रांची(RANCHI): झारखंड में इन दिनों ईडी और सीएम हेमंत सोरेन ही चारों ओर छाए हुए हैं. ईडी की ओर से सीएम हेमंत सोरेन को समन भेजा गया है. इसी ने ठंड के मौसम में राज्य के सियासत तापमान को गर्म कर दिया है. मगर, आज जो नजारा देखा गया उसे देश के लोकतंत्र के लिए कहीं से सही नहीं ठहराया जा सकता. आज एक ओर ईडी कार्यालय में ईडी अधिकारियों की सुरक्षा के लिए सुरक्षाबलों की तैनाती की गई तो वहीं दूसरी ओर राज्य के सीएम ने जांच एजेंसी के विरुद्ध ही मोर्चा खोल दिया.
सीएम हेमंत सोरेन ने जिस तरह से आज ईडी को चुनौती दी. ये एक बड़ा सवाल खड़ा करता है. ये सवाल है देश को चलाने वाले संविधान की सुरक्षा का. ये सवाल है लोकतंत्र का. ये सवाल है जांच एजेंसियों पर भरोसे का. ये सवाल है अपराधियों को सजा दिलाने का. ये सवाल है जनता के लिए काम करने वाली सरकार का.
देश में शायद ये पहला मौका
देश में शायद ये पहला मौका होगा जब सरकार और जांच एजेंसी आमने-सामने आ गई है. सीएम हेमंत सोरेन ने आज सीएम आवास से झामुमो कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए ईडी को खुली चुनौती दे दी कि ये समन क्यों भेजा जा रहा है, अगर वे गुनाहगार हैं तो उन्हें सीधे गिरफ्तार करें. मगर, यहां बात गिरफ्तारी या समन का नहीं है. बात है अपराध का. देश में या देश के किसी राज्य में कहीं भी कोई अपराध होता है, चाहे वो अपराध साधारण हो, या खास हो, उसके खिलाफ जांच एजेंसी कार्रवाई करती है. राज्य में राज्य की एजेंसियां काम करती हैं तो देश में केन्द्रीय एजेंसियां काम करती हैं. काम सभी का एक ही होता है, दोषियों और अपराधियों का पता लगाना और उन्हें सजा दिलाना. लेकिन, अगर ऐसे ही किसी राज्य की सरकार किसी जांच एजेंसी के विरुद्ध मोर्चा खोल दे तो ये बड़ा सवाल है. क्योंकि देश में संविधान है. इस संविधान के तहत केंद्र और राज्य को अलग-अलग शक्तियां प्रदान हैं. जांच एजेंसी हैं, उनके अपने अधिकार हैं. लेकिन किसी भी स्थिति में इनके बीच शक्तियों और अधिकार का टकराव देश के लिए नुकसानदायक है. अभी राज्य सरकार केन्द्रीय एजेंसी के विरुद्ध मोर्चा खोल रही है. कल दूसरी राज्य सरकार मोर्चा खोलेगी. फिर राज्य के अंदर ही अलग-अलग शक्तियां राज्य की एजेंसियां के विरुद्ध मोर्चा खोल देगी, ऐसे में इससे लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा.
अभी के हालात को एक साधारण से उदाहरण से समझते हैं
मान लेते हैं कि अभी सीएम हेमंत सोरेन की जगह पर किसी पंचायत का मुखिया है. और ईडी की जगह मुखिया के खिलाफ पुलिस जांच करती है. तो अगर मुखिया अपने समर्थकों के साथ पुलिस थाने को घेरने पहुंच जाए तो उस समय की स्थिति का अंदाजा लगाइए. पुलिस अपना काम नहीं कर पाएगी. शक्तियों के इस टकराव में दोनों पक्षों को नुकसान होने की प्रबल आशंका है. पुलिस ऐसे में जांच नहीं कर पाएगी और जो दोषी हैं, और गुनाहगार हैं, वे बच जाएंगे. अगर अपराधी को उसके अपराध की सजा नहीं मिले, ये भी एक बेहतर समाज और देश के लिए सही नहीं है. यही स्थिति है झारखंड में है. सीएम हेमंत सोरेन दोषी हैं या नहीं ये जांच की बात है, एजेंसी वही काम कर रही है, लेकिन इसे लेकर ही पूरा विवाद है.
