धनबाद(DHANBAD): झारखंड के ग्रामीण कार्य विभाग में घोटाला पकड़ में आने के बाद अब ग्रामीण सड़क और पुलों की गुणवत्ता पर सवाल उठने स्वाभाविक है. कमीशन बाजी के इस खेल में सड़क और पुलों की क्वालिटी कैसी रही होगी, यह अपने आप में बड़ा सवाल है. सूत्रों के अनुसार 10% से अधिक कमीशन टेंडर में लिया जाता है. अगर इतना कमीशन बंटता है तो फिर इसका असर काम की गुणवत्ता पर भी जरूर पड़ता होगा. ग्रामीण क्षेत्र की सड़क और पुलों के निर्माण की उच्च स्तरीय जांच की बात अब उठने लगी है. यह अलग बात है कि इंजीनियर और ठेकेदारों की आपसी मिली भगत से राज्य संपोषित इन योजनाओं की जांच कभी गंभीरता से होती नहीं है.
आखिर क्यों है ग्रामीण सड़कों का बुरा हाल
कमीशन के चक्कर में ही मंत्री तक आंखें मूंदे बैठे रहते हैं और यही वजह है कि साल- 6 महीने में सड़कें टूटने लगती है. अभी हाल में बनी कई सड़कों की हालत खस्ता हो गई है. इन सड़कों पर वाहनों का चलना मुश्किल हो गया है. हल्की बारिश में भी सड़कें खराब हो जाती है. अक्सर बारिश के मौसम में पुलों के बहने की भी सूचना आती रहती है. कांची नदी पर बना पुल अभी हाल ही में धंस गया था. जिसकी अभी तक जांच चल ही रही है. 2 साल पहले ही 13 करोड़ की लागत से बना कांची नदी पर पुल का पीलर धंस गया था. इस पर सरकार ने जांच बैठाई, लेकिन उसका फलाफल अभी तक कुछ नहीं निकला है. वैसे तो राज्य स्तर पर अक्सर विभागीय योजनाओं, टेंडर से जुड़े कामों का रिव्यू किया जाता है. इसमें विभागीय मंत्री और अधिकारी रहते है.
मंत्री की गिरफ्तारी से खुल गई है पोल -पट्टी
लेकिन ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम की गिरफ्तारी से इस पूरी व्यवस्था की पोल खुल गई है. सूत्रों के अनुसार झारखंड में दो-तीन वर्षों में हज़ारों किलोमीटर से अधिक ग्रामीण सड़क निर्माण की योजना ली गई थी. लगभग प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 1000 किलोमीटर से अधिक रोड का निर्माण कार्य अलॉट किया गया है. 500 से 900 करोड़ तक के काम के लिए निविदा जारी की जाती है. ग्रामीण विकास विभाग में ठेकेदारी से कई लोग रंक से राजा बन गए. जो कल तक किसी तरह जीवन यापन करते थे, आज बड़ी-बड़ी गाड़ियों पर घूम रहे है. मंत्री की गिरफ्तारी के बाद वजह भी साफ हो गई कि आखिर इनकी आमदनी का जरिया क्या है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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