TNPDESK-इंडिया गठबंधन के शिल्पकार और 2024 के महाजंग में पीएम मोदी के जीत के काफिले को दो सौ से भी कम सीटों पर समेटने का दावा करने वाले बिहार से सीएम नीतीश कुमार इन दिनों एक विधान सभा के अन्दर अपने एक बयान के बाद सुर्खियों में हैं. और यह सुर्खियां उनके उस मास्टर स्ट्रोक के कारण कम बन रही है, जिसमें उन्होंने बिहार में जातीय जनगणना के आंकडों की रोशनी में पिछड़ों-अतिपिछडों से लेकर दलित-आदिवासियों के लिए आरक्षण विस्तार का एलान किया है.
यदि सब कुछ ठीक ठाक चलता रहा और यदि जातीय जनगणना के समान ही नीतीश कुमार कोर्ट से इस फैसले पर मुहर लगवाने में सफल हो जाते हैं, तो यह नीतीश कुमार के सियासी जीवन की अब तक की सबसे बड़ी सफलता मानी जायेगी, लेकिन इसके साथ ही नीतीश कुमार के सियासी तरकश खाली नहीं हो गये हैं, अभी उनके तरकश में एक से बढ़कर एक तीर भरे पड़े हैं. दावा किया जा रहा है कि सीएम नीतीश बड़ी चतुराई से इस आरक्षण विस्तार के फैसले को संविधान की नौंवी सूची में शामिल करने के लिए केन्द्र के पाले में डाल कर भाजपा पर एक स्ट्राइक कर सकते हैं.
क्या कहता है संविधान की नौंवी अनुसूची
ध्यान रहे कि यदि कोई कानून संविधान की नौंवी अनुसूची में शामिल कर लिया जाता है तो वह न्यायाकि समीक्षा की परिधि से बाहर हो जाता है. अभी वर्तमान में इस अनुसूचि के तहत कुल 284 कानून है, जिन्हे न्यायिक समीक्षा का संरक्षण प्राप्त है. उल्लेखनीय है कि संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल विभिन्न कानूनों को संविधान के अनुच्छेद 31B के तहत संरक्षण प्राप्त होता है.
साफ है कि राजनीति के चतुर खिलाड़ी नीतीश कुमार इस मास्ट्रर स्ट्रोक का इस्तेमाल कर गेंद को केन्द्र के पाले में रख सकते हैं, और उसके बाद भाजपा की मुश्किल और भी बड़ी हो जायेगी. आज बिहार भाजपा की हालत यह है कि वह सारे तिकड़म का इस्तेमाल कर भी इसकी काट खोज नहीं पा रही है, कभी पीएम मोदी जातीय जनगणना को महापाप की संज्ञा देते हैं, तो कभी अमित शाह यह दावा कर जाते हैं कि जातीय जनगणना तो दरअसल भाजपा का ही फैसला था, कभी पीएम मोदी इस दावे के साथ सामने आते हैं कि देश में जाति सिर्फ अमीर और गरीब की होती है, और वह गरीबी के खिलाफ अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन अडाणी प्रकरण को सामने लाकर राहुल गांधी इस पूरी थीसिस की हवा निकाल जाते हैं. वहीं दूसरी ओर इस सियासी हड़बड़ी में अमित शाह तेलांगना यह घोषणा कर आते हैं कि यदि उनकी सरकार बनती है, तो तेलांगना का सीएम किसी पिछड़ी जाति से ही होगा.
