धनबाद जिले में टीवी के सबसे ज्यादा संक्रमित मरीज, जानिए क्या हैं इसके कारण


धनबाद(DHANBAD) धनबाद का एक चेहरा वह भी है तो एक यह भी है. धनबाद में चलाए गए टीवी खोज अभियान के दौरान धनबाद प्रखंड से 35, निरसा प्रखंड से 23, गोविंदपुर प्रखंड से 16, झरिया से 13, बलियापुर से 10, तोपचांची से 10, बाघमारा से 5, टुंडी से पांच टीवी से संक्रमित मरीज मिले है. मलीन बस्तियों में इनकी संख्या सबसे अधिक है. मलीन बस्तियां टीवी की बीमारी की हॉटस्पॉट बन रही है. जिले में चलाए गए टीवी खोज अभियान के दौरान यह आंकड़ा सामने आया है. जिला यक्ष्मा विभाग के आंकड़े बताते हैं कि टीवी खोज अभियान के दौरान धनबाद जिले में टीवी के कुल 117 मरीज पाए गए है. इनमें सबसे अधिक 35 मरीज धनबाद सदर प्रखंड में मिले है.
केंदुआडीह क्षेत्र में मिले है 17 मरीज
इनमें से 17 मरीजों की संख्या सिर्फ केंदुआडीह क्षेत्र में है. वैसे, विभाग ने सभी संक्रमित मरीजों की दवा शुरू कर दी है. साथ ही लोगों को जागरूक करने का काम भी शुरू कर दिया गया है. बताया जाता है कि कोयला खनन और परिवहन के कारण इलाकों में काफी धूल कण होते है. यहां की मलीन बस्तियों में काफी गंदगी होती है. लोगों को पौष्टिक आहार भी नहीं मिल पाता और वह कुपोषण के शिकार हो जाते है. लोग झोपड़ी नुमा घरों में रहते हैं, जिसमें सूरज की रोशनी नहीं आती. हवा आने -जाने के भी इंतजाम नहीं है. इस क्षेत्र के लोग आसानी से टीवी के संक्रमण की चपेट में आ जाते है. वैसे तो धनबाद के कई चेहरे है. धनबाद का एक चेहरा आपको दिखेगा 8 लेन सड़क के अगल-बगल, जहां एक नया शहर ही बस गया है.
धनबाद का दूसरा चेहरा दिखेगा मलीन बस्तियों में
दूसरा चेहरा दिखेगा मलीन बस्तियों में, जहां प्रदूषण और जहरीली गैस के बीच लोग कैसे रहते हैं, यह देखकर कोई भी आश्चर्य में पड़ जाएगा. कोलियरी के अगल-बगल आबादी रहती है. बगल में ही ब्लास्टिंग होती है. जमीन में दरारें पड़ी होती है. दरारों से गैस का रिसाव होता है, फिर भी लोग वहां रहते है. यह है धनबाद का एक दूसरा चेहरा. धनबाद के दोनों चेहरों में कोई मेल नहीं है.धनबाद जिला कोई आज का जिला नहीं है. 24 अक्टूबर 1956 को बंगाल के मानभूम से कट कर धनबाद जिला बना था. हालांकि 1991 में इसके भी दो टुकड़े हुए और बोकारो जिला धनबाद से अलग होकर बना. अपने इस लंबे जीवन काल में धनबाद पाया कम, उसकी हाकमरी अधिक हुई. धनबाद के दूसरे चेहरे में जो लोग रहते हैं, वहां न तो नेता जाना पसंद करते हैं, न अधिकारी जाते है. नतीजा होता है कि उनकी जिंदगी भगवान भरोसे कटती है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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