Ranchi-गांडेय विधान सभा से इस्तीफे के बाद सरफराज अहमद राज्य सभा पहुंच चुके हैं. इस बीच चुनाव आयोग की ओर से 20 मई को उपचुनाव की अधिसूचना भी जारी हो गयी और इसके साथ ही एक बार फिर से कल्पना का नाम भावी उम्मीदवारों की सूची में तैरने लगा है. सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा तेज है कि कल्पना का विधान सभा में इंट्री का सपना पूरा होने वाला है. यहां ध्यान रहे कि ये दावे नये नहीं है. सरफराज अहमद के इस्तीफे के साथ ही गांडेय से कल्पना की सियासी इंट्री के दावे किये जाने लगे थें. इस इस्तीफे के मायने तलाशे जा रहे थें, इस सियासी बिसात के पीछे की चाल को समझने की कोशिश की जा रही थी. तब दावा किया जा रहा था कि जिस तरीके से सीएम हेमंत पर ईडी की तलवार लटकी हुई है, किसी भी वक्त गिरफ्तारी का फरमान जारी हो सकता है. सरफराज अहमद का इस्तीफा उसी संकट का समाधान खोजने की कोशिश है. इस दावे को और भी बल तब मिला जब भाजपा सांसद निशिकांत कल्पना की इस संभावित सियासी इंट्री को रोकने के लिए राजभवन तक पहुंच गये. बाम्बे हाईकोर्ट के एक फैसला का उदाहरण देते हुए उपचुनाव का विरोध किया. लेकिन अब जबकि चुनाव आयोग उपचुनाव की अधिसूचना जारी हो चुकी है. कल्पना सोरेन का रास्ता साफ हो चुका है. इस हालत में यदि कल्पना गांडेय के अखाड़े में इंट्री की घोषणा करती है, तो यह कोई आश्यर्च का विषय नहीं होगा.
इंडिया गठबंधन से कई विधायकों का चुनाव लड़ने की खबर
यहां यह भी याद रहे कि इंडिया गठबंधन के अंदर से कई विधायकों को लोकसभा चुनाव में उतारने की खबर है और यदि वे जीत का परचम फहराते हैं, तो इसका असर विधान सभा का वर्तमान संख्या बल पर भी देखने को मिलेगा. इस हालत में यदि इंडिया गठबंधन गांडेय सीट पर कल्पना का दांव खेल जीत को सौ फीसदी सुनिश्चित करनी रणनीति तैयार करे तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा? दरअसल इंडिया गठबंधन में आज के दिन कल्पना ही वह चेहरा है. जिस पर दांव लगा सौ फीसदी जीत की दावा किया जा सकता है. वैसे ही झारखंड की मौजूदा सियासत में कल्पना के चेहरे की जरुरत झामुमो से अधिक महागठबंधन को दिख रही है.
दुमका से चुनाव लड़ने की भी चर्चा तेज
हालांकि कुछ मीडिया संस्थानों के द्वारा सूत्रों के हवाले से कल्पना को दुमका के सियासी मैदान में उतरने के दावे भी किये जा रहे हैं. उनका दावा है कि झारखंड की सभी 14 सीटों पर जीत का ख्वाब देख रही भाजपा की कोशिश इस बार झामुमो का सबसे मजबूत किला संताल में सीता को उतार झामुमो की राह मुश्किल बनाने की है, उनका इशारा दुमका लोकसभा सीट की ओर है. लेकिन यहां सवाल यह भी है कि यदि सीता को लोकसभा सभा ही लडाना है, तो फिर वह सीट दुमका ही क्यों होगी? जबकि आज के दिन भाजपा के अंदर ही संताल की सबसे कमजोर कड़ी राजमहल की सीट मानी जा रही है. जिस ताला मरांडी को जंगे मैदान में उतारा गया है, खुद भाजपा के अंदर भी उनकी सियासी कुब्बत पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं. इस हालत में यदि भाजपा को अपना प्रत्याशी पीछे हटाना भी होगा, तो वह यह प्रयोग राजमहल में क्यों नहीं करेगी?
क्या है कल्पना सोरेन की सियासी प्राथमिकता
हालांकि जब तक इंडिया गठबंधन के अंदर उम्मीदवारों की घोषणा नहीं हो जाती, इस तरह के आकलनों का दौर जारी रहेगा. लेकिन मूल सवाल यह है कि वर्तमान सियासी हालात में कल्पना की प्राथमिकता क्या होगी? दिल्ली की सियासत को साधने की चुनौती है या फिर झामुमो की अन्दरुनी सियासत में अपनी पकड़ को स्थापित करना? जानकारों का दावा है कि फिलहाल कल्पना की प्राथमिकता झारखंड की सियासत में अपने को स्थापित करने की है और इसके साथ ही विधान सभा में इंट्री कर सरकार के कामकाज पर नजर बनाये रखने की है. कल्पना की पहली प्राथमिकता विधान सभा में पहुंचने की होगी, तो फिर यहां सवाल खड़ा होता ही कि क्या भाजपा को कल्पना की इस सियासी प्राथमिकता की खबर नहीं है? क्या भाजपा के रणनीतिकारों की नजर कल्पना के इस चाल पर नहीं है? यह मानने का कोई कारण नहीं है. तो फिर इसके साथ ही यह सवाल भी खड़ा होता है कि उसके पास कल्पना की राह में रोड़ा अटकाने का मास्ट्रर कार्ड और प्लान क्या होगा? और इसी सवाल के जवाब में सीता सोरेन की इंट्री होती है. हालांकि इस बारे में कुछ भी दावे के साथ नहीं कहा जा सकता, लेकिन यहां याद रहे कि सामने भाजपा है, जो हर बार सियासत का एक नया पैमाना तय करती है. आउट ऑफ बॉक्स जाकर अपने पते खेलती और बिछाती है, कुछ इसी तरह का प्रयोग यदि भाजपा इस बार भी कर दे, तो यह अप्रत्याशित नहीं होगा.
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