नीतीश के मास्ट्रक स्ट्रोक की कोई काट खोज नहीं पा रही है भाजपा
कुल मिलाकर नीतीश के इस मास्ट्रक स्ट्रोक की कोई काट भाजपा निकाल नहीं पा रही है. वह महज एक सिरे से दूसरे सिरे पर नाचती नजर आ रही है, और इधर नीतीश चाल पर चाल चले जा रहे हैं, इसलिए कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि आने वाले दिनों में नीतीश कुमार विधान सभा से आरक्षण विस्तार का फैसला कर इसे संविधान की 9वीं अनुसूची में डालने के लिए इसे केन्द्र के पाले में डाल दें और उस हालत में यदि भाजपा इस पर रोक लगाती है, या रोड़ा डालने का प्रयास करती है तो बिहार समेत दूसरे हिन्दी भाषा भाषी राज्यों में उसकी लुटिया डूबना तय मानी जायेगी.
इस आरक्षण विस्तार को 80 फीसदी करने तक की चुनौती दे रही है भाजपा
यहां ध्यान रहे कि जिस आरक्षण विस्तार को सीएम नीतीश महज 75 फीसदी तक ले गये हैं, बिहार भाजपा उसे 80 फीसदी तक करने की चुनौती पेश कर रही है, और वह तो इससे भी आगे बढ़कर इन आंकड़े के आधार पर पंचायत से लेकर जिला परिषद तक की सीटों में आरक्षण की मांग कर रही है, अब वही भाजपा अगर केन्द्र में इस पर आनाकानी करेगी और नौंवी अनुसूची में डालने से इंकार करेगी तो यह निश्चित रुप से यह सियासी आत्महत्या के समान होगी.
सीएम नीतीश का कोक शास्त्रीय ज्ञान
लेकिन, यहां सवाल सीएम नीतीश के कोक शास्त्रीय ज्ञान का है, नीतीश के एक बयान को आधार बना कर पूरी भाजपा भूखे शेर की तरह टूट पड़ी है, हालांकि यह सत्य कि नीतीश पर उम्र का प्रभाव तेजी से दिखने लगा है. लेकिन यह भी सत्य है कि यदि यही कोक शास्त्रीय ज्ञान नीतीश कुमार भाजपा के साथ रह कर दिये होतें तो आज यह कोहराम नहीं कट रहा होता, और आज की तरह राजद इस वैराग्य के साथ इसका आनन्द नहीं ले रही होती. राजनीति में कब क्या बोलना है, और चीजों को किस रुप में प्रस्तूत करना है, उसका एक अलग व्याकरण है.
नहीं तो बवाल तो पीएम मोदी के बेटी पढ़ाओं बेटी पटाओ वाले के बयान पर भी कटना चाहिए था, बवाल तो इस बात भी कटना चाहिए कि जिला परिषद के चुनाव में भी प्रचार के लिए उतरने वाले पीएम मोदी ने मिजोरम विधान सभा चुनाव से किनारा क्यों कर लिया, क्यों उनके ही सहयोगी मिजो नेशनल फ्रंट ने पीएम मोदी के साथ चुनावी रैली करने से इंकार कर दिया? लेकिन इन सारे मसलों पर आज देश की कथित मेन स्ट्रीम मीडिया में अजीब सी अनकही-चुप्पी है. उसे तो सीएम नीतीश के इस बयान से मानो संजीवनी मिल गयी है, वह इस बयान में जातीय जनगणना और आरक्षण विस्तार रुपी सीएम नीतीश के उस मास्टर स्ट्रोक की काट ढूढ़ रहा हैं. लेकिन बिहार और बिहारी समाज की समझ रखने वाले यह जानते ही कि सीएम नीतीश की भदेश भाषा बहुत दिनों तक भाजपा को राहत देने नहीं जा रही है, उसे तो उन चुनौतियों से टकराना ही होगा जो सीएम नीतीश के तरकश से निकल चुका है. और राज्य दर राज्य उसकी चपेट में आते जा रहे हैं, और हालत इतनी पतली हो गयी है कि अमित शाह को भी उस तेलांगना में पिछड़ा सीएम बनाने का दावा करना पड़ा रहा है, जहां भाजपा का खाता खुल जाय यही उसके लिए आज की सबसे बड़ी चुनौती है.
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