Patna-2024 के महाजंग से सीएम नीतीश कुमार का जातीय जनगणना का “मास्टर स्ट्रोक” में भाजपा बूरी तरह उलझती नजर आने लगी है, बिहार से बाहर निकल कर अब जातीय जनगणना की यह गूंज दूसरे राज्यों में भी सुनायी पड़ने लगी है. राज्य दर राज्य इसकी मांग तेज हो रही है. और इस हालत में भाजपा के लिए इससे पीछा छुड़ाना मुश्किल होता नजर आने लगा है. दरअसल पीएम मोदी के राजनीति उभार में जिस पिछड़ी जाति को सबसे मजबूत स्तम्भ माना जाता था, नीतीश के इस मास्टर कार्ड के बाद वह किला ही एकबारगी ढहता नजर आने लगा है. भाजपा की सियासी संकट को इससे भी समझा जा सकता है कि एक तरफ अपने बिहार दौरे पर केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह नीतीश सरकार पर यादवों की आबादी को बढ़ा चढ़ा कर दिखलाने का आरोप लगाते हैं, और यह दावा कर जाते हैं कि नीतीश कुमार ने एक सियासी साजिश के तहत यादवों की आबादी को बढ़ा चढ़ा कर दिखलाया है, वहीं बिहार भाजपा इससे ठीक उलट यादव पट्टी में पहली बार यादव सम्मेलन की तैयारी कर यादवों के बीच अपनी फुट प्रिंट तैयार करने की कोशिश कर रही है.
14 नवम्बर को बापू सभागार में होगा भाजपा का यादव सम्मेलन
दरअसल केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय की अगुआई में भाजपा ने 14 नवंबर को पटना के बापू सभागार में यादव सम्मेलन करने का फैसला किया है. दावा किया जा रहा है कि इस अवसर पर यादव जाति से आने वाले पूर्व एमएलए, एमएलए प्रत्याशी, जिला परिषद सदस्य, मुखिया प्रतिनिधियों के द्वारा करीबन एक लाख यादवों के द्वारा भाजपा की सदस्यता ग्रहण की जायेगी.
अब तक भाजपा गैर यादव और गैर जाटव का सियासी चाल चलती रही है
यहां ध्यान रहे कि अबतक भाजपा की पूरी राजनीति गैर यादव और गैर जाटवों को एकत्रित करने की रही है, भाजपा का आरोप है कि पिछड़ी जातियों और दलितों को दिया जाना वाला पूरा आरक्षण यादव और जाटवों के द्वारा ही हजम कर लिया जाता है, जिसके कारण दूसरी पिछड़ी जातियों और दलितों को इसका लाभ नहीं मिल पाता और इसी सियासी चाल के तहत वह अब तक दूसरी पिछड़ी जातियों का वोट लेते रही थी. लेकिन जातीय जनगणना के आंकड़ों का प्रकाशन के बाद जब उसका सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण सामने आया तो यह बात सामने आ गयी कि सरकारी नौकरियों में भी यादवों की आबादी नगण्य या उनकी आबादी के अनुपात के अनुरुप नहीं है. इस प्रकार भाजपा का यह आरोप पूरी तरह से फ्लौप साबित हो गया.
तीन दशकों से यादव जाति के मतदाताओं पर कायम है लालू मुलायम परिवार का जलबा
यहां यह भी याद रहे कि यादव कभी भी भाजपा का कोर वोटर नहीं रहा, और पिछले करीबन तीन दशकों से इस जाति के मतदाताओं पर मुलायम सिंह यादव और लालू परिवार का जलबा कायम रहा है. इस हालत में भाजपा की यह सियासी चाल कितनी रंग लायेगी, वह सवालों के घेरे में है, और खास कर तब जब खुद भाजपा यह तय नहीं कर पा रही है कि उसे यादवों को साथ लेना है, या उसके खिलाफ दूसरी पिछड़ी जातियों की गोलबंदी तैयार कर सत्ता की सवारी करनी है. लेकिन मुश्किल यह है कि बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़ों का प्रकाशन और पिछड़ी जातियों के आरक्षण में विस्तार के बाद सियासत का रंग पूरी तरह से बदल चुका है, और भाजपा के सामने असली चुनौती इस सियासी रंग के सामने अपना पैर जमाये रखने की है. क्योंकि जैसे ही यह संदेश जायेगा कि भाजपा जातीय जनगणना के विरोध में है, पिछड़ी जातियों की जो जमात आज उसके साथ खड़ी है, उसे भी अपने साथ बनाये रखना मुश्किल हो सकता है.
जातीय जनगणना को महापाप बता चुके हैं पीएम मोदी
यहां ध्यान रहे कि पीएम मोदी पहले ही जातीय जनगणना की मांग को महापाप बता चुके हैं. उनका दावा है कि गरीबों की कोई जाति नहीं होती, और जातीय जनगणना की यह मांग दरअसल बृहतर हिन्दू समुदाय को श्रेणियों में विभाजित करने की एक गहरी साजिश है. हालांकि यह दावा करते वह यह भूल जाते हैं कि वह खुद ही अपने आप को पिछड़ा का बेटा बताते रहे हैं.और इसी आधार पर वोट भी मांगते रहे हैं. अब यदि यही ओबीसी समाज अपने लिए जनगणना की मांग कर रहा है तो यह महापाप कैसे हो गया. अब देखना होगा कि एक तरफ पीएम मोदी का महापाप का दावा और अमित शाह का यादवों की आबादी को बढ़ाचढ़ कर दिखलाने का नीतीश सरकार पर आरोप और अब इस यादव सम्मेलन से भाजपा को हासिल क्या होता है.
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