किशोरावस्था में ही बच्चे हो रहे हिंसक, आखिर क्यों -जानिए मनोचिकित्सक की जुबानी


धनबाद (DHANBAD): किशोरावस्था से ही बच्चे महत्वकांक्षी होते जा रहे हैं. फिल्मी दुनिया की तरह वह असली दुनिया की कल्पना कर बैठते हैं. यह एक बड़ा कारण है कि बच्चे अपराध की दुनिया में चले जा रहे हैं. अपराध की दुनिया भविष्य पर क्या असर पड़ेगा, असल में बच्चे यह समझ नहीं पाते हैं. धनबाद के भूली के शुभम सिंह के साथ शायद ऐसा ही कुछ हुआ होगा. जिसका अंत पुलिस की गोली से हुई. यह सच है कि टीनएजर तड़क-भड़क देखकर अपराध की दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं. स्कूली बच्चे हिंसक हो रहे हैं, मोबाइल का प्रचलन भी इस कदर बढ़ गया है कि अभिभावक भी बच्चों की जिद के आगे झुक जाते हैं और उन्हें उनके मुंह मांगे ब्रांड के मोबाइल देकर निश्चिंत हो जाते है.
पुलिस एनकाउंटर में मारे गये शुभम सिंह की उम्र 17 18 साल ही थी
मंगलवार को मुथूट डाका कांड में भूली का जो लड़का शुभम सिंह मारा गया, उसकी भी उम्र 17 18 साल ही थी. इतने कम उम्र में वह अपराध की दुनिया में प्रवेश कर चुका था और उसी में फंसता चला गया. नतीजा हुआ कि उसे अपनी जान गंवानी पड़ी. इस संबंध में जब मनोचिकित्सक डॉ. शिल्पा कुमारी से बात की गई तो उन्होंने कई ऐसी बातें बताई, जो चौंकाने वाली थी. उन्होंने अपने डॉक्टरी अनुभव को साझा करते हुए कहा कि उनके पास 14 साल की एक बच्ची को लेकर उनके अभिभावक आए थे, बच्ची मोबाइल की जिद कर रही थी और कह रही थी कि अगर मोबाइल नहीं मिलेगा तो वह आत्महत्या कर लेगी और ऐसा करने के लिए वह आगे भी बढ़ चुकी थी. माता- पिता को समय नहीं है कि वह बच्चों को कुछ बता पाए, सिखा पाए या उनकी पीड़ा को जान पाए तो बच्चों को मोबाइल दे देते हैं और वह भी निश्चिंत हो जाते है.
बच्चे मोबाइल में क्या देखते और सिखाते हैं, यह कोई नहीं देखता
ऐसे में मोबाइल में बच्चे क्या देखते हैं, क्या सीखते हैं और क्या उनके मन में है आशंकाएं पैदा होती हैं, इसका अभिभावकों को पता नहीं चलता. आश्चर्य तो यह है कि वही काम कई अभिभावक भी करते हैं. नतीजा होता है कि बच्चे अपने पेरेंट्स को देखकर और ज्यादा उत्साह से यह काम करने लगते हैं. कोरोना काल के बाद यह प्रचलन कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है. ठीक है बच्चों को पढ़ाई के लिए मोबाइल चाहिए तो यह काम लैपटॉप से करने के लिए उन्हें प्रेरित करना चाहिए. अभिभावकों को भी इधर-उधर समय गुजारने की बजाय बच्चों के बीच रहना चाहिए. शुभम सिंह का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि बच्चा पढ़ रहा था, यह जानकारी अभिभावकों को थी लेकिन अभिभावकों ने कभी इसको क्रॉस चेक नहीं किया कि वह कहां पढ़ रहा है, कहां रह रहा है, कैसे लोगों की संगत में है, जिसका नतीजा हुआ कि वह गलत रास्ते पर बढ़ गया और अंततः वह मारा गया.
बच्चे भी हो रहे है हिंसक, साथियो से कर बैठते हैं मारपीट
आपको बता दें कि इसी साल मार्च महीने में सिंदरी डी नोबिली में लड़कों ने आपस में झगड़ा किया, उसके बाद एक लडके की कथित रूप से इस तरह पिटाई कर दी गई कि उसकी जान चली गई. बच्चे की मां धनबाद के अस्पताल में छाती पीट-पीटकर स्कूल प्रबंधन, पुलिस और व्यवस्था से सवाल कर रही थी लेकिन उसका जवाब किसी के पास नहीं था. इसी तरह कोयला नगर डीएवी के बच्चे भी छुट्टी के बाद लाठी-डंडे और पाइप से मारपीट किए, एक लड़के का हाथ लहूलुहान हो गया. इस तरह की सूचनाएं लगातार आ रही हैं,आखिर बच्चे इतने आक्रामक क्यों होते जा रहे हैं,और इसके उपाय क्या है. इस संबंध में डॉ. शिल्पी कुमारी का कहना है कि हम पहले भी घर परिवार में जी रहे थे और आज भी जी रहे हैं लेकिन आज जो परिणाम सामने आ रहे हैं वह कहीं ना कहीं यह बता रहे हैं कि हमारा पिछला तौर तरीका ही सही था.
रिपोर्ट : शाम्भवी सिंह के साथ प्रकाश महतो
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