टीएनपी डेस्क(TNP DESK): झारखंड में 81 विधानसभा सीट है,जिससे निर्वाचित होकर 81 विधायक झारखंड विधानसभा में आम जनों की समस्या लेकर पहुंचते हैं. इन सभी विधायकों की अपनी अलग-अलग कहानी होती है, अपनी मुश्किलें होती है, अपने संघर्ष होते हैं. मगर, इन सभी को पार कर जनता के समर्थन से ये विधायक विधानसभा पहुंचते हैं, इन्ही में से कोई स्पीकर बनता है, कोई मंत्री तो कोई मुख्यमंत्री बनता है. इन्हीं विधायकों की कहानी हम जानेंगे. इस आर्टिकल में हम आज राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के जीवन के बारे में जानेंगे.
बरहेट विधायक और राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन
हेमंत सोरेन वर्तमान में झारखंड के मुख्यमंत्री हैं. 2019 विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया था, तब से लेकर अब तक वो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन हैं. और अगर ऐसा ही चलता रहा और अगले चुनाव तक वे मुख्यमंत्री बने रहें, तो पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के बाद वे अपने पांच साल का पूरा कार्यकाल पूरा करने वाले दूसरे मुख्यमंत्री बन जायेंगे.
हेमंत सोरेन को बैडमिंटन, किताबें और साइकिल पसंद है. लेकिन जब राजनीति की बात आती है तो सब कुछ भुला दिया जाता है. फिर, उनका आमतौर पर अंतर्मुखी स्वभाव एक चतुर सीधी-सपाटता के लिए रास्ता देता है जो साबित करता है कि राजनीति न केवल एक ऐसी चीज है जो उनके परिवार में चलती है बल्कि उनका अपना निजी जुनून भी है.
10 अगस्त को सीएम हेमंत का जन्मदिन
हेमंत का जन्म 10 अगस्त 1975 को शिबू और रूपी सोरेन के दूसरे बेटे के रूप में हुआ था. उनके बड़े भाई दुर्गा की ब्रेन हैमरेज के कारण आकस्मिक मृत्यु ने हेमंत को राजनीति में धकेल दिया. चूंकि शिबू सोरेन हमेशा घर से बाहर रहते थे, झारखंड को एक अलग राज्य के रूप में देखकर एक राजनीतिक प्रचारक का जीवन जीते थे, इसलिए हेमंत का बचपन उनकी मां ने आकार दिया था.
सोरेन परिवार रांची और दुमका के साथ पटना (तत्कालीन संयुक्त बिहार की राजधानी) के बीच रहता था, हालांकि यह मूल रूप से हजारीबाग के पास नेमरा गांव से आया था.
दो बच्चों के पिता सीएम हेमंत सोरेन
हेमंत और उनकी पत्नी कल्पना, एक गृहिणी, के दो बच्चे हैं. गौरवान्वित पिता को अक्सर अपने बच्चों को सामाजिक समारोहों में ले जाते देखा जाता है. हेमंत की एक बहन अंजलि और एक भाई बसंत सोरेन भी हैं. उनके एक बड़े भाई भी थे, जिनका नाम दुर्गा सोरेन था. मगर, उनकी अचानक मृत्यु हो गई, जिससे परिवार को बड़ा झटका लगा, खासकर उनके बूढ़े पिता शिबू को.
हेमंत सोरेन की शिक्षा
हेमंत ने पटना हाई स्कूल से अपना इंटरमीडिएट पूरा किया और बाद में रांची के बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेसरा में शामिल हो गए, लेकिन अंततः उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी. तब तक राजनीति बुलावा आ चुकी थी.
मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत का पहला कार्यकाल रहा बहुत छोटा
मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत का पहला कार्यकाल(13 जुलाई, 2013 से 28 दिसंबर, 2014 तक) छोटा था. झारखंड की राजनीति 2014 के आम चुनावों के बाद नरेंद्र मोदी-लहर से प्रभावित हुई थी, लेकिन पांच साल बाद, हेमंत इस बार पहले से अधिक बहुमत के साथ सत्ता में वापस आने में कामयाब रहे.
हालांकि, झामुमो के कई पुराने नेताओं ने हेमंत की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाए थे. पार्टी में प्रमोशन मिलने के बाद स्टीफन मरांडी, हेमलाल मुर्मू और साइमन मरांडी ने झामुमो छोड़ दिया था. लेकिन अब सारे संदेह दूर हो गए हैं. जबकि स्टीफन मरांडी पार्टी में वापस आए और 2014 के चुनावों में विधायक बने और इस बार भी अपनी सीट बरकरार रखी, साइमन अपने बेटे के साथ झामुमो के पाले में वापस आ गए. पिछली विधानसभा के दौरान विधायक रहे साइमन ने इस बार अपने बेटे दिनेश विलियम मरांडी को चुनाव मैदान में उतारा, जिन्होंने लिट्टीपारा सीट जीती थी. दूसरी ओर, हेमलाल मुर्मू स्थायी रूप से भाजपा में शामिल हो गए, लेकिन उसके बाद राज्य विधानसभा में वापसी करने में कभी कामयाब नहीं हुए.
राज्यसभा सदस्य के रूप में की राजनीतिक सफर की शुरुआत
राजनीति में शामिल होने के कुछ महीने बाद, हेमंत को राज्यसभा में ले जाया गया और जनवरी 2010 तक सदस्य बने रहे. उन्होंने भाजपा के नेतृत्व वाले अर्जुन मुंडा शासन में उपमुख्यमंत्री का पद संभालने के लिए उच्च सदन से इस्तीफा दे दिया. लेकिन दो साल बाद, भाजपा-झामुमो गठबंधन टूट गया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.
