रांची (RANCHI): दिव्यांगता का आशय प्रायः एक ऐसी स्थिति से है, जिसमें कोई व्यक्ति विशेष किसी विशेष व्यक्ति के सामान्य मानक की तुलना में कार्य करने में असमर्थ होता है. ‘दिव्यांगता’ शब्द का प्रयोग अक्सर व्यक्तिगत कामकाज को संदर्भित करने के लिये किया जाता है, जिसमें शारीरिक हानि, संवेदी हानि, संज्ञानात्मक हानि, बौद्धिक हानि, मानसिक बीमारी और विभिन्न प्रकार के जीर्ण रोग शामिल हैं. दिव्यांगता एक ऐसा अभिशाप जो किसी भी व्यक्ति को लग सकता है . समाज मे बहुतेरे ऐसे लोग मिल जाएंगे जो शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम है. परंतु इन अक्षम लोगों के लिए समाज में वो स्थान हासिल नही हो सका जो सामान्य इंसान को हो पाता है. वजह कई है, समाज हो या घर दिव्यांगों की जिंदगी उपेक्षा के कारण अभावग्रस्त रह जाती है. ऐसे में उनकी कौन सुने, ज्यादातर लोग ये भी नहीं जानते कि उनके घर के आस-पास समाज में कितने लोग दिव्यांग हैं. समाज में उन्हें बराबर का अधिकार मिल रहा है कि नहीं. अच्छी सेहत और सम्मान पाने के लिये तथा जीवन में आगे बढ़ने के लिये उन्हें सामान्य लोगों से कुछ सहायता की ज़रुरत है. लेकिन, आमतौर पर समाज में लोग उनकी सभी ज़रुरतों को नहीं जानते हैं. आँकड़ों के अनुसार, ऐसा पाया गया है कि, लगभग पूरी दुनिया के 15% लोग विकलांग हैं. इन दिव्यांगों की सहायता व समान जीवन जीने के अधिकार को देखते हुए समाज को इनको महत्व देना अति आवश्यक हो गया. इसलिये, दिव्यांगजनों की वास्तविक स्थिति के बारे में लोगों को जागरुक करने के लिये इस उत्सव को मनाना बहुत आवश्यक है. दिव्यांगजन “विश्व की सबसे बड़ी अल्पसंख्यकों” के तहत आते हैं और उनके लिये उचित संसाधनों और अधिकारों की कमी के कारण जीवन के सभी पहलुओं में ढ़ेर सारी बाधाओं का सामना करते हैं.
वर्ष 2015 में मोदी ने दिया था नाम दिव्यांग
वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो पर अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में शारीरिक रूप से अक्षम लोगों को नया नाम दिया. मोदी ने कहा कि विकलांगों के लिए 'दिव्यांग' शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, क्योंकि उनके पास एक अतिरिक्त शक्ति होती है. इसके बाद से भारत में इन्हें विकलांग की जगह दिव्यांग कहा जाने लगा .
कैसे शुरू हुआ दिव्यांग दिवस
अन्तर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस अथवा अन्तर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस प्रतिवर्ष तीन दिसंबर को मनाया जाता है. वर्ष 1976 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा के द्वारा “विकलांगजनों के अंतरराष्ट्रीय वर्ष” के रूप में वर्ष 1981 को घोषित किया गया था. परंतु इस दिवस की शुरुआत वर्ष 1992 में ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा’ के प्रस्ताव 47/3 द्वारा की गई थी. इसी के साथ वर्ष 2006 में ‘कन्वेंशन ऑन द राइट्स ऑफ पर्सन्स विथ डिसेबिलिटी’ (CRPD) को भी अपनाया गया था. इसका उद्देश्य सतत् विकास हेतु वर्ष 2030 के एजेंडे के कार्यान्वयन के माध्यम से दिव्यांग व्यक्तियों के लिये समान अवसर प्रदान करने की दिशा में काम करना है. दिव्यांगों के प्रति सामाजिक कलंक को मिटाने और उनके जीवन के तौर-तरीकों को और बेहतर बनाने के लिये उनके वास्तविक जीवन में बहुत सारी सहायता को लागू करने के द्वारा तथा उनको बढ़ावा देने के लिये साथ ही दिव्यांग लोगों के बारे में जागरुकता को बढ़ावा देने के लिये इसे सालाना मनाने के लिये इस दिन को खास महत्व दिया जाता है. साल 1992 से, इसे पूरी दुनिया में ढ़ेर सारी सफलता के साथ इस वर्ष तक हर साल से लगातार मनाया जा रहा है. जीवन के हरेक पहलू में समाज में सभी विकलांग लोगों को शामिल करने के लिये भी इसे देखा जाता है जैसे राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक. इसी वजह से इसे “विश्व विकलांग दिवस” के शीर्षक के द्वारा मनाया जाता है. विश्व विकलांग दिवस का उत्सव हर साल पूरे विश्वभर में दिव्यांग लोगों के अलग-अलग मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करता है.
