पटना(PATNA)- जिस सम्राट चौधरी को आगे कर भाजपा के केन्दीय नेतृत्व ने पिछड़ी जातियों को साधने की रणनीति बनाई थी, जिसके बुते नीतीश के किले को ध्वस्त करने का सपना संजोया गया था, अब वही सम्राट चौधरी बिहार भाजपा की नयी मुसीबत बनते नजर आने लगे हैं. बिहार भाजपा में गुटबाजी कोई नयी बात नहीं है, हालांकि पीएम मोदी के प्रभामंडल और अमित शाह की चाल के कारण यह गुटबाजी कुछ हद कर छुपा नजर आता है, लेकिन बिहार की राजनीति पर नजर रखने वाले इस गुटबाजी से अनजान नहीं है, आज के दिन बिहार भाजपा कम से कम चार टुकड़ों में विभक्त है और हर गुट दूसरे गुट का पर कतरने की तैयारी में है. टुकड़ों-टुकड़ों में विभाजित बिहार भाजपा के 2025 के विधान सभा चुनाव के लिए चेहरे की घोषणा मुश्किल होता जा रहा है.
मोदी के खिलाफ चेहरा कौन पूछने वाली भाजपा सीएम का चेहरा पर बगल झांकती नजर आती है
यही कारण है कि विपक्ष से दिन रात पीएम मोदी के खिलाफ चेहरा कौन पूछने वाली भाजपा खुद बिहार में सीएम का चेहरा बताने पर बगले झांकते नजर आती है, कोई भी गुट दूसरे गुट को सीएम का चेहरा मानने को तैयार नहीं है और राजनीति की इस तल्ख सच्चाई का भान सम्राट चौधरी को भी होने लगा है, यही कारण है कि जब सम्राट चौधरी से सीएम का चेहरा कौन होगा का सवाल दागा जाता है तो बेहद गोल मटोल जवाब सामने आता है, दाव किया जाता है कि भाजपा के पास चेहरे की कोई कमी नहीं है, एक बुथ लेबल का कार्यकर्ता भी सीएम का चेहरा बन सकता है, लेकिन यही जवाब तो विपक्ष का भी होता है, वह भी यही दुहराता है कि उसके पास नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, शरद पवार, राहुल गांधी से लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे तक अनगिनत चेहरे मौजूद है, समय आने पर किसी भी चेहरे को आगे किया जा सकता है. लेकिन तब भाजपा इसे विपक्ष की कमजोरी बताती है, लेकिन खुद बिहार भाजपा में वह बगले झांकती नजर आती है.
यूपी की कहानी से डरे हुए हैं सम्राट चौधरी
सम्राट चौधरी यूपी की उस कहानी को भी नहीं भूले हैं, जब केशव मौर्य के चेहरे को आगे कर पिछड़ों का वोट लिया गया था, लेकिन बहुमत हासिल होते ही पिछड़ों को धत्ता बता कर एक ठाकुर पर दांव लगाया गया था, क्योंकि भाजपा सवर्ण मतदाताओं को ही अपना कोर वोटर मानती है, जबकि पिछड़ी जातियां उनके लिए सत्ता तक पहुंचने की एक सिढ़ी मात्र है और यही से सम्राट चौधरी की राजनीतिक दुविधा की शुरुआत होती है, वह 2025 के पहले सीएम के चेहरे सवाल पर साफगोई चाहते हैं, लेकिन भाजपा के पुराने धुरंधर इस गैरभाजपाई चेहरे को अपना मानने को तैयार नहीं हैं.
केन्द्रीय नेतृत्व की पसंद सम्राट चौधरी पर पुराने धुरंधरों को एतराज
और यहीं से केन्द्रीय नेतृत्व की पसंद सम्राट चौधरी बिहार भाजपा के लिए नयी मुसीबत बनते नजर आने लगते हैं. चाहे नीतीश कुमार के बेहद भरोसेमंद सुशील मोदी गुट हो या नित्यानंद का गुट या फिर विजय कुमार सिन्हा का गुट कोई भी सम्राट चौधरी को सहज भाव से स्वीकार करने को तैयार नहीं है, किसी को भी सम्राट चौधरी के प्रदेश अध्यक्ष बनने पर आपत्ति नहीं है, लेकिन असली खेल सीएम पद का है. और यही कारण है कि 2025 के विधान सभा चुनाव का चेहरा कौन होगा, भाजपा के अन्दर इसकी मगजमारी का दौर जारी है.
राजनीति में डुबते सुरज को कोई सलाम नहीं करता
हालांकि अभी सब कुछ बेहद शालीन तरीके से लुका छुपी के साथ खेला जा रहा है. लेकिन जैसे ही 2024 का रिजल्ट सामने आयेगा, और यदि भाजपा पीएम मोदी के नेतृत्व में अपना प्रदर्शन को दुहराने में असफल रहती है, तो इस कलह को सार्वजनिक होने में देर नहीं लगेगा, तब तक मोदी का जादू उतर चुकेगा, उनकी विदाई की बेला आ गयी होगी और राजनीति में डुबते सुरज को कोई प्रणाम नहीं करता, यही भाजपा की राजनीतिक संस्कृति भी है, जिसका सबसे ज्लवंत उदाहरण कभी भाजपा के अन्दर लौह पुरुष के रुप में प्रचारित-प्रसारित किये जाते रहे लालकृष्ण आडवाणी है. आज उनकी क्या स्थिति है, किसी से छुपी नहीं है, निश्चित रुप से जादू उतरते ही पीएम मोदी को भी इसी राजनीतिक वनवास का सामना करना पड़ सकता है.
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