जांच एजेंसियों की कार्यशैली और विश्वसनीयता पर सवाल क्यों?
राज्य सरकार और जांच एजेंसियों के बीच इस टकराव और विवाद के पीछे सिर्फ राज्य सरकार ही दोषी नहीं है. क्योंकि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. एक तो आपने समझ लिया अब दूसरे पहलू को समझते हैं. पिछले कुछ समय से ईडी और सीबीआई जैसी केन्द्रीय एजेंसियां लगातार देश भर में कार्रवाई कर रही हैं. देश में कई नेताओं और कारोबारियों के विरुद्ध इन एजेंसियों ने छापामारी की है. मगर, इन एजेंसियों के द्वारा सबसे ज्यादा कार्रवाई उन्हीं राज्यों में देखने मिलती हैं, जिन राज्यों में चुनाव होने को है, या सरकार अस्थिर करना हो. महाराष्ट्र, बंगाल, बिहार और झारखंड इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.
विपक्षी पार्टियां इसीलिए इन एजेंसियों को केंद्र सरकार की कठपुतली बताती हैं. केंद्र में बीजेपी की सरकार है. मगर, पिछले कुछ सालों में जितने भी नेताओं के खिलाफ ईडी या सीबीआई ने छापेमारी या कार्रवाई की है, उनमें शायद ही किसी बीजेपी नेता के विरुद्ध कोई कार्रवाई हुई है. इसी कारण विपक्षी पार्टियां इन एजेंसियों के खिलाफ और केंद्र सरकार पर हमलावर हैं. विपक्षी पार्टियों का कहना है कि क्या बीजेपी के सभी नेता संत हैं, उनमें से किसी के खिलाफ ये एजेंसियां कोई कार्रवाई क्यों नहीं करती. उनका आरोप है कि केंद्र सरकार अपने राजनीतिक फायदे के लिए इन एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है. और इन एजेंसियों का उपयोग केंद्र सरकार विपक्षी नेताओं को डराने और ब्लैकमेल के लिए कर रही है. ऐसे में विपक्षी पार्टियों का विश्वास इन एजेंसियों से उठता जा रहा है.
जनता किस पर करे भरोसा?
चाहे वो सीएम हेमंत सोरेन की ईडी को खुली चुनौती हो, या ईडी जैसी एजेंसियों की कार्यशैली, दोनों के बीच इस विवाद और टकराव से नुकसान भारतीय सविंधान और लोकतंत्र का हो रहा है. जब एक शक्ति को दूसरे शक्ति और उसके अधिकारों पर भरोसा ही नहीं होगा, तो लोकतंत्र की कल्पना भी करना मुश्किल है. दुनिया में ऐसे कई उदाहरण है, जहां पर जब जनता, सरकारी तंत्र और सरकार के बीच टकराव उत्पन्न हुआ तो उस देश को जनता के भारी आक्रोश का सामना करना पड़ा, फिर वैसे देश विकास से कोसों दूर चले गए. इसलिए सरकारी तंत्र और सरकार पर लोगों का भरोसा होना बहुत जरूरी है. मगर, झारखंड की स्थिति ऐसी है कि यहां सरकार को सरकारी तंत्र पर ही भरोसा नहीं है. ऐसे में जनता संकोच में हैं कि वह किस पर भरोसा करे. जबकि एक स्वस्थ लोकतंत्र में जनता को दोनों ही शक्तियों पर भरोसा करने की आवश्यकता है. ऐसे में इन दोनों ही तंत्रों को एक-दूसरे पर भरोसा करने की जरूरत है और एक दूसरे के कामों में सहयोग करने की आश्यकता है.
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