बिहार के पूर्व सीएम लालू प्रसाद की गंवई अंदाज की वह कुर्ता फाड़ होली में क्या होता था स्पेशल,पढ़िए विस्तार से

धनबाद(DHANBAD): होली का त्योहार राजनेताओं के लिए भी बहुत खास होता है. अपने समर्थकों को एकजुट रखने का यह एक अवसर भी होता और अपनी ताकत दिखाने का मौका भी. वैसे तो राजनीतिक दल के नेता होली मिलन के बहाने समर्थकों तक पहुंचने की कोशिश करते हैं. लेकिन होली के दिन की अगर चर्चा की जाए तो लालू प्रसाद यादव की बात जरूरी हो जाती है. कहा तो यह भी जा सकता है कि अगर बिहार, झारखंड के किसी भी राजनेता को याद किया जाएगा, तो उसमें लालू प्रसाद यादव का नाम सबसे ऊपर रहेगा. वैसे तो अब स्वास्थ्य लालू प्रसाद यादव का साथ नहीं दे रहा है .लेकिन उनकी "कुर्ता फाड़" होली जिसने भी देखी या सुनी होगी. उनके मानस पटल पर आज भी" कुर्ता फाड़" होली निश्चित रूप से ताजा होगी. रंगों से सराबोर और सिर पर रंग बिरंगी टोपी, फटे कपड़े लालू प्रसाद यादव के "कुर्ता फाड़" होली की पहचान थी .इसी अंदाज में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का हुलिया होली के दिन देखने को मिलता था.
मुख्यमंत्री आवास की कुर्ता फाड़ होली आज भी याद करते हैं लोग
1990 में लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री बने. उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद होली के दिन मुख्यमंत्री आवास का गेट आम लोगों के लिए खुल जाता था. कहा तो यह भी जाता है कि लालू प्रसाद के मुख्यमंत्री बनते ही बिहार में होली का अलग रूप देखने को मिलने लगा. मुख्यमंत्री आवास में कुर्ता फाड़ होली होने लगी. बिहार के मुख्यमंत्री आवास में यह सिलसिला लालू यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री काल में भी देखने को मिलता रहा. लालू प्रसाद की होली हमेशा चर्चित होती थी. उनके साथ होली मनाए धनबाद के लोग बताते हैं कि इसकी तैयारी पहले से शुरू कर दी जाती थी . इसकी जिम्मेदारी उस समय रामकृपाल यादव, श्याम रजक और अनवर अली के पास होती थी .लालू प्रसाद यादव समर्थकों के बीच इस होली का पूरा आनंद उठाते थे. होली के दिन सब कुछ भूल कर कुर्ता फाड़ होली खेलते थे. दूसरे को भी रंगों में से सराबोर कर देते थे. इस दिन आम और खास सबका कुर्ता फटा मिलता था.
मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहते हुए भी वह अपने समर्थकों से खुद का कुर्ता फड़वाने में कोई परहेज नहीं करते थे. लोग बताते हैं कि लालू प्रसाद की नजर वैसे लोगों पर उस समय होती, जिनके कुर्ते नहीं फटे होते. फिर क्या , देखते-देखते कुर्ता फाड़ने के लिए लोगों को ललकार देते. लालू प्रसाद की होली में ग्रामीण परिवेश का अंदाज देखने को मिलता था. विशेष बात यह होती कि कब किसका कुर्ता फट गया, किसी को जानकारी नहीं होती. होली के दिन आम और खास का फर्क मिट जाता था. बड़ा कार्यकर्ता हो अथवा छोटा, होली के दिन सब मिट जाता था. सभी लालू प्रसाद के होली के हुड़दंग में रंग जाते थे. कुर्ता फाड़ होली के बाद फिर फाग का राग छेड़ा जाता था. लालू प्रसाद खुद झाल और ढोल लेकर बैठ जाते थे. सबके बीच बैठकर होली के गीत गाते थे .लालू प्रसाद की होली के इसी अंदाज ने कार्यकर्ताओं के बीच एक अलग पहचान दी. कार्यकर्ता उनके साथ जुड़ते गए. फिलहाल लालू प्रसाद का स्वास्थ्य साथ नहीं दे रहा है. इस वजह से यह "कुर्ता फाड़" होली लोगों को देखने को नहीं मिलती.
रिपोर्ट: धनबाद ब्यूरो
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