टीएनपी डेस्क(Tnp desk):-सियासत की चाल सीधी और सपाट नहीं होती, इस पर सीधे तेजी से दौड़ने वाला घोड़ा भी एक वक्त इसकी राह में ठोकर खाकर सहम जाता है. फिर वो धीरे-धीरे दौड़ने लगता है. क्योंकि, इस रास्ते पर चलते-चलते उसे इतना अनुभव औऱ अहसास हो जाता है कि इसमें रफ्तार भरकर हवे से बात करना जोखिम से भरा कदम है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के ईडी प्रकरण में मशगूल झारखंड भाजपा में अचानक देर शाम अमर बाउरी को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के बाद तो हलचले तेज है, पार्टी के अंदरखाने में ही चर्चाए और गपशप अंगड़ाई ले रही है. ये तो सबको मालूम है कि सिर पर आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर पार्टी हर वो दांव, चाल और चेहरा बदलने की कवायद करेगी, जिससे वोटरो का साधाने का समीकरण बैठ जाए. जिसके चलते वो चेहरे जो कभी अंधरे में गुमनाम थे, उसे संभावनाओं की इस सियासत में रौशनी से छिलमिला दिया. बिहार में जातिय जनगणना के बाद तो बीजेपी में बैचेनी औऱ छटपटाहट कुछ ज्यादा ही है. क्योंकि बिना गुणा-गणित और भाग किए वोट नहीं बटोरा जा सकता. जोशिले तकरीरे और वायदे तो वोटर्स के समीकरण साधने के बाद आते हैं.
क्या है अंदर की कहानी और गणित
दल-बदल का मामला चलने के बाद बाबूलाल को नेता प्रतिपक्ष की मान्याता नहीं मिली. लिहाजा, विधानसभा में नेता विपक्ष की सीट को लेकर मंथन तेज चल रहा था. इसे लेकर मांडू विधायक जेपी पटेल का नाम इस दौड़ में सबसे आगे था. दरअसल, झारखंड की आबादी में लगभग 55 फीसदी ओबीसी वोटर्स को साधने के चलते जेपी दावेदारी की दौड़ में सबसे आगे चल रहे थे. लिहाजा, उस वक्त तो तकरीबन तय मान लिया गया था. अब जेपी ही नेता प्रतिपक्ष बनेंगे. बस एलान की औपचारिकता बाकी है. हालांकि, संभावनाओं के खेल में पटेल यहां गच्चा खा गये. उनकी हसरते तब जमीन पर आ गयी,जब रायशुमारी के लिए पहुंचे सांसद अश्विनी चौबे के सामने उनके अपनों ने ही उनकी तरफदारी नहीं की . हालांकि, बीजेपी आलकमान की नजर तो प्रदेश के पिछड़ी जातियों की 55 फीसदी वोट पर टिकी थी. इसलिए, जेपी को नेता प्रतिपक्ष की बाजाए सचेतक बनाकर उनको खुश कर एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश की गई. यहां फिर समझिए सियासत के संभावनाओं का खेल.भाजपा के चंदनक्यारी विधायक अमर बाउरी ने तो सोचा भी नहीं था कि, वे नेता प्रतिपक्ष बन जायेंगे . लेकिन, संभावनाओं को सूरज उनकी तरफ उदय होकर रौशनी देने लगा. इसके पीछे वजह राज्य के तकरीबन 26 फीसदी अनुसूचित जनजाति वोटर्स थे, जिसे भाजपा अपने पाले में करने की कवायद में जुटी है. आलाकमान की नजर में अमर बाउरी इसमे सटीक और उपयुक्त दिखें. लिहाजा, उनके नाम पर ऊपर में सहमति और हामी भरी गई और अचानक फिंजा में उनका नाम तैरने लगा
80 फीसदी से ज्यादा आबादी पर भाजपा की नजर
विधायक जेपी पटेल और अमर बाउरी दोनों दूसरे-दूसरे दलों से आकर भाजपा का दामन पकड़ा है. पूर्व गिरिडीह सांसद टेकलाल महतो के पुत्र जेपी पटेल जेएमएम छोड़कर बीजेपी से जुड़े. तो, वही झारखंड विकास मोर्चा को छोड़कर अमर बाउरी भाजपा में शामिल हुए थे. इन दोनों को पार्टी में जगह देकर बीजेपी का मकसद राज्य की 80 फीसदी से ज्यादा की आबादी पर अपनी पैंठ बनाने की है. जो ओबीसी और अनुसूचित जनजाति की है. दूसरा पहलू ये भी है कि भारतीय जनता पार्टी में पिछले दस साल में ओबीसी वोटर्स की संख्या में जोरदार इजाफा हुआ है. लिहाजा, इस वोट बैंक को भी भाजपा खिसकने नहीं देना चाहती है. इसे हर हाल में बचाना चाहती है.
I.N.D.I.A गठबंधन की झारखंड में मजबूत दल झारखंड मुक्ति मोर्चा आदिवासी मूलवासी की राजनीति कर बीजेपी को टक्कर देने के फिराक में है. इसे लेकर पूरी ताकत तकरीबन झोंक दी है. तो इसके उलट भाजपा ने भी अमर बाउरी और जेपी पटेल को साधकर राज्य की एक बड़ी आबादी को अपनी तरफ खींचने की चाल सियासत की इस बिसात पर बिछायी है. अब देखना ये है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा की ये रणनीति जमीन पर कितनी उतरती है. इस जोड़, घटाव, गुणा और भाग का कितना फायदा वोटिंग बूथों पर होता है. खैर जो भी हो, फिहलाल, भाजपा विधायक अमर बाउरी को तो यह बिल्कुल अहसास हो गया है कि सियासत संभावनाओं का खेल है, जो कभी भी किसी की तरफ उदय हो सकता है. बस सब्र का दामन थामे रखकर अहिस्ते-अहिस्ते अपने कदम बढ़ाते रहिए.
रिपोर्ट- शिवपूजन सिंह
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