तो हालत यह है कि झारखंडी युवाओं को अधिकार देने की बात करते ही भाजपा के पेट में दर्द शुरु हो जाती है. हालांकि अपने पूरे भाषण के दौरान सीएम हेमंत ने मीडिया और विपक्ष में चल रहे 60-40 के फार्मूलों को दरकिनार भी नहीं किया, लेकिन इसके साथ ही वह 1932 पर भी अड़े रहें.
दो कदम आगे और एक कदम पीछे हटने की बात क्यों कर रहे हैं हेमंत
सीएम हेमंत के बयानों से यह परिलक्षित होता है कि सरकार फिलहाल कोर्ट के साथ किसी भी विवाद की स्थिति में जाकर नियोजन नीति को बाधित नहीं करना चाहती, उसकी रणनीति है कि किसी भी प्रकार नियुक्ति की प्रक्रिया को शुरु की जाय, ताकि नियुक्ति की वाट जोह रहे युवाओं के सपनों के साथ कुठाराघात नहीं हो सके. यह हेमंत सरकार की पहली प्राथमिकता है.
1932 से पीछ हटना नहीं चाहती हेमंत सरकार
लेकिन इसके साथ ही 1932 की नीति को लागू करना भी सरकार की बड़ी प्राथमिकता है, लेकिन इसके लिए लंबी लड़ाई चलेगी, और तब तक नियुक्ति की प्रक्रिया को बाधित करना उचित प्रतीत नहीं होता, नियुक्ति प्रक्रिया बाधित होने से युवाओं में नाराजगी बढ़ने का भी खतरा है.
60-40 फार्मूला सरकार का तात्कालिक उपचार, 2024 के बाद पूर्ण इलाज
इसलिए बहुत संभव है कि 60-40 फार्मूला सरकार का तात्कालिक उपचार हो, लेकिन हेमंत की नजर 1932 के खतियान बनी हुई है. हां इसकी कार्ययोजना क्या होगी, सरकार इसका खुलासा नहीं कर रही है. बहुत संभव है कि हेमंत की नजर 2024 के लोक सभा चुनाव पर हो, क्योंकि यदि केन्द्र की सरकार में कोई बदलाव आता है, तो हेमंत सरकार के सारे मुद्दे का समाधान करना बेहद आसान होगा, और तब ही सरकार अपने सभी वादों को पूरा करने की स्थिति में होगी, लेकिन तब तक नियुक्ति की प्रक्रिया को बाधित करना राजनीतिक रुप से घातक होगा, यही हेमंत सरकार की दुविधा भी है और रणनीति भी, और यही दो कदम आगे और एक कदम पीछे की रणनीति है.
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