दुमका(DUMKA): भारत विश्व का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक देश है. चुनाव को लोकतंत्र का महापर्व कहा जाता है. भारत जैसे विशाल देश में हर 5वे वर्ष लोक सभा आम चुनाव होता है. बहुदलीय व्यवस्था के साथ विशाल भौगोलिक वाले देश में चुनाव सम्पन्न करना किसी चुनौती से कम नहीं है. भारत में चुनाव को स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से सम्पन्न कराने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग का गठन किया गया है.
जनता के हाथ दिल्ली की गद्दी का चाभी
भारत मे पहली बार 1952 में लोक सभा चुनाव हुए. फिलहाल 2024 के लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया जारी है. चुनाव आयोग द्वारा पूरे देश मे 7 चरणों मे चुनाव सम्पन्न कराने हेतु तिथि निर्धारित की जा चुकी है. सभी राजनीतिक दल अपने अपने तरीके से दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के लिए दिन रात पसीना बहा रहा है. 4 जून को मतगणना के बाद स्पष्ट हो जाएगा कि देश की जनता ने किसे दिल्ली की गद्दी सौपी है.
चुनाव के वक्त दल बदलते रहते हैं नेता
हाल के कुछ दशकों से ऐसा देखा जाता है कि चुनाव की घोषणा होते ही विभिन्न राजनीतिक दलों में भगदड़ की स्थिति उत्पन्न होती है. कोई दल बदलकर चुनाव के मैदान में उतरता है तो कोई अपने दल में टिकट नहीं मिलने पर दूसरे दल का दामन थाम कर चुनावी समर में कूद पड़ते हैं. इसे राजनीतिक दलों का चुनावी रणनीति का हिस्सा भी माना जाता है. झारखंड में इस वर्ष भी बहुत कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है. सिंहभूम से सांसद गीता कोड़ा ने हाथ का साथ छोड़ कर कमल की सवारी कर ली तो दुमका के जामा से झामुमो विधातक सीता सोरेन चुनावी समर में जिस धनुष बाण से विरोधी को परास्त कर विजेता बनी उसी धनुष बाण को छोड़ कर कमल पर सवार हो गयी और भाजपा ने दुमका लोक सभा सीट से सीता सोरेन को प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतार दिया. गीता और सीता ही नहीं बल्कि कई ऐसे नेता हैं जो दल बदलकर चुनाव मैदान में हैं या फिर चुनावी समर में कूदने की तैयारी कर रहे हैं.
परंपरा के नाम पर विरोध: उचित या अनुचित
इस सब के बीच रविवार को सिंहभूम से भाजपा प्रत्याशी गीता कोड़ा जब चुनाव प्रचार के लिए जब मोहनपुर पहुचीं तो उन्हें ग्रामीणों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा. कहा जा रहा है कि परंपरागत हरवे हथियार से लैश ग्रामीणों ने गीता कोड़ा को ना केवल घंटों बंधक बनाया बल्कि उनके साथ बदसलूकी भी की गई. सूचना पर पहुचीं पुलिस ने गीता को ग्रामीणों के चंगुल से मुक्त कराया. कहा जा रहा है कि बगैर ग्राम सभा की अनुमति के गीता कोड़ा द्वारा गांव में प्रवेश करने पर ग्रामीण आक्रोशित थे.
गीता कोड़ा प्रकरण से उभरते सवाल
सिंहभूम में गीता कोड़ा के साथ घटित घटना कई सवालों को जन्म देता है. यह सही है कि वर्ष 2019 के चुनाव में सिंहभूम की जनता ने कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में गीता कोड़ा को अपना मत देकर सांसद बनाया. 5 वर्षो में कई वायदे पूरे हुए तो कई अधूरे भी रहे होंगे. विकास की कई योजनाओं को धरातल पर उतारा गया होगा तो कई योजनाएं चुनावी मुद्दे ही बनकर रह गए होंगे. चुनाव जीतने के बाद गीता कई गांव का दौरा की होंगी तो कई ऐसे भी गांव होंगे जहां वे नहीं पहुँच पायी होंगी. ऐसी स्थिति में जब 2024 के चुनाव में गीता भाजपा प्रत्याशी के रूप में गांव गांव घूम कर वोट मांग रही है तो विरोध का सामना करना पड़ सकता है. वैसे भी प्रजातंत्र में लोकतांत्रिक तरीके से विरोध का अधिकार हर नागरिक को है. लेकिन मोहनपुर में ग्रामीणों के विरोध के तरीके को कहीं से जायज नहीं ठहराया जा सकता है. विरोध विकास के मुद्दे पर होनी चाहिए ना कि परंपरा के नाम पर.
