पटना (PATNA) : पटना में सिविल सेवा दिवस के मौके पर अधिकारियों-कर्मचारियों ने कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिस दौरान नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना मुद्दे को उठाया. बता दें कि बिहार में जातिगत जनगणना को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा कोर्ट में लगातार याचिका दायर की जा रही है, मगर इसका कोई परिणाम सामने निकल कर नही आ रहा है. कई लोग इसके विरोध में उतर आए है. जिसे लेकर नीतीश कुमार काफी परेशान दिखे और उन्होंने कहा कि किसी को क्या परेशानी है? अनुसूचित जाति और जनजाति, पिछड़ों और अति पिछड़ों की संख्या बढ़ती है या जो भी हो, उससे क्या दिक्कत है? अब सीएम नीतीश कुमार के इस बयान के बाद सवाल उठने लगे हैं कि आखिरकार उन्हें कैसे पता है कि गणना के बाद सिर्फ अनुसूचित जाति और जनजाति, पिछड़ों और अति पिछड़ों की संख्या बढ़ने वाली है?
इसे भी किया गया चैलेंज- नीतीश कुमार
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को कहा है कि वे इसके पक्ष में माहौल बनायें. उन्होंने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि “भला बताइये तो क्या क्या हो रहा है.जाति आधारित गणना हम लोग कर रहे हैं, ये जाति आधारित जनगणना नहीं है. जनगणना तो सेंटर का काम है. हम गणना कर रहे हैं और आप बताइये कि हम लोग का डिमांड कब से चल रहा था. तो 2011 में केंद्र ने किया था ना भाई, जनगणना के अलावा जाति आधारित वाला कराया. लेकिन वो पब्लिश किया गया कभी, कभी नही पब्लिश किया गया. वो सब कर तैयार है. और आज कल लोग कहां-कहां जा रहे हैं.” हमलोग राज्य में जाति आधारित गणना कर रहे हैं तो इसको भी जगह जगह चैलेंज करने का शुरूआत हुआ है. ये बात समझ से परे है.
जाति जनगणना कराने का संवैधानिक अधिकार नहीं
नीतीश कुमार ने अपनी बात आगे रखते हुए कहा कि सरकारी कर्मचारियों-अधिकारियों का दायित्व है कि वे क्लीयर कट बतायें. जातीय जनगणना कराने के बिहार सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार को जाति जनगणना कराने का संवैधानिक अधिकार नहीं है. साथ ही इस पर खर्च हो रहा 500 करोड़ रुपये और टैक्स के पैसों की भी बर्बादी है.
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