धनबाद(DHANBAD): झारखंड सरकार में मंत्री बन्ना गुप्ता और चर्चित विधायक सरयू राय के बीच छिड़ा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. इधर, सरयू राय ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर मंत्री बन्ना गुप्ता के आरोपों की जांच कराने की मांग की है. सरयू राय ने कहा है कि जांच होने से ही दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा. मुख़्यमंत्री को संबोधित पत्र में कहा है कि आपके स्वास्थ्य मंत्री मेरे विरूद्ध उन्हीं आरोपों को दुहरा रहे हैं, जो आरोप पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के करीबी पिछले चार वर्षों से मेरे उपर लगा रहे है.
मंत्री का सरयू राय पर पहला आरोप
पहला आरोप है कि मैंने एक पणन पदाधिकारी (मार्केटिंग ऑफिसर) को बहाल कर दिया. इसमें तथ्य यह है कि जब मैं खाद्य, सार्वजनिक वितरण एवं उपभोक्ता मामले विभाग का मंत्री था, तब विभाग में पणन पदाधिकारियों की काफी कमी हो गई थी, तो विभाग ने निर्णय किया कि विभाग से जो लोग सेवानिवृत हुए हैं, उनसे आवेदन मांगा जाए और जिनपर कोई आरोप नहीं है, उन सेवानिवृत पदाधिकारियों को संविदा पर रख लिया जाए. इसी क्रम में एक सेवानिवृत पणन पदाधिकारी, सुनील शंकर मेरे पास अपना आवेदन लेकर आये. मैंने उस आवेदन को संचिका में लगाकर विभागीय सचिव को भेजा कि यदि इनपर कोई आरोप नहीं है और ये योग्य हैं तो इन्हें संविदा पर पुनः नियुक्त कर लिया जाए. विभागीय सचिव ने जाँचोपरांत इसकी अधिसूचना जारी कर दी. इसके साथ ही कई अन्य सेवानिवृत पणन पदाधिकारियों का आवेदन आया तो विभाग ने उनकी छानबीन की और एक समिति बनाकर उनमें से जिनपर कोई आरोप नहीं थे , उन्हें नियुक्त किया.
मंत्री का सरयू राय पर दूसरा आरोप
मंत्री का दूसरा आरोप है कि जब मैं मंत्री था तो विभाग की नीतियों एवं कार्यक्रमों तथा केन्द्र सरकार के निर्देशों से जिला पदाधिकारियों, राशन डीलरों और उपभोक्ताओं को अवगत कराने के लिए एक पत्रिका निकालने का निर्णय हुआ. इसकी 10 प्रतियाँ प्रत्येक राशन दुकान पर रखने का निर्णय भी हुआ. यह कार्य करने का जिम्मा जिला आपूर्ति पदाधिकारियों को दिया गया. शुरूआती दौर में वित्त विभाग का परामर्श लेकर सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के द्वारा निर्धारित दर पर पत्रिका का प्रकाशन विश्व खाद्य दिवस के अवसर पर शुरू कराया गया. इस बारे में संचिका में झारखण्ड सरकार के तत्कालीन वित्त सचिव, अमित खरे की टिप्पणी अवलोकनीय है. तीन माह बाद पत्रिका प्रकाशन के लिए निविदा प्रकाशित की गई, उस निविदा में यह शर्त राखी गई कि पूर्व से इसका मुद्रण करने वाले मुद्रक को भुगतान की जो दर निर्धारित है, यदि निविदा में उससे कम न्यूनतम दर आती है तो दोनों का अन्तर मुद्रक से वसूल कर लिया जाए. संयोगवश निविदा में उसी मुद्रक की दर न्यूनतम आई, जो पहले से इसका मुद्रण कर रहा था. इस न्यूनतम दर और जिस दर से मुद्रक को पहले भुगमान किया जा रहा था, दोनों के अन्तर के हिसाब से उस मुद्रक से पैसा वसूल लिया गया. इसमें कहीं भी राज्य के खजाने का एक पैसा भी नुकसान नहीं हुआ है.
मंत्री का सरयू राय पर तीसरा आरोप
मंत्री का तीसरा आरोप आउटबाउंडिंग कॉल के बारे में है. आउटबाउंडिंग कॉल के लिए एजेंसी का निर्धारण निविदा के आधार पर हुआ और यह निविदा विभाग ने नहीं बल्कि निदेशालय ने किया. जिस एजेंसी का चयन निदेशालय द्वारा हुआ, वह काम करने लगा. इसके चयन में मेरा कोई सरोकार नहीं था. इस कार्य की अवधि पूर्ण हो गई, तो मेरे पास अवधि विस्तार करने के लिए निदेशालय से आग्रह आया तो मैंने कुछ दिनों के लिए इसे अवधि विस्तार देने का निर्देश दे दिया. पूर्व मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास के नजदीकियों ने यह मामला जाँच के लिए भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में भेजा. भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के जाँचकर्ता ने कहा कि आवेदन में जो भी कागजात दिये गये वे सभी फोटोकॉपी है. इसका ऑरिजनल से मिलान करने के लिए पी.ई. दर्ज कर जाँच जरूरी प्रतीत होता है. इस मामले में खाद्य, सार्वजनिक वितरण एवं उपभोक्ता मामले विभाग ने भी अलग से भी जाँच की है.