क्यों जरूरी है दिव्यांग दिवस
इस उत्सव को मनाने का महत्वपूर्ण लक्ष्य दिव्यांगजनों के अक्षमता के मुद्दे की ओर लोगों की जागरुकता और समझ को बढ़ाना है. समाज में उनके आत्म-सम्मान, लोक-कल्याण और सुरक्षा की प्राप्ति के लिये दिव्यांगजनों की सहायता करना. जीवन के सभी पहलुओं में दिव्यांगजनों के सभी मुद्दे को बताना. इस बात का विश्लेषण करें कि सरकारी संगठन द्वारा सभी नियम और नियामकों का सही से पालन हो रहा है या नहीं. समाज में उनकी भूमिका को बढ़ावा देना और गरीबी घटाना, बराबरी का मौका प्रदान कराना, उचित पुनर्सुधार के साथ उन्हें सहायता देना. उनके स्वास्थ्य, सेहत, शिक्षा और सामाजिक प्रतिष्ठा पर ध्यान केन्द्रित करना. अधिकतर लोग जाने अनजाने दिव्यांग की अनदेखी करते है और ये एक बड़ा कारण बंता है दिव्यांगों के मनोबल गिरने का. इसलिये, विकलांगजनों की वास्तविक स्थिति के बारे में लोगों को जागरुक करने के लिये इस उत्सव को मनाना बहुत आवश्यक है. विकलांगजन “विश्व की सबसे बड़ी अल्पसंख्यकों” के तहत आते हैं और उनके लिये उचित संसाधनों और अधिकारों की कमी के कारण जीवन के सभी पहलुओं में ढ़ेर सारी बाधाओं का सामना करते हैं.
विश्व में दिव्यांगों की स्थिति
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 01 बिलियन से अधिक लोगों के दिव्यांगता से प्रभावित होने का अनुमान है और भविष्य में जनसंख्या में वृद्धि और और गैर-संचारी रोगों के प्रसार के साथ और अधिक बढ़ सकता है. वर्ष 2020 जारी की गई विकलांगता पर ‘राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की लगभग 2.2% आबादी किसी न किसी तरह की शारीरिक या मानसिक अक्षमता से प्रभावित है.
भारत सरकार से करें सीधी बात
देश मे लगभग लगभग 22 करोड़ दिव्यांग है . भारत मे दिव्यांगों के लिए सरकारी साइट उपलब्ध है जहा वो स्वयं या उनके विषय में कोई और मंत्रालय से सीधी बात करके अपनी समस्या या अपने लिए सहायता की मांग कर सकता है. लिंक नीचे दिया जा रहा है.
https://disabilityaffairs.gov.in/contenthi/
भारत सरकार के द्वारा दिव्यांग व्यक्तियों के समुदाय के लिए यह एक परस्पर संवाद मंच है जो सम्मिलित डोमेन मे सामूहिक अधिगम प्रक्रिया में संलग्न है. इससे लोगों को अपने क्षेत्र से संबन्धित जानकारी, अधिगम और सूचनाएँ बांटने में मदद मिलेगी. दिव्यांगता वार समुदाय सक्रिय रूप से इस मंच पर अपने कल्याण और पुनर्वास के लिए संपर्क कर सकते हैं.