छह महीने बाद, कांग्रेस और राजद, दो सहयोगी दलों ने समर्थन की पेशकश की और हेमंत जुलाई 2013 में मुख्यमंत्री बने. उन्होंने डेढ़ साल तक इस सीट पर कब्जा किया.
2014 का चुनाव भाजपा के लिए अच्छी खबर लेकर आया, मगर, अर्जुन मुंडा अपनी खरसावां सीट से जीतने में असफल रहे, जमशेदपुर पूर्व के विधायक रघुबर दास को मुख्यमंत्री बनाया गया. तब विधानसभा में तत्कालीन विधायक हेमंत सोरेन ने सदन में विपक्ष के नेता की भूमिका निभाई. उन्होंने हमेशा दास के साथ एक उतार-चढ़ाव वाला रिश्ता साझा किया.
रघुवर दास और हेमंत सोरेन के बीच राजनीतिक लड़ाई
रघुवर दास अक्सर सोरेन परिवार को झारखंड के आदिवासियों को लूटने वाला और उनके कल्याण के लिए कुछ नहीं करने वाला कहते थे. रांची में हेमंत के स्वामित्व वाली भूमि, जिसे उसने कथित तौर पर एक राजू उरांव से खरीदा था, जांच के दायरे में आ गई, और आरोप लगाया गया कि इसे छोटानागपुर किरायेदारी अधिनियम का उल्लंघन करके खरीदा गया है. अधिनियम के अनुसार, विक्रेता और क्रेता दोनों को एक ही पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र का 'निवासी' होना चाहिए. यह अधिनियम 1908 में अस्तित्व में आया और तब से, मूल पुलिस थानों को कई छोटे-छोटे थानों में विभाजित कर दिया गया है. कानून यह नहीं बताता है कि किन क्षेत्रों को किसी विशेष पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में माना जाना चाहिए - 1908 के दौरान वाले, या विभाजन के बाद के छोटे वाले.कानून इस बात पर भी मौन है कि क्या 'निवासी' का अर्थ केवल 'निवासी' या 'स्थायी निवासी' है. हालांकि राजू उरांव ने खुद कभी भी अदालत में शिकायत दर्ज नहीं की, दास ने मुख्यमंत्री के रूप में सीएनटी अधिनियमों के कथित उल्लंघन के मामलों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया, जिसमें हेमंत मुख्य लक्ष्य थे. एसआईटी ने हालांकि कभी अपनी रिपोर्ट नहीं दी. इसके अलावा हेमंत 2012 में 2009 के विधानसभा चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के मामले में अदालत में पेश हुए थे.
2019 विधानसभा के बाद बतौर मुख्यमंत्री का सफर
2019 में हेमंत सोरेन ने राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में फिर से कमान संभाली. मगर, इसी बीच उन्हें सबसे चुनौती का सामना करना पड़ा. कोरोना वायरस और उसके संक्रमण के कारण पूरी दुनिया में तबाही मची थी. भारत समेत दुनिया के कई देशों में लॉकडाउन लगाया गया. मगर, इसमें सबसे बड़ी चुनौती हेमंत सोरेन के सामने आई प्रवासी मजदूरों की. हेमंत सोरेन की अगुवाई में झारखंड सरकार ने प्रवासी मजदूरों को घर लाने का अपना प्रयास शुरू किया, जिसमें उन्हें सफलता मिली. इसके बाद कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज और संक्रमण रोकने के प्रयास राज्य सरकार द्वारा किये गए. हालांकि, इस दौरान स्वास्थ्य व्यवस्था पर कई सवाल भी उठे. मगर, राज्य ने जल्द ही इस तबाही से मुक्ति पा ली. जैसे ही सब सामने होने लगा, तो विकास कार्य शुरू हुए. मगर, इसी बीच राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा पर राज्य सरकार को अस्थिर करने के आरोप लगने लगे. इसके लिए FIR भी किये गए.
हेमंत सोरेन के ऊपर लगे कई सारे आरोप
इन सबसे उभर कर राज्य सरकार अपना काम करते रही और हेमंत सोरेन के नेतृत्व में कई फैसले लिए गए. लेकिन इसी बीच ईडी की ताबड़तोड़ छापेमारी राज्य में शुरू हुई. आईएएस पूजा सिंघल से शुरू हुई ये मनरेगा घोटाले की कार्रवाई खनन घोटाले तक पहुंच गई. इस मामले में ईडी ने सीएम हेमंत सोरेन से पूछताछ भी की. वहीं मुख्यमंत्री के खिलाफ ऑफिस ऑफ प्रॉफ़िट का मामला भी आया. जिसमें सीएम हेमंत पर मुख्यमंत्री रहते हुए अपने नाम पर खदान लीज पर लेने का आरोप लगा. इस मामले में चुनाव आयाओग ने सुनवाई भी की, जिस फैसला राज्यपाल के पास पहुंचा हुआ है.
मगर, इन सभी के बावजूद हेमंत सोरेन टिके हुए हैं और कई सारे महत्वपूर्ण फैसले भी लिए. इसमें 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति की मांग राज्यभर में हो रही थी, जिसके बाद इसका विधेयक हेमंत सरकार ने विधानसभा से पारित कर दिया है. इसके साथ 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण के लिए आरक्षण संशोधन विधेयक भी पारित किया है. इस तरह से मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत सोरेन का कार्यकाल काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा.
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