धनबाद(DHANBAD) : ट्रेड लाइसेंस का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर निकला है. शहरी क्षेत्र में धंधा-व्यवसाय करने के लिए ट्रेड लाइसेंस जरूरी है. ट्रेड लाइसेंस के बिना बैंक से लोन नहीं मिलेगा और न जीएसटी नंबर. किसी कंपनी के साथ कारोबार करने के लिए भी ट्रेड लाइसेंस की जरूरत पड़ती है. लेकिन यह ट्रेड लाइसेंस धनबाद में 'चू चू का मुरब्बा' बन गया है. व्यापारियों को इसे ना निगलते बन रहा है और न उगलते ही. ठीक उसी तरह निगम का भी यही हाल है. ट्रेड लाइसेंस नहीं होने से एक तरफ कारोबारियों को जहां परेशानी हो रही है, वहीं सरकार को राजस्व की हानि हो रही है. बावजूद इसका कोई समाधान ढूंढने की दिशा में कार्रवाई नहीं की जा रही है. व्यवसायियों की माने तो ट्रेड लाइसेंस कोई मालिकाना हक नहीं है, बल्कि यह सबूत है कि अमुक आदमी कारोबारी है और फला जगह पर वह कारोबार करता है.
30 हजार से अधिक ट्रेड लाइसेंस निर्गत हुए थे लेकिन नवीनीकरण में रूचि नहीं
निगम ने कुल 30 हजार से अधिक ट्रेड लाइसेंस निर्गत किया था, जब नवीकरण बारी आई तो 5700 कारोबारियों ने नवीनीकरण करवाया है. कारोबारियों को तो लाइसेंस की जरूरत है इसलिए वह नया लाइसेंस बनवाने में अधिक जोर दे रहे है. इसके पीछे वजह है कि नए लाइसेंस बनवाने में होल्डिंग नंबर के नियम को शिथिल कर दिया गया है. लेकिन पुराने लाइसेंस को रिनुअल करने के लिए होल्डिंग नंबर मांगा जा रहा है. और यही होल्डिंग नंबर दुकानदारों के लिए परेशानी का बहुत बड़ा कारण बन गया है.
ट्रेड लाइसेंस व्यापारियों की केवल पहचान मात्रा है
बैंक मोड चेंबर के पूर्व अध्यक्ष सुरेंद्र अरोड़ा का कहना है कि ट्रेड लाइसेंस व्यापारियों की पहचान है, लेकिन जो दुकानदार भाड़े पर दुकान लेकर चलाते हैं, वह होल्डिंग नंबर कहां से देंगे. हां, अगर निगम चाहे तो भाड़े की रसीद ले सकता है. वही बैंक मोड़ चेंबर के संयुक्त सचिव लोकेश अग्रवाल का कहना है कि नगर निगम से लाइसेंस के अलावे व्यापारियों को झारखंड सरकार से जे पीटी नाम से एक लाइसेंस लेना पड़ रहा है. उन्होंने खुलासा किया कि 5 साल पहले ट्रेड लाइसेंस के लिए पैसे लिए गए, यह राशि तो सरकार के खाते में चली गई लेकिन लेकिन कारोबारियों को ट्रेड लाइसेंस नहीं मिला. बैंक मोड चैम्बर के प्रमोद अग्रवाल का कहना है कि ट्रेड लाइसेंस व्यापारियों की पहचान है. सरकार को भी राजस्व मिलता है. होल्डिंग मांगने का तरीका सही नहीं है. यह सब हुआ है सरकार को गलत सुझाव देने के कारण, सरकार को चाहिए कि जमीनी सच्चाई पता करें और उसके हिसाब से नियम लागू करें अन्यथा व्यापारी भी परेशान हो रहे हैं और सरकार को भी राजस्व की हानि हो रही है.
रिपोर्ट: शाम्भवी सिंह धनबाद
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