Ranchi-जैसे-जैसे 2024 का महासंग्राम नजदीक आता दिख रहा है, वैसे-वैसे सियासी दलों के बीच अपने-अपने पहलवानों को अंतिम रुप देने की प्रक्रिया तेज हो चुकी है. अंदर खाने बैठकों का दौर जारी है, सीट दर सीट अपनी संभावनाओं को तलाशा जा रहा है. और उस संभावना के मद्देजनर मजबूत प्रत्याशी की खोज भी जा रही है. और इस सब के बीच समय की मांग और अपनी सियासी संभवानाओं के मद्देजनर पाला बदल की चर्चा भी तेज है. इसी क्रम में गिरिडीह संसदीय सीट से पांच बार के सांसद रहे रविन्द्र कुमार पांडेय को लेकर भी पाल बदल की खबरें सियासी गलियारों में तेजी से तैरने लगी है.
कमल की सवारी का मौका नहीं तो टूट सकता है रविन्द्र पांडेय का सब्र
दावा किया जा रहा है कि यदि इस बार उन्हे कमल की सवारी का मौका नहीं मिलता है, तो उनका सब्र टूट सकता है, और वह बड़ी आसानी से कांग्रेस के उस पंजे को गले लगा सकते हैं, जिसे आज तक वह हिन्दू भावनाओँ के विपरीत करार देते रहे हैं. यह वही पंजा है, जिसे कोस कोस कर रविन्द्र कुमार पांडेय पांच-पांच बार संसद पहुंचने में कामयाब रहें, लेकिन 2019 में भाजपा ने पांच बार के सांसद की सियासी बलि लेकर आजसू के खाते में इस सीट को डाल दिया और इस प्रकार रविन्द्र कुमार पांडेय की इस शहादत के साथ चन्द्र प्रकाश चौधरी संसद पहुंचने में कामयाब रहें. लेकिन रविन्द्र पांडेय को अपनी शहादत का गम सताता रहा, वह इस गम से उबर नहीं सकें, रांची से लेकर दिल्ली दरबार तक इस दर्द का इजहार करते रहें. यह विश्वास दिलाते रहे कि आजसू के चक्कर में नाहक की भाजपा ने अपना एक सीट बर्बाद किया, वह तो बगैर आजसू के समर्थन और सहयोग के ही इस सीट को भाजपा के खाते में डाल सकते थें, लेकिन भाजपा आलाकमान को पांडेय जी के इस दर्द पर कोई दया भाव नहीं आया. और थक हार कर रविन्द्र पांडेय ने पांच पांच बार संसद भेजने वाली भाजपा के राम-राम को अलविदा कह उस पंजे के साथ चलना स्वीकार किया, जिसे आज तक वह हिन्दू भावनाओं का कुचलने वाला पंजा करार देते थें.
इस बार आजसू के यह सीट वापस लेने की तैयारी में भाजपा
हालांकि खबर यह भी है कि भाजपा इस बार आजसू से यह सीट लेकर अपना पहलवान को उतारने का इरादा रखती है, लेकिन मुश्किल यह है कि भाजपा रविन्द्र पांडेय को इस आश्वसन देने को तैयार नहीं है, अंतिम चेहरा वही होंगे, और भाजपा की इस चुप्पी से रविन्द्र पांडेय का मन डोल रहा है, उनके सलाहकारों की सलाह है कि भाजपा के साथ रह कर आडवाणी वाली सूची में शामिल होने से अच्छा है कि पंजा को ही धो पोंछ कर अपना भाग्य आजमाया जाय. क्योंकि यहां भाजपा कमल तो आपके चेहरे से खिलता था, यदि एक बार आपने पंजा की सवारी करने का फैसला कर लिया तो कम से कम एक दशक तो आप संसद की शोभा बढ़ा ही सकते हैं. हालांकि उनके समर्थकों के इस दावे में कितना दम है, यह तो भाजपा बेहतर जानती होगी, और खुद रविन्द्र पांडेय को भी इसका एहसास होगा.
रविन्द्र पांडेय की हसरतों पर पानी भेर सकता है जदयू की जिद
लेकिन रविन्द्र पांडेय की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही है, जिस आशा और विश्वास के साथ आज भी वह अपने कार पर सांसद का बोर्ड लगा घूम रहे हैं, उसकी राह में कई बाधाएं एक साथ खड़ी है, दरअसल खबर यह भी है कि इंडिया एलाइंस के तहत जदयू की नजर इस सीट पर बनी हुई है. जदयू का दावा है कि यदि कुर्मी बहुल क्षेत्रों से एक दो सीट जदयू के हिस्से आती है, तो नीतीश का चेहरा सामने रख कर कुर्मी मतदाताओं को महागठबंधन के साथ मजबूती के साथ खड़ा किया जा सकता है. क्योंकि आज भी महागठबंधन में सुदेश महतो की कद काठी का कोई कुर्मी चेहरा नहीं है. इस हालत में महागठबंधन के लिए सीएम नीतीश का चेहरा एक वरदान साबित हो सकता है.
अभी भी कांग्रेस से हरी झंडी के इंतजार में हैं रविन्द्र पांडेय
लेकिन इस सियासी रस्साकशी के बीच रविन्द्र पांडेय ने कांग्रेस आलाकमान को अपनी बेचारगी का सदेंश दे दिया है. हालांकि रविन्द्र पांडेय की इस ख्वाहिश पर कांग्रेस कितना उत्सुक है, इसका इंतजार है, बड़ा सवाल तो यही है कि क्या जदयू की दावेदारी को दरकिनार महागठबंधन इस सीट को कांग्रेस को देने का जोखिम लेगी.
मकर संक्राति की खिचड़ी खाने के बाद सामने आ सकता है कोई बड़ा अपेडट
यहां यह भी ध्यान रहे कि महागठबंधन के अंदर अन्दरखाने सीट शेयरिंग को लेकर प्रक्रिया तेज है, झारखंड से लेकर दिल्ली तक बैठकों का दौर जारी है, झामुमो का एक प्रतिनिधिमंडल सीट शेयरिंग को अंतिम रुप देने के लिए कांग्रेस आलाकमान के साथ बैठक के लिए दिल्ली का दौरा भी कर चुकी है. लेकिन उसका नतीजा क्या निकला, अभी सबको इसका इंतजार है. इसी बीच रविन्द्र पांडेय का पंजा की सवारी करने की खबर हवा में तैरने लगी है, माना जा रहा है कि मकर संक्राति का दही-चूड़ा खाने के बाद इस सियासी खिचड़ी को लेकर कोई बड़ा अपडेट सामने आ सकता है.
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