धनबाद(DHANBAD): 1971 और 1977 में धनबाद लोकसभा में जिस ढंग का चुनाव प्रचार हुआ,वह इतिहास बन गया. ऐसा उसके बाद कभी नहीं हुआ और आगे भी होने की संभावना बिल्कुल नहीं है. अब तो सब कुछ बदल गया है. 1971 में जहां एक निर्दलीय प्रत्याशी ने धनबल का उपयोग किया, वही 1977 के चुनाव में धन बल गौण हो गया. उसका कोई महत्व ही नहीं रह गया. जेल में बंद एके राय चुनाव जीत गए. 1971 और 1977 का चुनाव आज भी लोगों को रोमांचित करता है. 1971 में जहां हेलीकॉप्टर के भरोसे चुनाव प्रचार किया गया था, वही 1977 में कार्यकर्ताओं ने खिचड़ी के भरोसे चुनाव में एके राय को जीत दिला थी. 1971 के चुनाव में हेलीकॉप्टर का दिखना लोग अनोखा मानते थे. हेलीकॉप्टर पर चढ़ना तो सपना के समान था. 1971 में लड़ाई जनबल और धनबल के बीच थी. परिणाम की लोग बेसब्री से इंतजार करते रहे.
उस समय कोयला खदानें निजी हाथों में थी
बुजुर्ग बताते हैं कि उस समय बर्न स्टैंडर्ड नाम की निजी कंपनी के अधीन धनबाद की कई कोयला खदानें थी. प्राण प्रसाद बर्न स्टैंडर्ड कंपनी के कर्ताधर्ता थे. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रामनारायण शर्मा के खिलाफ प्राण प्रसाद निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े हो गए. 1971 के चुनाव में कुल 15 प्रत्याशी मैदान में थे. प्राण प्रसाद का नाम सुनते ही कांग्रेसी खेमा परेशान हो गया था. प्राण प्रसाद ने चुनाव प्रचार के लिए हेलीकॉप्टर मंगा लिया था. चुनाव क्षेत्र में पर्चा गिराने के लिए हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल होने लगा. पर्चा लेने और हेलीकॉप्टर देखने के लिए लोग इंतजार करते थे. हेलीकॉप्टर जब ऊपर से गुजरता तो उसे देखने और पर्चा पाने के लिए घर से बाहर पुरुष, महिला और बच्चे निकल जाते थे. लोग तो यह भी बताते हैं कि कार्यकर्ताओं को प्राण प्रसाद ने उस समय की सबसे प्रसिद्ध राजदूत मोटरसाइकिल दी थी और कहा था कि अगर चुनाव जीत गए, तो यह उनकी हो जाएगी. सबको यही सोच रहा था कि प्राण प्रसाद धनबाद से जीत जाएंगे. उसे समय कोयलांचल की कोयला खदानें प्राइवेट कंपनियों के हाथ में थी. लेकिन चुनाव का जब परिणाम आया तो सब कोई आश्चर्य में पड़ गया. प्राण प्रसाद चुनाव हार गए थे.
1977 में एके राय ने जेल से लड़ा था चुनाव
इसी प्रकार 1977 में जब चुनाव हुआ तो जेल से ही एके राय ने नामांकन भर दिया. लेकिन पैसे की कमी थी, चुनाव के लिए संचालन समिति गठित की गई थी. बीसीसीएल, एफसीआई और बोकारो स्टील कारखाना के मजदूर आकार चुनाव प्रचार करते थे. ना बैनर, ना पोस्टर , और ना कोई होर्डिंग, केवल दीवार लेखन और घर-घर प्रचार के दम पर एके राय चुनाव जीत गए थे. सामने कांग्रेस के प्रत्याशी राम नारायण शर्मा थे. लेकिन उन्हें 63000 से भी अधिक मतों से हार का सामना करना पड़ा था. आज तो चुनाव का परिदृश्य से बदल गया है अब ना खिचड़ी के भरोसे चुनाव लड़े जाते हैं और नहीं खुद के पैसे से कार्यकर्ता प्रत्याशी के लिए गांव-गांव घूमते है. गांव-गांव घूम कर एक मुट्ठी चावल भी नहीं मांगते है. यह बात तो आईने की तरह साफ है कि धनबाद लोकसभा में 1971 और 1977 में जो चुनाव प्रचार का तरीका था ,वह आगे अब कभी देखने को नहीं मिलेगा.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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