Ranchi-जारी सियासी बबंडर और कोहराम के बीच राहुल गांधी की न्याय यात्रा आज पाकुड़ के रास्ते झारखंड में प्रवेश कर गयी, झारखंड की सीमा पर उमड़े इस जनसैलाब को बधाई देते हुए राहुल गांधी ने कहा कि बधाई, आपकी जमीन पर लोकतंत्र बच गया. आपकी मेहनत ने रंग लाया, प्रतिरोध की आवाज मुखर हुई और आखिकार इस लोकतंत्र को जमींदोज करने का मंसूबों पर पानी फिर गया. हालांकि इस जंग में हेमंत सोरेन को अपनी कुर्बानी देनी पड़ी, लेकिन उन्होने तानाशाही के आगे सिर झुकाने के बजाय जेल जाना स्वीकार किया.
अगले आठ दिनों तक झारखंड की जमीन पर रहेंगे राहुल
यहां याद रहे कि राहुल गांधी की यह यात्रा अगले करीबन 8 दिनों तक झारखंड में मौजूद रहेगी. इस बीच 13 जिलों में करीबन आठ सौ किलोमीटर तक यह काफिला गुजरेगा. इस बीच राहुल गांधी यहां की सड़कों पर उमड़ते जनसैलाब में जनभावनाओँ की नब्ज को टटोलने की कोशिश करेंगे. इस बात का आलकन भी करेंगे कि महागठबंधन और इंडिया एलायंस के लिए झारखंड की यह पथरीली जमीन कितनी मुफीद साबित होगी. और 2024 के महासंग्राम में झारखंड की मुख्य चुनौतियां क्या होगी और उसके समाधान क्या होंगे.
2024 की चुनौतियां और हेमंत कारागृह में
बड़ा सवाल यह है कि आने वाली चुनौतियां पहाड़ सी है, लेकिन इन चुनौतियों का मुकाबले करने के लिए आज महागठबंधन का सबसे मजबूत चेहरा हेमंत सोरेन नहीं है, अभी हेमंत सोरेन को एक लम्बी कानूनी लड़ाई का सामना करना पड़ सकता है. और यदि इसी कानूनी लड़ाई के बीच 2024 की लड़ाई भी पार हो जाय, तो आश्यर्च नहीं होगा. हालांकि उन्हे फंदे से बाहर निकालने के प्रयास तेज हो चुके हैं, लेकिन यह इतना आसान नहीं है, रिहाई के सामने कई कानूनी चुनौतियां है, और खड़ी की जायेगी, तो इस हालात में हेमंत की इस कमी को कैसे दूर किया जाय, और किया भी जा सकता है या नहीं, एक बड़ा सवाल है. और शायद यही चिंता राहुल गांधी को खाये जा रही होगी, लेकिन यहां सवाल यह दर्द महसूस करने का नहीं, बल्कि उसका समाधान ढूंढ़ने की है. यही झारखंड की जमीन पर राहुल गांधी की मुख्य चुनौती है, क्योंकि यदि इसी प्रकार एक-एक कर वह इंडिया गठबंधन के सारे सिपहसलारों को खोते जायेंगे तो आखिर जंग में मुकाबला कौन करेगा. यही तो वह मुख्य डर है कि कई लोगों की निष्ठा बदलती नजर आ रही है, आज हर किसी को पत्ता है कि दिल्ली की सल्तनत के विरोध का अंतिम अंजाम क्या होगा, क्या नीतीश कुमार की पांचवी पलटी के पीछे सिर्फ संयोजक पद की लालसा थी, या फिर उस अंजाम का भी डर था, जिस अंजाम तक आज हेमंत पहुंचाये जा चुके हैं. देखना होगा कि इन आठ दिनों में करीबन आठ सौ किलोमीटर की दूरी माप कर राहुल गांधी इसका क्या समाधान निकालते हैं, बहुत संभव है कि इस बीच उनकी मुलाकात कल्पना सोरेन से भी होगी और झामुमो के दूसरे नेताओं से भी, सबका फीड बैक उनके सामने होगा.
भीड़ को बूथ तक ले जाने की चुनौती
हालांकि जिस उत्साह जनक तरीके से झारखंड की जमीन पर राहुल का स्वागत हुआ है, वह कांग्रेस सहित पूरे इंडिया गठबंधन के लिए एक शुभ संकेत जरुर हो सकता है, लेकिन इस उत्साह को मतदान केन्द्रों तक पहुंचाना इतना आसान नहीं है. अब देखना होगा कि राहुल गांधी अपनी यात्रा से झारखंड कैसा सियासी तूफान खड़ा कर पाते हैं, लेकिन इतना साफ है वह इसकी कोशिश जरुर करेंगे, यहां यह भी याद रखने की जरुरत है कि इस न्याय यात्रा में झारखंड पहला ऐसा राज्य है, जहां की सत्ताधारी पार्टी भी उसका हिस्सा बनेगी, उसके तमाम नेताओँ की भी इस यात्रा में मौजदूगी होगी. खुद नव निर्वाचित सीएम चंपई ने भी राहुल गांधी की यात्रा में शामिल होने का एलान कर दिया है.
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