नई दिल्ली (NEW DELHI): देश में हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में पक्ष-विपक्ष आमने सामने हुए. एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप भी लगाए गए. चुनाव के दौरान विपक्ष ने ये भी कहा कि देश में लोकतंत्र अब सुरक्षित नहीं है. लेकिन विपक्ष के इस तंज पर प्यू (Pew) रिसर्च सेंटर की आयी एक रिपोर्ट भारी पड़ गई है.
अमेरिकी थिंक टैंक ने कराया सर्वे
दरअसल, अमेरिकी थिंक टैंक ने दुनिया के 31 बड़े देशों में यह पता लगाने के लिए सर्वे किया है कि वहां के लोग लोकतांत्रिक व्यवस्था से खुश हैं या नहीं. इस सर्वे में भारत भी शामिल है. दिलचस्प बात ये है कि जिन देशों में भारत के लोकतंत्र पर सवाल उठाए जाते हैं, वहां लोग ज्यादा नाखुश हैं. अगर रिपोर्ट की बात की जाए तो अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में आधी से ज्यादा आबादी अपने लोकतंत्र से खुश नहीं है. वहीं ताकतवर देश कहे जाने वाले अमेरिका में सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक यहां की आधी से ज्यादा आबादी अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था से नाखुश है. वहां की लोकतांत्रिक व्यवस्था से सिर्फ 31 फीसदी लोग खुश हैं. कनाडा में भी हालात बेहद खराब हैं. वहां सिर्फ 52 फीसदी लोग ही लोकतंत्र से खुश हैं. मेक्सिको की आधी आबादी भी नाखुश है.
चलिए भारत की बात करते हैं
बात की जाए भारत की तो भारत एशिया के साथ-साथ पूरे विश्व में दूसरे स्थान पर है. इस सर्वे रिपोर्ट में भारत से आगे केवल एक देश सिंगापुर है. जनसंख्या के हिसाब से देखा जाए तो भारत का मुकाबला कोई नहीं कर सकता. विश्व की सबसे बड़ी लोकतंत्रिकता में, 77 प्रतिशत लोगों ने लोकतांत्रिक प्रणाली के माध्यम से संतुष्टि व्यक्त की. इस लिस्ट में सिंगापुर सबसे ऊपर है, जहां भारत से थोड़े ही अधिक यानी 80 प्रतिशत लोग अपने देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था से खुश हैं. थाईलैंड में 64 फीसदी, मलेशिया में 51 फीसदी लोग अपने देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था से खुश हैं.
3 साल के अंदर नाखुश लोगों की संख्या में बढ़ोतरी
इस सर्वे के मुताबिक पिछले कुछ सालों में ताकतवर और विकसित देशों की हालत काफी खराब हुई है. वहीं अगर बात करें कनाडा की तो वर्ष 2021 में कनाडा की 66 फीसदी आबादी लोकतांत्रिक व्यवस्था से खुश थी, लेकिन 3 साल के भीतर 14 फीसदी की गिरावट आई है. ब्रिटेन में इसी अवधि में जहां पहले 60 फीसदी लोग संतुष्ट थे, वहीं अब यह घटकर 39 फीसदी रह गया है. वहीं ताकतवर देश अमेरिका में 41 फीसदी लोग अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था से खुश थे, लेकिन 2024 में यह संख्या घटकर 30 रह गई. यह कोरोना के बाद का दौर है जहां कई देश कई मुद्दों पर संघर्ष करते नजर आ रहे हैं.
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