टीएनपी डेस्क(TNP DESK): झारखंड में नगर निकाय चुनाव को लेकर तैयारी में लगे उम्मीदवारों को बड़ा झटका लगा है. एक बार फिर से नगर निकाय चुनाव को आगे टाला जा सकता है. बीते दिन ट्राइबल एड्वाइज़री काउन्सिल की हुई बैठक में इस पर विचार किया गया. इसे टालने के पीछे की मुख्य वजह राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से जारी नया आरक्षण रोस्टर है. इस नए आरक्षण रोस्टर के कारण बहुत सारी एसटी आरक्षित सीटों को गैर एसटी सीट घोषित कर दिया गया. इसका आदिवासी संगठनों ने विरोध शुरू कर दिया. इसके बाद TAC की बैठक बुलाई गई.
क्या है TAC?
TAC यानि कि ट्राइबल एड्वाइज़री काउन्सिल, हिन्दी में जनजाति सलाहकार परिषद, ये वो आयोग या संवैधानिक संस्था है जिसे राज्य में अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और उन्नति से संबंधित ऐसे मामलों पर सलाह देने के लिए गठन किया गया है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 4 के प्रावधानों के अनुसार भारत के संविधान की पांचवीं अनुसूची के अनुच्छेद 244 (1) के तहत, अनुसूचित क्षेत्रों वाले प्रत्येक राज्य में जनजाति सलाहकार परिषद (टीएसी) की स्थापना की जाएगी. वहीं संविधान के अनुच्छेद 4, भाग बी, उप-अनुच्छेद (2) के प्रावधान में प्रावधान है कि राज्य में अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और उन्नति से संबंधित ऐसे मामलों पर सलाह देना जनजाति सलाहकार परिषद का कर्तव्य होगा.
TAC के सदस्य
TAC के सदस्यों की बात अकरें तो जनजाति सलाहकार परिषद में 20 से अधिक सदस्य नहीं होंगे. जिनमें से लगभग, जैसा कि हो सकता है, तीन-चौथाई राज्य विधान सभा में अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधि होंगे. बशर्ते कि राज्य विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधियों की संख्या सीटों की संख्या से कम हो, ऐसे प्रतिनिधियों द्वारा भरी जाने वाली टीएसी में शेष सीटें उन जनजातियों के अन्य सदस्यों द्वारा भरी जाएंगी.
इसके अनुसार आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और राजस्थान जैसे अनुसूचित क्षेत्रों वाले 10 राज्यों में जनजाति सलाहकार परिषद (टीएसी) का गठन किया गया है. इसके अलावा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और उत्तराखंड राज्यों में कोई अधिसूचित अनुसूचित क्षेत्र नहीं होने के कारण भी वहां जनजाति सलाहकार परिषद का गठन किया गया है.
TAC की बैठक में लिया गया फैसला
टीएसी की बैठक में खासकर पांचवीं अनुसूचित क्षेत्र में एकल पद आरक्षण को लेकर चर्चा की गई. इस बारे में कहा गया कि इस मामले में कानूनी सलाह ली जाएगी. कहा गया कि पांचवीं अनुसूचित क्षेत्र में अभी तक पंचायतों में पेसा कानून के तहत ही चुनाव हो रहे हैं. पेसा कानून में अभी तक कोई संसोधन नहीं किया गया. ऐसे में आरक्षण को लेकर भी कोई बदलाव नहीं किया जाना चाहिए. इस बैठक में ज्यादातर सदस्यों ने एकल पद पर एसटी का आरक्षण समाप्त करने का विरोध किया. सदस्यों ने सुझाव दिया कि इसे लेकर कैबिनेट में प्रस्ताव लाया जाए और इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार को भेजा जाए. इसे लेकर ही नगर निकाय चुनाव की तारीख आगे बढ़ाने का सुझाव दिया गया. इस बैठक में TAC के अध्यक्ष हेमंत सोरेन के साथ उपाध्यक्ष चम्पाई सोरेन, विधायक-सह-टीएसी सदस्य स्टीफन मरांडी, दीपक बिरुआ, दशरथ गगराई, विकास कुमार मुंडा, नमन बिक्सल कोनगाड़ी, राजेश कच्छप, सोनाराम सिंकू, शिल्पी नेहा तिर्की, मनोनीत सदस्य विश्वनाथ सिंह सरदार, जमल मुंडा शामिल थे.
कब हो सकते हैं नगर निकाय चुनाव?
TAC की इस अनुशंसा पर राज्य सरकार नगर निकाय चुनाव को लेकर केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजने वाली है. महाधिवक्ता से विचार विमर्श और कानूनी सलाह लेने के बाद ये प्रस्ताव भेजा जाएगा. इसके बाद केंद्र सहमति देगा, तभी आरक्षण रोस्टर में बदलाव कर संशोधित आरक्षण रास्टर जारी किया जा सकेगा. मगर, तब तक चुनाव थमता हुआ नजर आ रहा है. अगर, तय समय पर चुनाव होते तो क्रिसमस तक चुनाव सम्पन्न हो जाते. मगर, अब इसके कारण चुनाव टल चुका है. अब संभावना है कि नगर निकाय चुनाव मार्च-अप्रैल तक टाल दिए जाए. ऐसे में अप्रैल महीने में चुनाव होने की संभावना है. बता दें कि धनबाद-चास सहित 14 निकायों का कार्यकाल 2020 में ही पूरा हो चुका है. मगर, कोरोना के कारण यहां चुनाव स्थगित कर दिया गया था. रांची सहित अन्य नगर निकायों में अप्रैल 2023 में कार्यकाल पूरा होगा. ऐसे में अप्रैल में चुनाव कराया जा सकता है.
सरकार और राजभवन के बीच तकरार की आशंका
TAC की अनुशंसा को लेकर एक बार भी राजभवन और सरकार आमने-सामने आ गए हैं. नगर निकाय चुनाव के आयोजन को राज्य सरकार के प्रस्ताव पर राज्यपाल ने सहमति जताई थी. ऐसे में अभी तक चुनाव की अधिसूचना जारी हो जानी चाहिए थी. मगर, राजभवन की सहमति के बाद भी अधिसूचना जारी नहीं होने से एक बार फिर राजभवन और सरकार के बीच तनातनी की आशंका बढ़ गई है.
बता दें कि इससे पहले भी राजभवन और सरकार एक दूसरे के सामने आते रहे हैं. चाहे वो हेमंत सोरेन से जुड़े खनन लीज मामले में चुनाव आयोग के फैसले की बात हो, उत्पाद विधेयक को वापस लौटाना हो, या TAC की नियुक्ति हो, हमेशा ही राजभवन और सरकार के बीच तकरार देखने को मिली है. TAC की नियुक्ति का अधिकार राज्यपाल के पास था, जिसे झारखंड सरकार ने नियमावली में संशोधित करते हुए मुख्यमंत्री को दिया था. वहीं राज्य सरकार द्वारा विधानसभा से पारित झारखंड उत्पाद विधेयक -2022 को राज्यपाल ने वापस लौटा दिया और उस पर पुनर्विचार करने के लिए कहा है. इससे पहले से ही राजभवन और सरकार के बीच और तनातनी बढ़ी हुई थी. ऐसे में नगर निकाय चुनाव को स्थगित करने को लेकर भी राज्य सरकार और राजभवन में तनातनी बढ़ सकती है.
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