बिहार में कांग्रेस एकला चलो की राह पर, 29 की बैठक में नहीं पहुंचे कांग्रेस विधायक, झारखंड में अब क्या होगा


टीएनपी डेस्क : बिहार में कुछ भी होता है, चाहे वह सामाजिक हो अथवा राजनीतिक, उसकी तपिश झारखंड में भी महसूस की जाती है. एक बार फिर बिहार में महागठबंधन में मची उथल-पुथल की तपिश झारखंड में महसूस की जा रही है. माना जा रहा है कि कांग्रेस बिहार में महागठबंधन से अलग होगी, तो इसका असर झारखंड पर भी पड़ेगा. इस संभावना से कोई इनकार नहीं कर सकता है. वैसे भी हेमंत सोरेन बिहार में सीट नहीं मिलने से कांग्रेस और राजद दोनों से नाराज चल रहे है. बिहार में कांग्रेस एकला चलो की राह पर चलने की तैयारी कर रही है.
29 नवंबर को महागठबंधन की बैठक में नहीं आये कांग्रेस विधायक
इसका एक उदाहरण यह है कि 29 नवंबर को महागठबंधन की पटना में बैठक हुई. इस बैठक में तेजस्वी यादव को विधानसभा में महागठबंधन का नेता चुना गया. राजद के सभी विधायक बैठक में मौजूद थे. वाम दल के लोग भी पहुंचे हुए थे. लेकिन सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं पहुंचा था. हालांकि कांग्रेस ने कहा है कि हमारे सारे विधायक दिल्ली में अपनी अलग बैठक कर रहे थे. लेकिन सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस ने अपने विधायकों को बैठक में जाने से मना कर दिया था. मतलब साफ है कि कांग्रेस अब बिहार में गठबंधन की राजनीति से अलग हटकर खुद की राजनीति करना चाहती है. 2025 में कांग्रेस का प्रदर्शन बिहार में बहुत कमजोर रहा. 61 सीटों पर चुनाव लड़कर सिर्फ 6 उम्मीदवार ही कांग्रेस के जीत पाए.
टिकट बंटवारे में भी खूब हुई थी किच -किच
कांग्रेस अपने वोट बैंक को भी नहीं बचा पाई, यह अलग बात है कि कांग्रेस इसका ठिकरा राजद पर फोड़ा. वैसे भी टिकट बंटवारे को लेकर बहुत विवाद हुआ. कई दौर की बैठक के बाद अंतिम समय में तेजस्वी यादव को महागठबंधन का नेता घोषित करने पर कांग्रेस ने अपनी मुहर लगाई. सीट अधिक पाने के लिए भी कांग्रेस ने बहुत अधिक प्रयास नहीं किया. वैसे चर्चा तो यही है कि कांग्रेस अब संगठन को मजबूत कर अकेले राजनीति करने की दिशा में आगे बढ़ रही है. सूत्रों के अनुसार दिल्ली में आलाकमान के साथ बैठक में कांग्रेस के जीते और हारे सबों ने एक स्वर में कहा कि राजद के साथ गठबंधन की वजह से कांग्रेस की जमीन कमजोर हो रही है. अब कांग्रेस को खुद की राजनीति करनी चाहिए. कांग्रेस कभी बिहार में मजबूत ताकत थी. लेकिन पिछले कई सालों में कांग्रेस का आधार लगातार कम होता गया.
बिहार में कांग्रेस का लगातार कम हो रहा जनाधार
2005 के चुनाव में कांग्रेस को 9 सीट मिली थी. 2010 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ी थी. उसमें सिर्फ चार सीट मिली. 2015 में राजद - जदयू गठबंधन और 2020 में महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा. 2015 में कांग्रेस का प्रदर्शन कुछ बढ़िया रहा. उसे 27 सीट मिली. 2020 में कांग्रेस ने 70 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन सिर्फ 19 सीट मिली. अब सवाल उठता है कि कांग्रेस अगर बिहार में गठबंधन से अलग होती है, तो झारखंड में भी क्या वैसा ही कुछ होगा. क्योंकि झारखंड में भी कांग्रेस को अपनी खोई जमीन को तलाशने में मेहनत करनी पड़ रही है. देखना दिलचस्प होगा कि बिहार का असर झारखंड पर कितना पड़ता है और झारखंड में कांग्रेस कोटे के मंत्रियों का आगे भविष्य क्या होता है? झारखंड में कांग्रेस कोटे के चार मंत्री हैं और राजद से एक मंत्री है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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