'केज कल्चर' अपना कर पशुपालन के क्षेत्र में आगे बढ़ेगा दुमका, जानिए क्या है केज कल्चर


दुमका (DUMKA): झारखंड सरकार के कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग (मत्स्य प्रभाग) द्वारा "केज कल्चर विस्तार और सुदृढीकरण योजना" लागू किया गया है. इसके तहत दुमका जिला के रानेश्वर प्रखण्ड के नन्दना ग्राम में अवस्थित परित्यक्त पत्थर खदान में केज कल्चर के माध्यम से मत्स्य पालन करने के साथ ग्रामीणों और विस्थपितों की आय में बढ़ोत्तरी के लिए 12 केज बैट्री (24 केज) का निर्माण जिला मत्स्य कार्यालय द्वारा किया गया. इसके संचालन के लिए ग्राम प्रधान की अध्यक्षता में स्थानीय युवाओं को शामिल करते हुए 24 सदस्यों का "कावेरी केज कल्चर समूह का गठन किया गया.
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केज की लागत
परित्यक्त पत्थर खदानों में केज कल्चर मुख्यतः G.I पाईप से बने 8mX6mX5m के दो केज (एक बैट्री) केज के अधिष्ठापन के लिए 3.60 लाख रू० प्रति केज बैट्री की दर निर्धारित की गई है, जिसमें 90 प्रतिशत् सरकारी अनुदान और शेष 10 प्रतिशत् लाभुक का अंशदान है. विस्थापित केज लाभुकों की आर्थिक स्थिति को देखते हुए प्रति केज बैटरी और इनपुट के लिए राज्य सरकार का अंशदान 50 प्रतिशत (अधिकतम् 2.00 लाख रू० ) मात्र निर्धारित है. वहीं शेष लाभुक अंशदान से व्यय किया जाना है. नवनिर्मित केजों में 1.44 लाख मत्स्य बीजों का संचयन किया गया.
अभिनव प्रयोग
दुमका डीसी रविशंकर शुक्ला ने समूह के सदस्यों और ग्रामीणों को सम्बोधित करते हुए कहा कि परित्यक्त पत्थर खदानों में केज कल्चर के माध्यम से मछली पालन मुख्यमंत्री के व्यापक सोच की परिकल्पना है. झारखण्ड सरकार की दूरदर्शिता से जिले के बेकार पड़े पत्थर खादानों में संग्रहित जलक्षेत्र के सार्थक उपयोग के दृष्टिकोण से यह योजना संचालित की गई है. यह योजना एक अभिनव प्रयोग हैं. यदि हम सफल होते हैं, तो इस क्षेत्र में नये जलस्त्रोतों के सदुपयोग का रास्ता खुलेगा और अन्य पत्थर खदानों को इस योजना से आच्छादित करने का प्रयास किया जाएगा. उन्होंने समिति में अधिक-से-अधिक युवाओं को जोड़ने का अनुरोध किया एवं संगठित होकर पूरी लगन के साथ कार्य करने का सुझाव दिया, जिससे कि नन्दना में लगे ये सभी केज नीली क्रांति की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकें. केज कल्चर के माध्यम से मछली पालन से समूह के सदस्यों को स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध हो सकेगा और ताजी मछलियां स्थानीय लोगों को मिल सकेगी.
उपायुक्त ने की मछली पालन करने की अपील
डीसी ने 08 मत्स्य बीज उत्पादकों को वित्तीय वर्ष 2022-23 अंतर्गत तालाब और जलाशय मत्स्य का विकास योजनान्तर्गत 90 प्रतिशत वित्तीय अनुदान पर मत्स्य अण्ड बीज (स्पॉन) उपलब्ध कराया. उपायुक्त ने बताया गया कि मत्स्य विभाग की योजनाएं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ करने के लिए काफी लाभदायक है. उन्होंने बताया गया कि रानेश्वर प्रखण्ड में अधिक जलस्त्रोत हैं. व्यवसायिक दृष्टिकोण से मछली पालन करें और आर्थिक रूप से सम्पन्न बनें.
युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने में मददगार होगी योजना
निःसंदेह ग्रामीण युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए सरकार के इस प्रयास की सराहना होनी चाहिए. क्योंकि दुमका जिला के शिकारीपाड़ा, गोपीकांदर जैसे प्रखंडों में सैकड़ों की संख्या में पत्थर खदान है. वैध के साथ साथ काफी संख्या में यहां अवैध पत्थर खदान का संचालन वर्षों से होता था, लेकिन लगभग 2 महीने से प्रसासनिक सख्ती के कारण तमाम पत्थर खदान बंद पड़े है. वैध या फिर अवैध तरीके से स्थानीय लोगों को जो रोजगार मिल रहा था आज लोग बेरोजगार हो गए है. ऐसी स्थिति में बंद या परित्यक्त पत्थर खदान में केज कल्चर के माध्यम से मत्स्य पालन को बढ़ावा देने से एक तरफ जहां लोगों को रोजगार मिलेगा वहीं मत्स्य पालन में जिला आत्मनिर्भर बनेगा.
रिपोर्ट: पंचम झा, दुमका
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