टीएनपी डेस्क(Tnp desk):-धरती के भगवान का दर्जा डॉक्टरों को मिला हुआ है. लेकिन, झारखंड में धरती के भगवान ढूंढने पर भी झारखंड सरकार को नहीं मिल रहा है. ज्यादातर अस्पतालों और स्वास्थ्य केन्द्रों में डॉक्टरों के पद बड़ी संख्या में खाली रह जा रहे हैं. तमाम कोशिशों के बावजूद भर्तियां पूरी हो ही नहीं पा रही है. जिसके चलते झारखंड में काबिज हेमंत सरकार के लिए परेशानियां पैदा हो गई है.
सरकारी नौकरी में डॉक्टरों की दिलचस्पी घटी
डॉक्टरों की किल्लत का आलम इससे भी लगाया जा सकता है कि जितनी संख्या में वैकेंसी निकाली जा रही है, उतनी संख्या में आवेदक नहीं आ रहे हैं. राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में 100 सीनियर रेजिडेंट डॉक्टरों की नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाले जाने और इंटरव्यू प्रक्रिया पूरी होने के बाद सिर्फ 33 डॉक्टरों का ही चयन किया जा सका. इन पदों के लिए रिम्स में बीते 12 से 17 अगस्त तक इंटरव्यू लिया गया था
सिर्फ 58 आवेदक इंटरव्यू के लिए आए
रिम्स निदेशक डॉ राजीव गुप्ता भी वेकेंसी निकाले जाने के बावजूद डॉक्टरों की दिलचस्पी नहीं रहने से हैरान है . वे बताते हैं कि सभी संकायों के लिए कुल 58 आवेदक ही इंटरव्यू के लिए पहुंचे थे, जिसमे मेडिसिन, ऑर्थो, नेत्र, रेडियोलॉजी, ब्लडबैंक, कार्डिएक एनेस्थिसिया, सुपरस्पेशलिटी इमरजेंसी और सेंट्रल इमरजेंसी में कई पद खाली रह गए. इसी तरह बीते सितंबर महीने में जेपीएससी द्वारा गैर शैक्षणिक विशेषज्ञ चिकित्सकों की नियुक्ति के लिए आयोजित इंटरव्यू में बेहद कम संख्या में उम्मीदवार पहुंचे.नॉन टीचिंग स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के 771 पदों के लिए इंटरव्यू लिया गया, जिसमें मात्र 266 उम्मीदवार ही इंटरव्यू में शामिल हुए.
सरकारी नौकरी में दिलचस्पी घटी
आयोग ने साल 2015 में भी 654 पदों पर नियुक्ति के लिए इंटरव्यू लिया गया था. लेकिन यहां भी उम्मीदवारों में कोई दिलचस्पी देखने को को नहीं मिली, 492 पद ऐसे ही खाली रह गये. डॉक्टरो की सरकारी नौकरी में दिलचस्पी नहीं लेने की वजह कॉरपोरेट सेक्टर में बेशुमार अवसर है. प्राइवेट हॉस्पिटल्स में ऊंचे पैकेज की नौकरियां मिलने से सरकारी संस्थान में जाने में उनकी उतनी दिलचस्पी नहीं रह गई है. इसके साथ ही दूसरा पहलू ये भी है कि झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों और संसाधनविहीन हॉस्पिटलों में जाना उन्हें पसंद नहीं है. ज्यादतर डॉक्टर खुद का क्लिनिक खोलने और बड़े शहरों की तरफ रुख कर रहें हैं.
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