शहीद एसपी रणधीर वर्मा की पुण्यतिथि: आज ही के दिन 1991 में एकीकृत बिहार के कोयलांचल ने देखा था एके 47 हथियार


धनबाद(DHANBAD): 1991 में 3 जनवरी के दिन उस समय के एकीकृत बिहार का यह कोयलांचल अत्याधुनिक हथियार एके-47 पहली बार देखा था. इन्हीं हथियार से उस समय के धनबाद में पदस्थापित जाबांज एसपी रणधीर प्रसाद वर्मा शहीद हुए थे. जांबाज एसपी रणधीर वर्मा आतंकियों के अत्याधुनिक हथियार से भी नहीं डरे और उनसे भिड़ गए. खुद तो वह शहीद हो गए लेकिन उसके पहले आतंकवादियों को भी उन्होंने छलनी कर दिया था. ऐसे थे जांबाज एसपी रणधीर प्रसाद वर्मा. ना पुलिस की कोई अकड़ और ना कभी वर्दी की कोई ताकत. सामान्य रूप से सबसे मिलना, उनकी दिनचर्या थी. किसी भी घटना की सूचना पर किसी का इंतजार किए बिना खुद पहले पहुंच जाना उनकी विशेषता थी. और शायद इसी विशेषता की वजह से वह शहीद भी हुए. अगर बैंक ऑफ़ इंडिया, हीरापुर शाखा पहुंचने में वह थोड़ा भी विलंब किए होते तो आतंकवादी बैंक की राशि लूटकर चले गए होते. लेकिन सूचना पाते ही फौरन धनबाद थाने को निर्देश देते बैंक पहुंच गए और सीढ़ी चढ़ते ही उनका मुकाबला आतंकवादियों से हो गया. यह बात भी सच है कि अगर जांबाज एसपी ने आतंकवादियों को छलनी नहीं किया होता तो पूर्वी भारत आतंकवादियों का चारागाह बन गया होता.
धनबाद से लेकर पुरुलिया तक में मारे गए उग्रवादियों के पास से जब्त दस्तावेजों से पता चला था कि वह खालिस्तान कमांडो फोर्स के सदस्य थे .पूर्वी भारत में आतंक का साम्राज्य कायम कर अपनी आर्थिक ताकत मजबूत करना चाहते थे. उस समय पता चला था कि रणधीर वर्मा से मुठभेड़ के बाद उग्रवादी डर गए थे और उनका षड्यंत्र नाकाम हो गया था. उनका एक ग्रुप धनबाद में था तो दूसरा पश्चिम बंगाल में षड्यंत्र रच रहा था. धनबाद की घटना से घबरा कर आतंकवादी पुरुलिया जिले के बलरामपुर में पुलिस को देखते ही गोलियां बरसानी शुरू कर दी थी. पुलिस की जवाबी कार्रवाई में वह मारे गए थे. उनके पास से मिले दस्तावेजों से भी पता चला था कि वह खालिस्तान कमांडो फोर्स के सदस्य थे.शहीद एसपी कर्तव्य को पहले मानते थे. खुद इस पर अमल करते थे और दूसरे को भी अमल करने के लिए प्रेरित करते थे. मौसम चाहे कुछ भी हो, अगर किसी घटना की सूचना मिलती तो रात में ही निकल जाते थे. कभी यह नहीं सोचते की स्थिति कैसी है. इसका क्या अंजाम होगा.
धनबाद में आज मनाई जा रही पुण्यतिथि
भारतीय पुलिस सेवा में चयन के बाद अपनी ड्यूटी बखूबी निभाई. शहादत भी आतंकवादियों से जूझते हुए दे दी. बैंक लूटने की सूचना पर खुद बैंक आफ इंडिया पहुंच गए. आतंकवादियों को ललकारा. उन्हें भी मारा, खुद भी शहीद हो गए. बहुत कम समय में ही उन्होंने धनबाद में अपनी अलग पहचान बना ली थी. धनबाद के लोगों के प्यारे हो गए थे. यही वजह थी कि उनकी जब अर्थी निकली तो धनबाद उमड़ पड़ा. उनके अंतिम संस्कार में उमड़ी भीड़ आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है. आज उनकी धनबाद में पुण्यतिथि मनाई जा रही है. झारखंड के राज्यपाल इस कार्यक्रम में शामिल होंगे. जिसने भी शहीद जांबाज रणधीर वर्मा के साथ काम किया होगा, उनके संपर्क में रहा होगा, वह आज के दिन को याद कर मर्माहत हो जाता होगा.
रिपोर्ट: धनबाद ब्यूरो
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