टीएनपी डेस्क(TNP DESK): साहेबगंज में पहाड़िया जनजाति की महिला रुबिका की दर्दनाक हत्या के मामले ने सभी को अचंभित कर रखा है. पहाड़िया रुबिका की हत्या कर इसके शव के लगभग 25 से भी ज्यादा टुकड़े किए गए हैं. हत्या का आरोप मृतका के पति दिलदार अंसारी पर लगा है. दोनों की शादी को महज 10 दिन ही हुए थे.
पहाड़िया जनजाति की है मृतिका रुबिका
मृतका रुबिका पहाड़िया जनजाति की है. पहाड़िया झारखंड की उन विशेष जनजाति में शामिल है, जिनका सरकार विशेष ध्यान रखती है. इनकी भाषा, बोली और रहन-सहन सभी अलग होते हैं. ये बाहरी लोगों से ज्यादा खुलते भी नहीं हैं. लगातार प्रशासन इन पर ध्यान देती रहती है, क्योंकि ये एक बता दें कि आरोपी पति अल्पसंख्यक समुदाय का है और मृतिका पत्नी पहाड़िया जनजाति की है. पहाड़िया झारखंड की उन विशेष जनजाति में शामिल है, जिनका सरकार विशेष ध्यान रखती है. इनकी भाषा, बोली और रहन-सहन सभी अलग होते हैं. ये बाहरी लोगों से ज्यादा खुलते भी नहीं हैं. लगातार प्रशासन इन पर ध्यान देती रहती है, क्योंकि ये एक ऐसी जनजाति है, जो कहीं कहीं ही वास करती है. ऐसे में झारखंड में रहने वाली पहाड़िया जनजाति के प्रत्येक लोगों का डेटा सरकार और प्रशासन के पास होता है.
ऐसे में बड़ा सवाल लगातार प्रशासन और सरकार पर उठा रहा है कि महिला की हत्या कैसे कर दी गई और प्रशासन को इसकी सुध भी नहीं लगी. क्या प्रशासन अपना काम सही से नहीं कर रहा था? ऐसे कई सवाल उठ रहे हैं. महिला पहाड़िया जनजाति की है. ये जनजाति PVTG यानी कि पार्टिकुलरी वल्नुरेबल ट्राइबल ग्रुप में आते हैं.
PVTG क्या है?
जनजातीय समुदायों की पहचान अक्सर कुछ विशिष्ट लक्षणों जैसे कि आदिम लक्षण, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक अलगाव, बड़े समुदाय से संपर्क करने में शर्म और पिछड़ेपन से होती है. इनके साथ-साथ कुछ जनजातीय समूहों की कुछ विशिष्ट विशेषताएं भी हैं जैसे शिकार पर निर्भरता, भोजन के लिए संग्रह करना, प्रौद्योगिकी का पूर्व-कृषि स्तर होना, जनसंख्या में शून्य या नकारात्मक वृद्धि और साक्षरता का अत्यंत निम्न स्तर. इन समूहों को विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह यानी कि PVTG कहा जाता है.
पहचान की आवश्यकता
जनजातीय समूहों के बीच PVTG अधिक असुरक्षित हैं. इस कारक के कारण, अधिक विकसित और मुखर जनजातीय समूह जनजातीय विकास निधि का एक बड़ा हिस्सा लेते हैं, जिसके कारण पीवीटीजी को उनके विकास के लिए अधिक धन की आवश्यकता होती है. इस संदर्भ में, 1975 में, भारत सरकार ने पीवीटीजी नामक एक अलग श्रेणी के रूप में सबसे कमजोर जनजातीय समूहों की पहचान करने की पहल की और 52 ऐसे समूहों की घोषणा की. इसके बाद 1993 में अतिरिक्त 23 समूहों को इस श्रेणी में जोड़ा गया, जिससे यह कुल 75 हो गया. 2011 की जनगणना के अनुसार, देश के 17 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) में फैले 705 अनुसूचित जनजातियों में से 75 आदिम जनजाति पीवीटीजी ग्रुप के हैं.
इनकी पहचान कैसे होती है
भारत सरकार पीवीटीजी की पहचान के लिए निम्नलिखित मानदंडों का पालन करती है.
झारखंड में PVTG के कितने जनजाति समूह रहते हैं.
बिहार और झारखंड में असुर, बिरहोर, बिरजिया, पहाड़ी खरिया, कोरवासी, मल पहाड़िया, परहैयासी, सौरिया पहाड़िया, सावरी समेत कुल 9 PVTG ग्रुप के जनजाति वायस करते हैं.
इन्हीं सभी दुर्लभ जनजाति में एक पहाड़िया या सौरिया पहाड़िया जनजाति है. संथाल परगना प्रमंडल के आदिम जनजाति पहाड़िया समुदाय का अपना एक विशिष्ट इतिहास है. इस जनजाति ने पहाड़ों और जंगलों के रक्षा के लिए अंग्रेजों और जमींदारों से लड़ाई लड़ी थी. पहाड़िया जनजाति को भारत की दुर्लभ जनजातियों में से एक माना जाता है. प्रचलित मान्यताओं और उपलब्ध दस्तावेज़ों के अनुसार, पहाड़िया समुदाय संथाल परगना प्रमण्डल के आदि काल के बाशिंदे हैं.
