टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : वो कहते है न हर मनुष्य को उनके कर्मों का फल इसी जन्म में भुगतना होता है. बहुचर्चित चारा घोटाले मामले में ये कहावत चरितार्थ हो रही है. डोरंडा ट्रेजरी मामले का फैसला अब 27 साल बाद सामने आया है. लेकिन ये फैसला उस वक्त आया जब कुछ लोगों की उम्र थक चुकी है. बुढ़ापा और बीमारी ने शरीर तोड़ दिया है. ऐसे में इन लोगों को अपनी जिंदगी के करनी का फल बुढ़ापे तक भुगतना पड़ रहा है. जिंदगी के जिन आखिरी लम्हे में जहां उन्हें ये वक्त परिवार के साथ बितानी चाहिए और सेवा लेनी चाहिए ऐसे में ये पल वो जेल में सलाखों में काटेंगे.
सीबीआई कोर्ट के इतिहास में ऐसा पहली बार
ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि इस मामले में जिन लोगों को सजा सुनाई गई है उनमें से कुछ लोग ऐसे हैं जो जिंदगी के आखिरी पल जी रहे हैं. और यह आखिरी पल उन्हें सलाखों के पीछे बितानी पड़ेगी. सबसे पहले बता दे की रांची के सीबीआई कोर्ट के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ होगा कि किसी मामले में एक साथ 124 आरोपियों को फैसला देने के लिए व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में बुलाया गया था. इस दौरान 122 लोग कोर्ट पहुंचे. मगर उन 122 लोगों में कुछ लोग ऐसे थे जो एंबुलेंस से पहुंचे थे. उनकी स्थिति ऐसी थी कि वो ठीक से चल भी नहीं पा रहे थे. कोर्ट के बाहर एंबुलेंस के अंदर बैठे वह अपने करनी के फैसले का इंतजार कर रहे थे. इन लोगों की स्थिति देखकर वहां मौजूद लोगों का यही कहना था कि ‘हाय रे किस्मत’ इसे कहते हैं जैसे करनी वैसी भरनी.
एंबुलेंस के कोर्ट में पहुंचे आरोपी
बता दें कि चारा घोटाले मामले के आरोपी तत्कालीन जिला पशुपालन अधिकारी 90 वर्ष डॉक्टर गौरी शंकर प्रसाद 84 वर्षीय डॉक्टर के एम प्रसाद और आपूर्ति करता 67 वर्षीय मोहम्मद शाहिद एंबुलेंस के कोर्ट में पहुंचे थे. सुनवाई के दौरान तीनों कोर्ट के बाहर एंबुलेंस में ही बैठे रहे. मगर जुर्म तो जुर्म होता है कानून आपकी स्थिति नहीं आपकी गलती देखता है बस यही देखते हुए अदालत में तीनों को दोषी मानते हुए बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा होटवार जेल भेज दिया. इस दौरान कई लोग रोते बिलखते दिखे. उनके चेहरे पर उदासी थी. मगर सजा उम्र के हिसाब से नहीं कर्मों के हिसाब से मिलती है.
जजमेंट आया सामने
26 साल पुराने चारा घोटाले मामले में बीते दिन जजमेंट सामने आया , जिसके तहत कुल 124 लोगों में 35 लोगों को रियाह कर दिया गया. वही 52 लोगों को 3 साल और उससे कम की सजा सुनाई गई है. इसके साथ ही अन्य 37 लोगों के लिए अगली सुनवाई की तारीख निर्धारित की गई है जो की 1 सितंबर की है. 1 सितंबर को इन 37 लोगों का भाग्य तय होगा.
जानिए पूरा मामला
ये 90 के दशक का सबसे बड़ा घोटाला चारा घोटाला को माना जाता है. तब संयुक्त बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव हुआ करते थे. इस दौरान डोरंडा कोषागार से 36 करोड़ 59 लाख रुपये की अवैध तरीके से निकासी हुई थी. यह निकासी साल 1990 से 1995 के दौरान हुआ था. रांची के कई कोषागार से पैसों की बंदर बाट की गई थी. मोटर साइकिल और मोपेड़ पर हजारों किलोमीटर चारा की ढुलाई दिखाई गई थी. इसी मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव को दोषी करार देते हुए जेल भेज दिया गया था. साल 1996 में यह मामला पहली बार सामने आया था. उस वक्त आइएएस अधिकारी अमित खरे को चाईबासा (पश्चिम सिंहभूम) ज़िले का उपायुक्त बनाकर भेजा गया था. उन्होंने चाईबासा ट्रेजरी में छापा मारकर कई लोगों के ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज की थी और ट्रेजरी को भी सील कर दिया गया था. जिसके बाद ये मामला और भी उजागर हो गया. इस घोटाले के कारण लालू प्रसाद यादव को 25 जुलाई 1997 को अपने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा. तब इस मामले में वो पहली बार जेल गए. सीबीआई ने उस समय 53 मामले दर्ज किए थे जिसमे 170 से ज्यादा लोगों को आरोपी बताया था. जिनमे अब तक 56 लोगों की मौत हो गई है.
जानिए कितने का हुआ था घोटाला
इस घोटाले की संख्या जान आपके होश उड़ जाएंगे. ये घोटाला 950 करोड़ से भी ज्यादा का है. सरकार ने 5,664 सूअर, 40,500 मुर्गियां, 1,577 बकरियां और 995 भेड़ की खरीद के लिए 10 करोड़ रुपये मंजूर किए, लेकिन पशुपालन विभाग ने इसके लिए 255.33 करोड़ रुपये निकाल लिए. शुरुआत में 410 करोड़ रुपये की हेराफेरी का अनुमान लगाया, लेकिन बाद में जब इसकी ठीक से जांच हुई तो रकम इससे कई गुना ज्यादा बड़ी थी.
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