लापरवाही : सारंडा के बड़ाजामदा सरकारी अस्पताल में ताला जड़ा देख घर लौट गए मरीज


चाईबासा (CHAIBASA) - बडा़जामदा का सरकारी अस्पताल लौहांचल और सारंडा के मरीजों के लिये सफेद हाथी साबित हो रहा है. लौहांचल और सारंडा के विभिन्न गांवों के मरीज यातायात समेत तमाम प्रकार की समस्याओं को झेलते हुए इस अस्पताल में अपना इलाज कराने आते हैं. इसके बावजूद इन्हें सही मेडिकल सुविधा नहीं मिल पाती हैं. ऐसे में 1 जून को बडा़जामदा स्थित सरकारी अस्पताल में कई बीमार मरीज अपना इलाज कराने आए. लेकिन सुबह लगभग साढे़ ग्यारह बजे तक कोई चिकित्सक और नर्स आदि स्टाफ के नहीं होने की वजह से उन्हें वापस लौटना पड़ा. उस दिन अस्पताल के चिकित्सक डा0 धर्मेन्द्र कुमार और एक नर्स लगभग साढे़ ग्यारह बजे अस्पताल पहुंचे और इस गलती पर पश्चाताप करने लगे. हालांकि यह स्थिति प्रतिदिन की है.
एशिया प्रसिद्ध सारंडा जंगल
उल्लेखनीय है कि प्राकृतिक सुषमा, संरचना, खनिज और वन संपदा से परिपूर्ण यह सात सौ पहाड़ियों की घाटी के नाम से एशिया प्रसिद्ध सारंडा जंगल की गोद में बसा सेल की चार बड़ी खादानें किरीबुरु, मेघाहातुबुरु, गुवा और चिडि़या, टाटा स्टील की नोवामुण्डी और बराईबुरु खादान होने के बावजूद सारंडा व लौहांचल में चिकित्सा की कोई बेहतर सुविधा नहीं होना सारंडा को साथ लौहांचल के ग्रामीणों, जनप्रतिनिधियों और राज्य सरकार के लिये अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है. लौहांचल में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए पैसा अथवा फंड की कोई कमी नहीं है. कमी है तो बस बेहतर इच्छा शक्ति नहीं होने की.
कहां से आता है फंड
बता दें कि सेल की किरीबुरु, मेघाहातुबुरु और गुवा खादान प्रबंधन प्रतिवर्ष लगभग 100-120 लाख टन (प्रत्येक खादान का उत्पादन 35-40 लाख टन) अयस्क का उत्पादन जबकि चिडि़या खादान प्रबंधन लगभग तीन-चार लाख टन उत्पादन करती है. इस उत्पादन के एवज में सेल की चारों खदान प्रबंधन ने पश्चिम सिंहभूम की डीएमएफटी फंड में प्रतिवर्ष लगभग एक हजार करोड़ रूपये वर्ष 2011-12 से देते आ रही है. इसके अलावे टाटा स्टील खादान प्रबंधन और सारंडा की अन्य प्राइवेट खादानें भी सैकड़ों करोड़ रूपये प्रति वर्ष डीएमएफटी फंड में देती है. यह पैसा इस लिए खदान प्रबंधन देती है. क्योंकि इन पैसों से खादान से प्रभावित सारंडा के गांवों का सर्वागीण विकास जैसे बेहतर चिकित्सा, शिक्षा, पेयजल, सड़क, बिजली, यातायात आदि सुविधाएं बहाल किया जा सके. लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि आज तक इनमें से कोई भी सुविधा बेहतर तरीके से सारंडा में बहाल अब तक नहीं की जा सकी है.
लागत से हो सकता है स्पेशलिटी सरकारी अस्पताल का निर्माण
जानकारों की माने तो सरकार और प्रशासन अगर ईमानदारी पूर्ण प्रयास करती तो सारंडा जोन में कहीं भी लगभग पांच सौ करोड़ रूपये की लागत से पांच सौ से एक हजार बेड क्षमता की बेहतर सुपर स्पेशलिटी सरकारी अस्पताल बडा़जामदा या सारंडा क्षेत्र के किसी स्थान पर बनाकर सारंडा और आसपास के लोगों को बेहतर चिकित्सा सुविधा निःशुल्क या न्यूनतम दर पर उपलब्ध करा सकती थी. उक्त अस्पताल के डाक्टरों व स्टाफ आदि का खर्च प्रति वर्ष डीएमएफटी फंड से खादान प्रबंधनों द्वारा दी जाने वाली हजारों करोड़ रूपये से वहन करा सकती थी. दुर्भाग्य की बात है कि डीएमएफटी फंड में इतना पैसा आने के बावजूद पूरे जिले में ऐसा एक भी अस्पताल नहीं है जो यहां के गंभीर मरीजों की जान बचा सके. ऐसा कोई अस्पताल नहीं है जहां वेंटिलेटर, सिटी स्कैन, इन्डोस्कोपी, क्लोनोस्कौपी आदि जांच की सुविधा हो. सारंडा में सेल की किरीबुरु-मेघाहातुबुरु (लगभग एक सौ बेड क्षमता), गुवा (लगभग 50-60 बेड) एंव चिडिय़ा अस्पताल के अलावे टाटा स्टील की नोवामुण्डी अस्पताल को छोड़ एक भी ऐसा अस्पताल नहीं है. जहां चौबीस घंटे मरीजों को प्रारम्भिक इलाज उपलब्ध हो सके. मुफ्त चिकित्सा सुविधा का सारा भार सेल की अस्पतालें उठाई हुई है लेकिन यहां जांच और विशेषज्ञ चिकित्सकों की भारी कमी है. छोटानागरा में पच्चीस बेड का सरकारी अस्पताल बनकर तैयार है, लेकिन चिकित्सकों और संसाधनों की भारी कमी से इसकी स्थिति मृत जैसी हो गई है. गंभीर स्थिति में मरीजों को जमशेदपुर या राउरकेला जाना पड़ता है. लेकिन गरीब मरीज ऐसे अस्पतालों का खर्च उठाने में सक्षम नहीं है. केन्द्र सरकार कुछ गरीबों को आयुष्मान कार्ड अवश्य दी है, लेकिन इस कार्ड के माध्यम से इलाज कराने के लिए बेहतर अस्पताल का भी क्षेत्र में होना जरूरी है.
रिपोर्ट : संदीप गुप्ता,गुवा, चाईबासा
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