15वीं और 16वीं शताब्दी में मिलता है पहाड़िया के इतिहास का प्रमाण
15वीं और 16वीं शताब्दी में इस आदम जनजाति का इतिहास प्रमाणित रूप से सामने आया. संथाल परगना के राजमहल, मनिहारी, लकड़ागढ़, हंडवा, गिद्धौर, तेलियागढ़ी, महेशपुर राज, पाकुड़ और सनकारा में ज़मींदारियों और स्वतंत्र सत्ता के अभिलेखीय साक्ष्य प्राप्त हुए हैं.
इसके बाद 18वीं सदी में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले सेनानियों में कई पहाड़िया जनजाति के लोग भी शामिल थे. इनमें सरदार रमना आहड़ी, (धसनिया, दुमका) चेंगरू सांवरिया, (तारगाछी पहाड़, राजमहल) पांचगे डोम्बा पहाड़िया, (मातभंगा पहाड़, महराजपुर) नायब सूरजा पहाड़िया, (गढ़ीपहाड़, मिर्जाचैकी) के नाम शामिल हैं. पहाड़िया समुदाय के लोग हर साल शहीद पर्व मनाते हैं. इस पर्व के अवसर पर लोग लोक गीत गाते हैं.
इतने गौरवशाली इतिहास होने के बावजूद भी ये जनजाति आज हाशिए पर है. पहाड़िया समुदाय के उत्थान के लिए कई सारी योजनाओं की शुरुआत की गई है, मगर विकास की गंगा इस समुदाय के लोगों से वंचित हैं. इस समुदाय के उत्थान के लिए जीतने भी योजनाएं चलाई गई, उसमें से लगभग 95 फीसदी योजनाएं इन तक पहुंची ही नही.
संथाल के इन इलाकों में है पहाड़िया जनजाति का निवास स्थान
झारखंड में पहाड़िया जनजाति मुख्य रूप से दुमका सहित देवघर, गोड्डा, पाकुड़, साहेबगंज और जामताड़ा ज़िले में निवास करते हैं. पहाड़िया जनजाति को तीन उप जातियों में विभाजित किया गया है. जिनमें माल पहाड़िया, सांवरिया या सौरिया पहाड़िया और कुमार भाग पहाड़िया आदि शामिल हैं.
माल पहाड़िया जाति के लोग अमड़ापाड़ा (पाकुड़) से गुज़रने वाली बांसलोई नदी की पूर्वी दिशा में स्थित दुमका ज़िले के गोपीकान्दर, काठीकुंड, रामगढ़, शिकारीपाड़ा, दुमका, जामा मसलिया, सरैयाहाट तथा जामताड़ा (हाल ही में बना ज़िला) और देवघर के कुछ प्रखंडों में निवास करते हैं.जबकि राजमहल की उत्तरी दिशा में सांवरिया अथवा सौरिया पहाड़िया और पाकुड़ ज़िले के पाढरकोला और आसपास के इलाकों में कुमार भाग पहाड़िया जाति निवास करती है.
पहाड़िया समुदाय की लगातार घट रही आबादी
पहाड़िया जनजाति एक संरक्षित जनजाति है, बावजूद इसकी जनसंख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गई है. विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी आंकड़ों के की बात करें तो वर्ष 1901 ई. की जनगणना के अनुसार आदिम जनजाति पहाड़िया की कुल आबादी 3,54,294 थी, जो वर्ष 1911 ई. में घटकर 2,60,000 के लगभग हो गई. वर्ष 1981 में इनकी जनसंख्या घटकर 1,15,000 आंकी गई. जबकि वर्ष 1991 में यह सिमटकर 1,00,000 हो गई. इसके बाद के ज्यादा आंकड़े इन जनजाति के उपलब्ध ही नही हैं, जिससे इनकी वास्तविक जनसंख्या के बारे में पता लगाया जा सके. मगर, जनसंख्या के अलावा और भी कई सर्वे कराए गए हैं. इन सर्वे के मुताबिक माल पहाड़िया समाज की कुल आबादी घटकर मात्र 79,322 रह गई है. इस प्रकार जनजातीय आबादी में इनकी प्रतिशत आबादी मात्र 1.37 प्रतिशत रह गई है. वहीं इनकी साक्षरता दर मात्र 7.58 प्रतिशत है.
वहीं इस सर्वे के अनुसार सांवरिया अथवा सौरिया पहाड़िया की वर्तमान आबादी 30,269 है. जनजातीय आबादी में इनका प्रतिशत हिस्सा 0.68 प्रतिशत तथा साक्षरता प्रतिशत 6.87 है.
सरकार और प्रशासन पर उठे कई सवाल
ऐसे में इतनी हासिए पर खड़ी इस जनजाति को लेकर कई तरह के सरकार योजनाएं भी चलाती है. मगर, योजनाएं उन तक पहुंच ही नहीं पाती. ऐसे में जिस जनजाति के लोगों को संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है. उसी जनजाति के किसी महिला का इतने निर्मम तरीके से हत्या होना सरकार, प्रशासन और समाज पर भी बड़े सवाल करता है. ये जनजाति पहाड़ों पर निवास करते हैं, ना ही कहीं बाहर जाते हैं और ना ही किसी बाहरी व्यक्ति से खुलते हैं, ऐसे में समाज को इन्हें जागरूक और शिक्षित करने में सरकार का सहयोग करना छाइए और सरकार को चाहिए कि ऐसे किसी भी महिला चाहे वो किसी भी समुदाय की हो, उसे सुरक्षा प्रदान करे और प्रशासन और पुलिस को हिदायत दे कि बड़े ही सख्ती के साथ इन हत्यारों से निपटे.
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