हेमंत राज में अपने अधिकारों के लिए जद्दोजहद कर रही महिलाएं, समझिए कैसे


गोड्डा (GODDA): झारखंड की जनता ने पिछली सरकार की कार्यशैली से सत्ता बदलने का मन बनाया और हेमंत सोरेन की नेतृत्व वाली गठबंधन को सर आंखों पर बैठाते हुए सत्ता दिलवाई. इसमें महिलाओं ने अहम भूमिका निभायी. मगर बीते ढाई सालों में हेमंत सोरेन के कार्यकाल में महिलाओं को जितना सम्मान मिलना चाहिए था वो कहीं न कहीं जिले में पदस्थापित पदाधिकारियों की कार्यशैली से नहीं मिल पाया है.
गोड्डा में ही दो दिनों में दो तस्वीरें आई सामने
गोड्डा जिले में ही दो दिनों में दो तस्वीरें सामने आई है जो ये दर्शाता है कि महिलाओं के प्रति अधिकारियों का रवैया कैसा है. पहली तस्वीर 20 सितम्बर को सामने आई जब हेमंत के ही विधानसभा सुन्दर पहाड़ी से सैकड़ों की संख्या में आदिवासी महिलाएं अपने अधिकारी के बुलावे पर ही समाहरणालय के समक्ष सुबह से लेकर देर रात तक बैठी रही. इन महिलाओं में कुछ ऐसी भी थीं जिनके गोद में दुधमुंहे बच्चे भी थे. उस दिन सभी अधिकारी मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में बोआरीजोर में थे. मगर शाम को जब सुन्दर पहाड़ी के सीओ सह MO उन महिलाओं से मिलने पहुंचे तो महिलाओं ने कुछ नाश्ते देने का आग्रह किया कि वो भूखे हैं तो उन्होंने जरा सा भी इंसानियत नहीं दिखाई और उन्हें वहां से भूखे प्यासे बैरंग भेज दिया.

मेहनताना के लिए भटक रही महिलाएं
वहीं दूसरी तस्वीर 21 सितंबर को आई जिसमें महिलायें फूलो झानो आजीविका मंडल से जुड़ी हुई कार्यालय के समक्ष अपने कमाए हुए मानदेय को लेकर सड़कों पर दिन भर बैठी रहीं. जिन्होंने सरकार के ही निर्देश पर वर्ष 2018 -19 में शिक्षा विभाग से जिले के सभी विद्यालयों के स्कूली बच्चों के यूनिफार्म बनवाये थे. मगर आज दो वर्षों से अपने मेहनताना के लिए भटक रही हैं. इनके कमाए हुए पैसे लगभग एक करोड़ 43 लाख रूपये बकाया जिलाधिकारी द्वारा लटका कर रखा गया है. ये महिलायें जिला से लेकर राज्य के सचिव तक का चक्कर लगा चुकी हैं मगर नतीजा शिफर ही रहा.
पोषण सखियों को निकाला गया, तो जल सहिया पर भी लटक रही तलवार
पिछली सरकार में जिन पोषण सखी और जल सहिया के तहत हजारों महिलाओं को काम दिया था. ये अलग बात है उन्हें अल्प मानदेय पर ही रखा गया था, वैसी हजारों पोषण सखियों को बैठा दिया गया तो जल सहियाओं पर भी तलवार लटकाकर रखा गया है. इसके अलावे दस जिलों हजारीबाग, गढ़वा, पलामू, रामगढ़, धनबाद, कोडरमा, गिरिडीह, बोकारो, देवघर, गोड्डा में समाज कल्याण विभाग में स्वीकृत पदों पर महिला पर्यवेक्षिकाओं को वर्ष 2005 से रखा गया था. उच्चतम न्यायालय के अनुसार दस वर्षों से अधिक सेवा देने वाले अनुबंध कर्मियों को स्थायी करने के आदेश के बावजूद इनका वजूद खतरे में हैं. क्यों,सिर्फ अधिकारियों से लेकर पदाधिकारियों की वजह से. इसलिए जरुरत है हेमंत सोरेन को अपने विभागीय अधिकारियों,जिलाधिकारियों और सचिव स्तरीय अधिकारियों के कार्यशैलियों को सुधार करवाने की, ताकि जिन महिलाओं ने आपको सत्ता परिवर्तन में मदद की कहीं वही आपके लिए नुकसानदेह न साबित हो जाएं.
रिपोर्ट: अजीत सिंह, गोड्डा
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