झारखंड मे दिव्यांगों की स्थिति
झारखंड में दिव्यांग का वास्तविक आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं परंतु झारखण्ड राज्य की कुल जनसंखया में 5-6% दिव्यांगजनों की है. इनके लिए सरकार द्वारा आरक्षण सहायता और देखरेख केंद्र की स्थापना तो हुई है परंतु इसका लाभ मात्र 30 प्रतिशत दिव्यांगों को ही मिल सका है. रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में लगभग 21 फीसद दिव्यांग सरकारी योजनाओं का लाभ लेते हैं. बड़ी बात यह है कि शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों के दिव्यांग सरकारी लाभ अधिक लेते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में 22.6 फीसद जबकि शहरी क्षेत्रों में 14 फीसद दिव्यांग ही सरकारी योजनाओं का लाभ लेते हैं. वहीं, राज्य में एक फीसद से भी कम दिव्यांगों को एनजीओ से किसी प्रकार का लाभ मिलता है. रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में लगभग दो फीसद दिव्यांग अकेले रहते हैं. राज्य के कुल दिव्यांगों में 33.5 फीसद जन्म से ही दिव्यांग हैं. झारखंड में सात वर्ष से अधिक आयु के 48.6 फीसदी दिव्यांग ही साक्षर हैं. पुुरुषों में साक्षरता दर 57.7 फीसद तथा महिलाओं में 35 फीसद है. ग्रामीण क्षेत्रों के दिव्यांगों में साक्षरता दर 44 फीसद हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में 64.4 फीसद दिव्यांग साक्षर हैं. राज्य के लगभग 17 फीसद दिव्यांग मैट्रिक पास हैं. पुरुषों व महिलाओं में यह दर क्रमश: 21.6 तथा 9.8 फीसद है.
दिव्यांगों को मुख्यधारा से जोड़ना अति आवश्यक
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-41 में वर्णित राज्य के नीति निर्देशक तत्व में यह स्पष्ट प्रावधान अंकित किया गया है कि यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह विकलांगों के कल्याण के लिए प्रभावकारी नियम बनाए, जिससे उनका कल्याण हो सके. झारखण्ड राज्य की संस्कृति न्याय, समानता को महत्त्व प्रदान करती है तथा सहयोग भेदभाव मिटाने को बढ़ावा देती है. यह एक स्थापित रूप है कि यदि विकलांगों को भी समुचित अवसर प्रदान किया जाये तो वह एक बेहतर और स्वतंत्र जीवन की ओर अग्रसर हो सकते हैं. जिनमे विकलांग व्यक्तियों के लिए (समान अवसर, अधिकार की सुरक्षा और संपूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995, के अनुसार शिक्षा, रोजगार, मुक्त वातावरण का निर्माण एवं सामाजिक सुरक्षा आदि. आत्म-विमोह, पक्षाघात, मानसिक मंदता एवं बहुविकलांगता अधिनियम, 1999 की सहायता हेतु गठित राष्ट्रीय न्यास में चारों वर्गो के लिए विधिवत् देखभाल की जिम्मेवारी एवं खुशहाल वातावरण कायम करने का प्रावधान उद्घृत किया गया है ताकि विकलांग व्यक्ति यथासंभव स्वतंत्र जीवन यापन कर सके. विकलांगता पर झारखण्ड राज्य की नीति का उद्देश्य विकलांगजनों से संबंधित कानूनों को क्रियान्वयन एवं लागू करना यू0एन0सी0आर0पी0डी और अन्य राष्ट्रीय कार्यक्रमों से संबंधित कानूनों द्वारा इन्हें मुख्यधारा से जोड़ा जाये.
दिव्यांग नीति के उद्देश्य
दिव्यांगता अधिकार, मूल्य और व्यवहार को सरकार की विकास नीतियों, योजनाओं एवं कार्यक्रमों में विकलांगता अधिकार मूल्यों और व्यवहारों को सम्मिलित एवं प्रोत्साहित किया जाय. सरकार के विभिन्न कार्यक्रमों में दिव्यांगता योजना, क्रियान्वयन और अनुश्रवण के लिए संमेकित प्रबंधन प्रणाली को तैयार करना. राज्य एवं जिला स्तर पर ढांचा तैयार करना जो लगातार नीतियों एवं नीति विकास के साथ योजना बनाएगी जिनमे मुख्य भूमिका दिव्यांग लोगों के संघ, सरकार, निजी एवं सामान्य सेक्टर का होगा. सरकार हर स्तर पर क्षमता बढाने की रणनीति बनाएगी जो झारखण्ड राज्य दिव्यांगजन नीति में दिए गए सुझाव के अनुरूप होगा. सरकार द्वारा एक विस्तृत कार्य योजना तैयार की जाएगी जिसके अन्तर्गत कार्यक्रम योजना, सद्गाक्त जन शिक्षा और जागरूकतापूर्ण कार्यक्रम होंगे जो समाज में व्याप्त भेदभाव को मिटाने में कारगर सिद्ध होगा.
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