धनबाद(DHANBAD) : झारखंड की 28 आदिवासी सुरक्षित सीटें सत्ता की द्वार खोलती है. इसमें कोई संदेह नहीं है. जब-जब यह सीटें जिसके साथ हुई, सत्ता उसके पास गई. लेकिन अब इन्हीं 28 सीटों को लेकर एक बार फिर विवाद शुरू हो गया है. अब 2029 के चुनाव में आरक्षित सीटें पहले की तरह ही रहेंगी या घटेंगी -बढ़ेगी, इस पर सवाल उठने लगे है. 2024 के विधानसभा चुनाव में इंडिया ब्लॉक को प्रचंड बहुमत मिलने के बाद यह सवाल उठने से कई तरह की बातें होने लगी है. यह तो तय है कि झारखंड में इस बार जिस प्रकार एनडीए की हार हुई, उसे आसानी से पचाना, किसी के लिए कठिन हो सकता है. इधर, विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद झामुमो केंद्र सरकार पर हमलावर दिख रहा है.
आरक्षित सीटों को घटाने की कोशिश का विरोध
झामुमो के प्रवक्ता ने कहा है कि रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया इसकी जिम्मेदारी लेकर तय करें कि राज्य में जिस अनुपात में विधानसभा सीटें है. उनमें आरक्षित सीटों को घटाने की कोशिश नहीं हो. प्रवक्ता ने परिसीमन पर निशाना साधते हुए कहा कि हम मनुवादी सोच को समझते है. 2012 में जब परिसीमन आयोग झारखंड आया था, तभी उनकी पार्टी ने यह आशंका जताई थी. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी आरक्षित संसदीय सीट इंडिया गठबंधन के पक्ष में गई, तो विधानसभा चुनाव में भी यह गठबंधन के पक्ष में रही. वैसे, झामुमो के प्रवक्ता का यह भी कहना है कि भाजपा नेताओं ने जहां सबसे अधिक जहर उगला, वहीं उनका सुपड़ा साफ हो गया. विपक्ष के जन प्रतिनिधियों से उन्होंने सकारात्मक भूमिका निभाने की अपील की है.
एनडीए गठबंधन की हर योजना फेल कर गई
यह बात तो तय है कि 2024 के विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन की हर योजना फेल कर गई. चाहे कोल्हान हो, पलामू प्रमंडल हो,उत्तरी छोटा नागपुर हो, संथाल परगना हो, सब जगह भाजपा को निराशा हाथ लगी. यह अलग बात है कि 2019 की हार के बाद भाजपा ने झारखंड में पार्टी की बागडोर आदिवासी नेता के हाथ में देने की योजना बनाई. बागडोर दिया भी, बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा का विलय भाजपा में हो गया और वह प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बन गए. लेकिन चुनाव में भाजपा का यह प्रयास भी बेअसर हुआ और इंडिया गठबंधन को प्रचंड बहुमत मिल गया. अब आदिवासी सुरक्षित सीटों को लेकर नए ढंग से विवाद चिढ़ता दिख रहा है. देखना है इसका अंत कहां जाकर होता है.
रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो
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