दुमका : स्कूल की छत से गिरकर छात्र की मौत, जांच में सामने आई लापरवाही, जिम्मेवार कौन?


दुमका(DUMKA): बुधवार को दुमका के मुफस्सिल थाना के महुआ डंगाल स्थित प्लस 2 पीजी आवासीय विद्यालय के छत से गिरकर दूसरी कक्षा के छात्र आर्यमन कुमार की मौत हो गयी थी. परिजनों ने विद्यालय प्रबंधन की लापरवाही को लेकर थाना में प्राथमिकी दर्ज करा दी है. घटना के बाद शिक्षा विभाग की नींद टूटी और जिला शिक्षा अधीक्षक ने विद्यालय पहुंच कर घटना की जांच की. शिक्षा विभाग की प्रारंभिक जांच में यह खुलासा हुआ कि विद्यालय प्रबंधन द्वारा सुरक्षा मानकों का पालन नहीं किया गया. इस घटना में दोषी कौन इसका निर्णय न्यायपालिका करेगी. इस घटना ने एक तरफ जहां जनमानस को झकझोर दिया वहीं दूसरी ओर कई सवालों को भी जन्म दिया है.
यह है मामला
घटना के बारे में बताया जा रहा कि छात्र गिरा नहीं बल्कि छत से कूदा था. वर्ष 2020 में इस विद्यालय में नामांकन लेने वाले आर्यमन मूल रूप से जामताड़ा जिला का रहने वाला था. उसका ननिहाल विद्यालय के करीब विजयपुर में है. वह कभी स्थायी रूप से विद्यालय के हॉस्टल में नहीं रहा. कुछ दिन हॉस्टल में रहता था लेकिन वहां मन नहीं लगने के कारण अक्सर ननिहाल से विद्यालय आता जाता था. 12 मार्च को अभिभावक ने उसे हॉस्टल पहुंचाया. विद्यालय प्रबंधन से वह अक्सर घर जाने की जिद करता था, वहीं सहपाठी से कहता था कि कूद जाएंगे. हाथ पैर ही टूटेगा, घर में तो रहेंगे ना. घटना के दिन लंच टाइम में वह लंच करने विद्यालय के छत पर संचालित रसोई घर गया और छत पर रखे बेंच के सहारे छत की रेलिंग पर चढ़ा औऱ कूद गया. उस मासूम को नहीं पता था कि उसकी मौत भी हो सकती है.
विद्यालय में सुरक्षा मानकों की कौन लेगा जिम्मेदारी
विद्यालय प्रबंधन ने विद्यालय में सुरक्षा मानकों का पालन नहीं किया उसके लिए जितना जिम्मेदार विद्यालय प्रबंधन है कहीं उससे ज्यादा दोषी शिक्षा विभाग माना जा सकता है. आए दिन गली मोहल्ले में ना केवल निजी विद्यालय खुल रहे हैं बल्कि उसमें आवासीय सुविधा भी दी जा रही है. इन विद्यालयों में तमाम सुविधा उपलब्ध हो इसे सुनिश्चित कराने की जिम्मेदारी क्या शिक्षा विभाग की नहीं है? जिस विद्यालय में हादसा हुआ उसका जांच विभाग कर रहा है, अच्छी बात है. जांच होनी चाहिए. लेकिन क्या यह जांच उसी विद्यालय तक सीमित रहेगा या जिले में संचालित अन्य विद्यालयों की भी जांच होगी? सरकार के लाख प्रयास के बाबजूद सरकारी विद्यालयों का वह स्वर्णिम दिन नहीं लौट पा रहा है, क्या इसके लिए शिक्षा विभाग जिम्मेदार नहीं है?
क्या पेरेंट्स भी हैं जिम्मेवार
किसी को दोष देने से पहले हमें अपने अंदर भी झांकना होगा. एक समय था जब अधिकारी से लेकर मजदूर तक के बच्चे सरकारी विद्यालय में पढ़ते थे और कोई आईएएस तो कोई आईपीएस बनकर विद्यालय का नाम रौशन करता था. सरकारी विद्यालय का एक अलग क्रेज़ था. लेकिन समय के साथ साथ सरकारी विद्यालय का क्रेज़ निजी विद्यालय ने ले लिया. निजी विद्यालय की चमक दमक ने हमें आकर्षित किया और हम अपने बच्चों को सरकारी विद्यालय के बजाय निजी विद्यालय में पढ़ाना स्टेटस सिंबल मान बैठे. हमारी इसी चूक का खामियाजा आए दिन मासूम को भुगतना पड़ रहा है. मासूम की भावना को दरकिनार कर हम अपनी भावना मासूम पर थोपने लगे हैं. आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में हम पारिवारिक जिम्मेदारी के लिए भी समय नहीं निकाल पाते हैं. यही वजह से की अपने बच्चों को प्ले स्कूल से लेकर डे बोर्डिंग स्कूल में दाखिला करवा देते हैं. खेलने कूदने की उम्र में बच्चों को नैतिकता और अनुसाशन का पाठ पढ़ाने लगते हैं, जो बाल मन को किसी जेल से कम नहीं लगता. नतीजे जेल के जीवन से मुक्ति के लिए बच्चे इस तरह के कदम उठाने से भी पीछे नहीं हटते.
इस घटना के बाद जरूरत है हर अभिभावक को आत्ममंथन करने की. बच्चों के बीच अपना समय व्यतीत करने की. बच्चों को बाल स्वभाव के अनुरूप वास्तविक जीवन जीने की आजादी देने की. आए दिन कुकुरमुत्ते की तरह गली मोहल्ले में खुल रहे विद्यालय में तमाम तरह की सुविधा उपलब्ध हो इसको लेकर प्रसासनिक सख्ती की. जरूरत है सरकारी विद्यालयों का स्वर्णिम दिन वापस लौटे इसके लिए सामूहिक प्रयास की. अन्यथा इसी तरह देश के कर्णधार असमय काल कलवित होते रहेंगे.
रिपोर्ट: पंचम झा
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