दुमका (DUMKA): भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस मानी जाती है. जिसकी स्थापना 28 दिसंबर 1885 को हुई थी. देश के स्वतंत्रता संग्राम में कांग्रेस पार्टी ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया. 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ. अंतरिम सरकार के गठन से लेकर स्वतंत्र भारत में 1952 में सम्पन्न हुई. पहली लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने पूरे देश में जीत का परचम लहराया. 1952 से 1999 तक कुछ वर्षों को छोड़ दें तो देश में कांग्रेस ने शासन किया. भाजपा के फील गुड को दरकिनार कर 2004 से 2014 तक देश की बागडोर कांग्रेस के हाथों में रहा. लेकिन उसके बाद भाजपा के मोदी लहर में कांग्रेस इस कदर उड़ा कि आज अपनी वजूद की लड़ाई लड़ रही है.
कभी भी हो सकता है लोकसभा चुनाव का एलान
वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव की घोषणा कभी भी हो सकती है. चुनाव के मैदान में तमाम राजनीतिक दल पूरी दमखम के साथ उतरने को बेताब दिख रही है. झारखंड की बात करें तो यहां लोकसभा के कुल 14 सीट है. वर्ष 2019 के चुनाव में कंग्रेस के टिकट पर गीता कोड़ा को सफलता मिली थी. लेकिन कुछ दिन पूर्व गीता कोड़ा ने पंजा का दामन छोड़ कमल की सवारी कर ली.
आखिर संथाल समाज ने क्यों बनाई कांग्रेस से दूरी
बता दें कि झारखंड की उपराजधानी दुमका में कभी कांग्रेस का डंका बजता था. आदिवासी मतदाताओं का रुझान कांग्रेस पार्टी की ओर था. 1952 कि लोकसभा चुनाव में दुमका लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर पॉल जुझार सोरेन चुनाव जीत कर सांसद बने थे. कमोबेश 1984 के चुनाव तक यहां कांग्रेस का दबदबा रहा, लेकिन 80 के दशक में झामुमो के प्रादुर्भाव और दिसोम गुरु शीबू सोरेन का आदिवासी मतदाताओं पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि आज कांग्रेस आदिवासी मतदाताओं के बीच विलुप्तप्राय हो चुकी है.लेकिन वर्तमान समय कि बात करे तो झारखंड में झामुमो, कांग्रेस और राजद मिलकर सरकार चला रही है. अभी तक के समीकरण को देखें तो यह कहा जा सकता है कि इंडिया गठबंधन के तहत ही कांग्रेस चुनाव लड़ेगी. सीट शेयरिंग का फार्मूला घोषित नहीं हुआ है. संथाल परगना के 3 सीट में से एक सीट गोड्डा पर पार्टी दावा करती नजर आ रही है. सुरक्षित सीट दुमका और राजमहल से चुनाव लड़ने के लिए शायद ही कोई बड़ा चेहरा कांग्रेस के पास हो.
संथाल की सुरक्षित सीट पर भी नहीं है कांग्रेस के विधायक
संथाल परगना प्रमंडल में विधान सभा के कुल 18 सीट है. इसमें से 7 सीट एसटी और 1 सीट एससी के लिए आरक्षित है. वर्ष 2019 के चुनाव परिणाम को देखें तो 18 में से एसटी के लिए सुरक्षित सभी 7 सीट पर झामुमो का कब्जा है. बीजेपी 4 और कांग्रेस के पास 5 सीट है. जिन 5 सीट पर कांग्रेस का कब्जा है उसमें से एक भी विधायक संथाल समुदाय से नहीं है. तो क्या माना जाए कि कांग्रेस की पकड़ संथाल समाज पर नहीं है?
शिबू सोरेन का उदय के साथ शुरू हुआ कांग्रेस का पतन
एक समय था जब संथाल समाज पर कांग्रेस का दबदबा था. दुमका लोक सभा चुनाव परिणाम को देखें तो 1952 में पाल जुझार सोरेन कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने थे. 1962, 1967 और 1971 में कांग्रेस के टिकट पर सत्य चंद्र बेसरा ने जीत की हैट्रिक लगाई. 1980 में शीबू सोरेन पहली बार दुमका के सांसद बने. उसने कांग्रेस पृथ्वी चंद्र किस्कू को 3513 मतों से पराजित किया. 1984 में एक बार फिर कांग्रेस प्रत्यासी पृथ्वी चंद्र किस्कू की जीत हुई. उसके बाद धीरे धीरे कांग्रेस का अस्त और बीजेपी का उदय हुआ. 1989 से 2019 तक का चुनाव परिणाम झामुमो और भाजपा के इर्द गिर्द घूमती रही. आलम यह है कि आज के समय में गठबंधन के तहत कांग्रेस इस सीट पर दावा भी नहीं करती.
कांग्रेस को करना चाहिए मंथन
सवाल उठना लाजमी है कि आखिर क्या वजह रही कि देश की सबसे पुरानी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जिसकी तूती देश के साथ साथ दुमका में भी बोलती थी. आज इस क्षेत्र में विलुप्ति के कगार पर क्यों पहुच गया. मंथन तो पार्टी को करना होगा कि आखिर संथाल समाज कांग्रेस से दूर क्यों होते गए? उसे पास लाने का क्या प्रयास किया गया?
दिलचस्प होगी दुमका की जंग
जो भी हो इतना जरूर है कि गठबंधन के तहत सीट शेयरिंग का पेंच संथाल परगना के तीनों सीट पर नहीं फंसेगा. एक सीट कांग्रेस तो दो सीट झामुमो की झोली में जायेगा. किस सीट पर किसकी जीत होगी यह तो चुनाव परिणाम ही बताएगा.
रिपोर्ट. पंचम झा
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