घटना को लेकर शुरू हुई राजनीति
वैसे इस घटना को लेकर राजनीति भी शुरू हो गयी है. गीता कोड़ा ने इसे लोकतंत्र पर हमला करार दिया तो मधु कोड़ा ने झामुमो कार्यकर्ता की करतूत कहा. वहीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी द्वारा प्रेस रिलीज जारी कर घटना की निंदा की. उन्होंने कहा कि राज्य में महिला सुरक्षा का दावा करने वाली झामुमो की सरकार के गुंडे जब महिला जनप्रतिनिधि पर हमला करते हुए नहीं डर रहे हैं तो जरा सोचिए कि राज्य में जनता की क्या हालत होगी? बाबूलाल मरांडी के रिलीज में एक तरफ तो गीता कोड़ा पर हुए हमला को भाजपा पर हमला करार देते हुए इसका माकूल जबाब देने की बात करते हैं वहीं दूसरी ओर लोगों से लोकतंत्र के इस उत्सव को शांति पूर्वक मनाने की अपील कर रहे हैं. वैसे घटना के बाबत प्राथमिकी दर्ज कराने के साथ साथ भाजपा का प्रतिनिधि मंडल मुख्य निर्वाचन अधिकारी के रवि कुमार से मिलकर घटना की जांच कराने एवं दोषियों पर कार्यवाई की मांग कर चुके हैं.
परंपरा के नाम पर जब दुमका में ग्रामीणों ने प्रशिक्षु आईएएस सहित अधिकारियों को बैठाया था घंटों
गीता कोड़ा प्रकरण के परिपेक्ष्य में दुमका की बात करें तो यहां से सीता सोरेन भाजपा प्रत्याशी के रूप में मैदान में है. सीता झामुमो छोड़ भाजपा में आयी है. मोहनपुर के ग्रामीणों द्वारा जिस परंपरा का हवाला देकर गीता का विरोध किया गया वह परंपरा संथाल परगना प्रमंडल में भी देखने को मिलती है. लगभग 2 महीने पूर्व प्रशिक्षु आईएएस, सीओ सहित कई अधिकारियों को शिकारीपाड़ा थाना क्षेत्र में ग्रामीणों ने घंटों बैठाए रखा. यह कहकर कि बगैर ग्राम सभा की अनुमति के कोई अजनबी इस गांव में कैसे प्रवेश कर गया. भविष्य में ग्राम सभा की अनुमति के बाद ही गांव में प्रवेश करने से संबंधित बांड भरवाने के बाद ही ग्रामीणों के चंगुल से अधिकारियों की टोली मुक्त हो पाए थे. इस परंपरा को अगर आधार माना जाए तो मोहनपुर की घटना की पुनरावृत्ति दुमका में होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.
सूचना तंत्र की विफलता, सख्ती से निपटने की आवश्यकता
गीता कोड़ा प्रकरण के बाद ना केवल सिंहभूम जिला प्रशासन बल्कि हर जिला प्रसासन को ऐसे मामले पर गंभीर होने की जरूरत है. ग्राम स्तर तक प्रसासन का सूचना तंत्र विकसित है. सरकार की कई एजेंसियां इसके लिए कार्यरत है. सूचना तंत्र को मजबूत कर ही इस तरह की घटना को रोका जा सकता है क्योंकि मोहनपुर में जिस तरह हरवे हथियार के साथ जमा थे उसे स्वतः स्फूर्त तो नहीं कहा जा सकता. कहीं ना कहीं इसे सूचना तंत्र की विफलता ही मानी जायेगी और इस स्थिति में शांतिपूर्ण एवं भयमुक्त वातावरण में लोकसभा चुनाव सम्पन्न करना निर्वाचन आयोग के समक्ष भी किसी चुनौती से कम नहीं है. वैसे भी नक्सल प्रभावित झारखंड में शांतिपूर्ण चुनाव सम्पन्न कराना हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है. ऐसी स्थिति में एक नई परंपरा की शुरुवात को कहीं से भी उचिय नहीं ठहराया जा सकता.
रिपोर्ट: पंचम झा
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