रांची (TNP Desk) : लोकसभा चुनाव 2024 के रण में देश भर के विभिन्न पार्टियों के नेता कूद गए हैं. आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है. हर वार का पलटवार भी किया जा रहा है, लेकिन इन सबके बीच महंगाई का मुद्दा गौन है, ज्यादा शोर सुनाई नहीं दे रहा है. जबकि महंगाई एक सबसे बड़ा मुद्दा है क्योंकि ये आम लोगों से जुड़ी हुई है. लोग अपनी सैलरी के अनुसार घर का बजट तैयार करते हैं लेकिन अगर अचानक महंगाई बढ़ जाए तो घर का बजट बिगड़ जाता है. क्योंकि महंगाई के अनुसार उनकी आमदनी नहीं बढ़ती है. लोगों की अपेक्षाएं भी होती है कि सरकार महंगाई को कम करे. लेकिन पिछले 10 सालों में कई समान के दाम दोगुने से चारगुने तक बढ़ गई.
10 साल पहले बीजेपी ने महंगाई को बनाया था मुद्दा
आपको याद होगा जब मनमोहन सिंह की सरकार थी तो उस समय महंगाई काफी बढ़ गई थी. उनके कार्यकाल में करीब 10 फीसदी तक महंगाई बढ़ गई थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने इसी को मुद्दा बनाया और अपने घोषणापत्र में इसका जिक्र किया था और इसे कम करने के लिए कई वादे किए थे. चुनावी सभा में भी महंगाई को सबसे पहले रखा था और कहा था कि एनडीए की सरकार बनी तो सबसे पहले महंगाई पर लगाम लगाएंगे. घोषणापत्र में महंगाई को कम करने के लिए कई चिजों का तर्क दिया था. जिसमें जमाखोरी और कालाबाजारी रोकने के उपाय, दाम स्थिारीकरण कोष बनाना, एफसीआई की क्षमता बढ़ाने के लिए खरीद, भंडारण व वितरण का काम अलग-अलग करना, एकल राष्ट्रीय कृषि बाजार का गठन करना आदि का जिक्र किया था. भाजपा ने इसी मुद्दे को ढाल बनाकर सत्ता में आयी लेकिन महंगाई कम नहीं हुआ और बढ़ती ही चली गई.
आंकड़ों की नजर से समझिए
साल 2023 में औसत महंगाई दर 5.69 प्रतिशत, साल 2022 में औसत महंगाई दर 6.7 प्रतिशत, साल 2021 में औसत महंगाई दर 5.13 प्रतिशत, साल 2020 में औसत महंगाई दर 6.62 प्रतिशत, साल 2019 में औसत महंगाई दर 3.73 प्रतिशत, साल 2018 में 3.94 प्रतिशत औसत महंगाई दर रहा. 2017 में 3.33 प्रतिशत, 2016 में 4.95 प्रतिशत, 2015 में 4.91 प्रतिशत, 2014 में 6.67 प्रतिशत और 2013 में औसत महंगाई दर 10.2 प्रतिशत रही. ये तो सरकारी आंकड़ा है जो आपके रोजमर्रा की चीजें से उलट है. आप बाजार जाते हैं तो वास्तविक महंगाई पता होगा.
कितनी बढ़ी दैनिक रोजमर्रा की चीजें ?
2019 में जो चावल 31 रुपए थी वो अब 40 रुपए मिल रही है. 2019 में गेंहू 26 रुपए था अब 31 रुपए हो गयी. वहीं आटा 2019 में 27-28 रुपए मिल रहा था अब 40 रुपए प्रति किलो मिल रहा है. चना दाल 2019 में 65 रुपए था अब 75 रुपए बिक रहा है. अरहर दाल पहले 79 रुपए लोगों को मिल जाता था अब 125-130 रुपए किलो मिल रहा है. सरसों तेल 2019 में 108 था अब 160 रुपए मिल रहा है. 10 साल पहले यही चीजें आधे से भी कम कीमत में लोगों को मिल जाता था. आपको याद होगा कुछ महीने पहले टमाटर 250 से 300 रुपए किलो बिक रहा था. यूपीए सरकार को बेदखल कर मोदी सरकार जब 2014 में सत्ता में आई थी तब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम 110 डॉलर प्रति बैरेल था. पेट्रोल 71.41 रुपए और डीजर 55.49 रुपए प्रति लीटर मिल रहा था. कुछ राज्यों में अभी भी पेट्रोल करीब 100 रुपए मिल रहा है. झारखंड में पेट्रोल 98.56 और डीजल 93.36 रुपए प्रति लीटर मिल रहा है. कुछ समय पहले पेट्रोल सौ रुपए के पार चला गया था. एलपीजी सिलेंडर भी हजार के पार चला गया था. कुछ ही महीने पहले अदरक और लहसुन ने भी महंगाई का रौद्र रूप दिखाया था, जब इनकी कीमतें 400 रुपए प्रति किलो के करीब पहुंच गई थी.
अब आप खुद आंकलन कर सकते हैं कि महंगाई के मोर्चे पर सरकार कितनी सफल रही या नहीं. इस लोकसभा चुनाव 2024 में भी विपक्षी दलों के नेता महंगाई के मुद्दों को जनता के सामने रख रही है. देखना होगा कि इस मुद्दे पर विपक्ष कितना सफल हो पाती है. क्योंकि 10 साल पहले बीजेपी ने इसी को मुद्दा बनाकर सत्ता में आयी थी.
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