Tnp desk-: जामताड़ा का जब भी जिक्र आता है, तो दिमाग और जेहन में साइबर ठगी की तस्वीर उभरती है. धोखा, छल, कपट और जालसाजी से पैसे उड़ाने वाले चालबाजों का गढ़ जामताड़ा को माना जाता है. इसकी पहचान पर ही काला दाग लग गया है. जिसे मिटाने की कोशिश और कवायदे लगातार जारी है. लेकिन, अभी भी ठगी का धंधा मंदा नहीं पड़ा है. देश भर में तो इसे साइबर ठगी की नर्सरी भी मानी जाती है. इतनी बदनामी और तोहमतों के बावजूद जामताड़ा की दूसरी तस्वीर भी है. जो एक खुशनुमा असहसास देती है और ये जताती है कि कुदरत ने इस जगह को बेपनाह नेमत दी . बस मेहनत, लगन औऱ जुनून के जरिए इसे पलटा जा सकता है.
काजू की खेती के लिए मुफीद
यहां की मिट्टी, मौसम और मिजाज काजू की खेती के लिए मुफीद है. जी हां वही काजू जो बाजार में हजार रुपए के पार तक बिकता है. जो सेहत से लेकर लजीज व्यंजनों में शामिल रहता है. समझ और जान सकते है कि आखिर कितनी खुशकिस्मत यहां के बाशिंदे होगे, जो काजू की खेती कर अपनी तकदीर औऱ भविष्य संवार सकते हैं. खुशी की बात तो ये है कि सरकर की मदद से काजू की प्रोसेसिंग यूनिट लगाने की पहल शुरु हो रही है. अगर सबकुछ सही औऱ मन मुताबिक रहा तो फिर यहां के लोगों की जिंदगी बदलेगी और जो बदनुमा दाग साइबर ठगी का लगा है. वो भी धूल जाएगा.
100 एकड़ जमीन पर काजू के पेड़
यहां 100 एकड़ से अधिक भूभाग पर काजू का बागान फैला हुआ है. मौजूदा हालात में स्थानीय लोग काजू को टोकरियों में भर-भरकर हाट-बाजार में कौड़ियों के भाव बेचने को मजबूर हैं. इसकी वजह प्रोसेसिंग यूनिट का नहीं रहना है. जिसके चलते इसकी न ब्रांडिंग हो पा रही औऱ न ही एक उचित बाजार मिल रहा है. अगर सलीके और साजगार तरीके से काजू को बेचा जाए तो इसकी दाम भी अच्छे मिलेंगे. अभी यहां के स्थानीय बाजारों में 30 से 40 रुपए किलों बिक रहा है. जिसका फायदा कोलकाता के कारोबारी उठाते हैं औऱ कम दाम में खरीदकर उंचे दाम में बेचकर बड़ा मुनाफा कमाते हैं.
राज्य सरकार कर रही पहल
राज्य सरकार भी इसकी खेती को व्यवसायिक रुप देने के लिए जोर शोर से पहल कर रही है. 13 दिसंबर को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आए थे. काजू की पैदवार की बेशुमार संभावनाओं को देखते हुए मदद देने का एलान किया. यहां के नाला प्रखंड के मलचा पहाड़ी क्षेत्र, कुंडहित और आसपास के क्षेत्र में इसकी बहुतायत मात्रा में पेड़ है. मजबूरी ये है कि अब तक सरकारी जमीन पर मौजूद बगानों की बंदोबस्ती नहीं हुई. प्रोसेसिंग प्लांट के अभाव में इसका फायदा ग्रामीणों को भी नहीं मिल पा रहा है.
वन विभाग की कोशिश
यहां की मिट्टी औऱ मौसम काजू की खेती के लिए बढ़िया है. इसका पता वन विभाग को तब मालूम हुआ. जब 1990 के आसपास काजू के पौधे लगाए गये. जो पेड़ बनकर फल देने लगे. इसके बाद उत्साहित वन विभाग ने 100 एकड़ से अधिक जमीन पर काजू का पेड़ लगाया. जो आज एक बड़ा बगान बन गया है. इस साल मॉनसून से पहले वन विभाग ने देढ़ लाख से ज्यादा पौधे लगाए. जिसमे 15 हजार काजू के पौधे शामिल थे. यहां की भूमि को देखते हुए वन विभाग ने ये भी फैसला लिया है कि जितने भी पौधे साल में लगाए जायेंगे, उसमे 10 प्रतिशत काजू के होंगे.
बेशक साइबर ठगी के लिए जामताड़ा बदनाम हो चुका है. लेकिन, थोड़ी सी पहल, मजबूत इरादे, मेहनत और लगन लगायी जाए तो काजू से ही इस जिले की तस्वीर बदल जायेगी. बस एक सकारात्मक कोशिश की दरकार है.
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