Ranchi-कभी मॉब लिचिंग शिकार हुए अलाउद्दीन अंसारी हत्याकांड के आरापियों को फूल माला पहनकर स्वागत करने वाले जयंत सिन्हा के बारे में पंजे की सवारी करने की चर्चा तेज है. खबर है कि जयंत सिन्हा को इस बात में कतई कोई शंका नहीं है कि इस बार भाजपा उन्हे पैदल करने जा रही है, जिस तरीके से उनके पिता और देश के पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है, उस हालत में जयंत सिन्हा की यह शंका गैरवाजिब भी नहीं लगती, इस हालत में जयंत सिन्हा को अपना सियासी भविष्य अंधेरे में दिख रहा है, दावा है कि सियासत की इसी अंधेरी गुफा से निकलने की कोशिश में इन दिनों वह कांग्रेस में हाथ पैर मारने की कोशिश कर रहे हैं.
क्या इस अंधेरी सुरंग से बाहर निकालने में मददगार साबित होगी कांग्रेस
हालांकि सियासत की जिस अंधेरी गुफा में जयंत सिन्हा आज फंसे दिख रहे है, उस अंधेरी गुफा से बाहर निकालने में कांग्रेस मददगार साबित होगी, इसमें भी कई पेच है, सबसे बड़ा सवाल तो खुद जयंत सिन्हा के द्वारा बनायी गयी अपनी छवि का है, एक केन्द्रीय मंत्री रहते हुए जिस तरीके से मॉब लिचिंग के आरोपियों को जेल से जमानत मिलने के बाद फूल माले के साथ स्वागत करना जयंत सिन्हा के पूरे सियासी कैरियर पर एक बड़ा काला धब्बा है. कहा जा सकता है कि इस दाग को तो भाजपा में शान समझा जाता है, लेकिन यहां सवाल तो कांग्रेस का है, उस कांग्रेस का जिसके अधोषित मुखिया राहुल गांधी आज पूरे देश में घूम घूम कर नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोल रहे हैं. शांति और सद्भाव का संदेश दे रहे है, लोगों के जेहन में जड़ जमाती इस साम्प्रदायिक सोच को देश की अखंडता और उसके चमकदार भविष्य का सबसे बड़ा रोड़ा बता रहे हैं. उस कांग्रेस में जयंत सिन्हा का सियासी वजूद क्या होगा? सवाल तो खुद कांग्रेस की सोच और उसकी जमीनी नीतियों को लेकर खड़ा होगा. क्या जयंत सिन्हा का कांग्रेस में आना कांग्रेस की नीतियों पर सवाल खड़ा नहीं करेगा. क्या जिस जयंत सिन्हा को आज तक कांग्रेसी कार्यकर्ता और नेता विभाजनकारी सोच का इंसान बता रहे थें, राहुल गांधी के एक इशारे के साथ वह उनका फूल माला लेकर स्वागत करेंगे. और यदि कांग्रेस भी मॉब लिंचिग के आरोपियों को फूल माला पहनाने वालों को पार्टी में स्वागत करती है, तो फिर उसके इस आरोप का क्या होगा कि जितने भी भ्रष्टचारी कमल की सवारी करने को तैयार हो जाते हैं, एकबारगी उनका दाग धूल जाता है, तो क्या यह माना जाये कि जैसे ही नफरत के सौदागरों के द्वारा पंजे की सवारी की जाती है, उनका चेहरा भी अचानक से धर्म निरपेक्ष हो जाता है, क्या कांग्रेस के पास भी भाजपा का वह साबून है जो सभी कीटाणुओं को एक ही झटके में सफाया कर देती है.
क्या जयंत सिन्हा की इंट्री से अल्पसंख्यक मतदाताओं के बीच बढ़ सकती है नाराजगी
और बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेसी कार्यकर्ता और नेता तो जयंत सिन्हा का फूल माले के साथ स्वागत करने को तैयार हो जाये, लेकिन क्या अल्पसंख्यक मतदाता भी कांग्रेस के साथ फूल माले के साथ खड़ी होगी, क्या जयंत सिन्हा की इंट्री के साथ ही कम से कम हजारीबाग में अल्पसंख्यक मतदाता पंजे से अपनी दूरी तो नहीं बनायेंगे और यदि ऐसा होता है, तो यह महागठबंधन के लिए एक नयी मुसिबत पैदा कर सकता है. हालांकि अभी यह भी देखना होगा कि इंडिया एलाइंस में सीट शेयरिंग के बाद हजारीबाग संसदीय सीट किस घटक दल के हिस्से आती है, क्योंकि एक चर्चा यह भी है कि इस बार वाम दलों की ओर से इस सीट पर दावेदारी तेज है, और इसमें कोई आश्यर्य नहीं हो कि अंतिम समय में यह हजारीबाग संसदीय सीट वाम दलों के हिस्से आ जाय.
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