देवघर में क्यों नहीं होता रावण दहन, जानिए पीछे की कहानी


देवघर (DEOGHAR): आज दशहरा है. अधर्म पर धर्म, बुराई पर अच्छाई, असत्य पर सत्य, रावण पर श्री राम की विजयी के रूप में दशहरा या विजयादशमी मनाया जाता है. यही कारण है कि आज रावण का पुतला दहन किया जाता है. लेकिन बाबानगरी देवघर में रावण दहन की परंपरा नहीं है. नवरात्रि समाप्त होने के बाद दशहरा मनाया जाता है. देवघर में भी धूमधाम के साथ नवरात्रि सम्पन्न हो गया. दशहरा के दिन अन्य शहरों में रावण दहन का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है. एक्का दुक्का शहरों में देवघर शहर भी शामिल हैं जहां रावण दहन नही किया जाता.
रावण की देन से होता है कई लोगों का भरण पोषण
दरअसल, देवघर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है. यही कारण है कि यह शहर देश विदेश में प्रसिद्ध है. यहां स्तिथ ज्योर्तिलिंग रावणेश्वर बैद्यनाथ कहलाता है. जानकारों के अनुसार, शास्त्र और पुराणों में उपलब्ध है कि यहां का पवित्र ज्योर्तिलिंग रावण द्वारा लाया गया था जिसे बाद में विष्णु ने यहां स्थापित किया. रावण द्वारा लाए गए पवित्र ज्योर्तिलिंग के कारण ही देवघर सहित संताल परगना की अर्थव्यवस्था टिकी हुई है. यहां के पुरोहित रावण को इसलिए पूजते हैं कि उनके द्वारा लाया गया पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग के कारण ही उनका और उनके परिवार या अन्य का भरण पोषण होता है. वे रावण को पूजनीय बताते हैं इसलिए यहां रावण दहन की परंपरा नही चली आ रही.
जानिए रावण की महिमा
स्थानीय जानकर के अनुसार, रावण को महान पंडित बताते हुए उनका महिमा का खूब बखान किया जा रहा है. इनके अनुसार रावण जैसा पूजनीय पंडित न आज तक कोई हुआ और न ही भविष्य में होने वाला है. रावण ऐसा शिव भक्त था जिसे खुद भगवान शिव ने ज्योर्तिलिंग दिया था. जब रावण इस ज्योतिर्लिंग को लेकर लंका जा रहे था, तभी विष्णु भगवान ने चरवाहे का रूप धारण कर अपने बुद्धि से उस ज्योर्तिलिंग को रावण से ले लिया था और यहां स्थापित कर दिया था. यही कारण है कि रावण द्वारा लाया गया ज्योर्तिलिंग से सभी का जीविकोपार्जन हो रहा है. इसलिए देवघर शहर में रावण दहन नहीं होता.
रिपोर्ट: रितुराज सिन्हा, देवघर
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