Ranchi: अपने पैरों से चतरा लोकसभा के करीबन चार सौ किलोमीटर के विस्तार को नापने की चुनावी यात्रा पर निकले मशहूर फिल्म निर्देशक श्रीराम डाल्टन ने पुराने समाजवादी आन्दोलन की याद दिला दी है. शॉर्ट फिल्म द “लॉस्ट बहरूपिया” के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजे जाने वाले श्रीराम डाल्टन के हाथ में महज एक तख्ती हैं और उस तख्ती पर बड़े-बड़े अक्षरों में उनका नाम और सियासी सुरमाओं की मौजदूगी में जीत का संकल्प है. डाल्टन कहते हैं कि चुनाव सिर्फ जीत हार के लिए नहीं लड़ी जाती, जीत-हार से ज्यादा महत्वपूर्ण वह मुद्दे और संकल्प है, जिसे आप जमीन पर उतराना चाहते हैं. महत्वपूर्ण यह नहीं है कि कितने लोगों के हाथ में आपके नाम की तख्ती है. उससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि जिन मुद्दों और संकल्प को आवाज देने के लिए आपकी आत्मा तड़प रही है, उसकी पहुंच कितने लोगों तक होती है. हमारी कोशिश लोगों को अपनी तख्ती पकड़ाने के बजाय उन संकल्पों को आगे बढ़ाने की है. आम आदमी की जिन चुनौतियों को हम फिल्मों के माध्यम से आवाज देते रहे हैं, उन चुनौतियों पर बहस की शुरुआत करने की है. यही कारण है कि धन बल से भरपूर सियासत के इन महारथियों को हमने चुनौती पेश की है. .क्योंकि आज जिन्हे आम बोल चाल की भाषा में नेता कहा जा रहा है, दरअसल पर पार्टियों को मोहरे भर है. उनका अपना कोई संकल्प नहीं है, अपनी कोई सोच नहीं है, समाज और राष्ट्र के प्रति कोई सपना नहीं है. आने वाले दिनों में कैसा समाज देखना चाहते हैं और चतरा की इस धरती किस मुकाम पर पाना चाहते हैं, इसका कोई ब्लू प्रिंट नहीं है. दरअसल वे एक सियासी व्यापारी है, आज इस दल में, कल उस दल में, ना सिर्फ उनका झंडा बदलता है, बल्कि पार्टियों में बदलाव के साथ उनका संकल्प भी बदलता रहता है. उनके पास अपनी कोई वैचारिकी नहीं है, कोई सपना नहीं है, जिन सपनों के बूते वह चतरा को एक नये संकल्प के साथ भर सकें, चुनाव खत्म, दुकानदारी बंद. लेकिन हमारे लिए हमारा सपना एक मिशन है, हम उसी के लिए जीते हैं, हमारा वह सपना कभी फिल्मों के माध्यम से सामने आता है, तो कभी संघर्ष के दूसरे रास्तों से, लेकिन कारवां नहीं रुकता.
डाल्टेनगंज के रहने वाले हैं डाल्टन
यहां ध्यान रहे कि श्रीराम डाल्टन उर्फ श्रीराम सिंह का मूल रुप से पलामू के रहने वाले हैं, पत्नी मेघा श्रीराम डाल्टन भी बॉलीवुड की मशहूर सिंगर हैं. एक तरफ जहां दूसरे प्रत्याशी की ओर से कारों का काफिला दौड़या जा रहा है. कार्यकर्ताओँ की फौज उतारी जा रही है. वहीं इस कड़कती धूम में श्रीराम डाल्टन हाथ में एक तख्ती लेकर चतरा की धऱती को माप रहे हैं. उनका यह रुप चतरावासियों को पसंद भी आ रहा है. राह चलते बेहद आम लोगों के चतरा की धड़कन को समझने की कोशिश रंग लाती तो दिख रही है. देखना होगा कि इस संघर्ष अंतिम परिणाम क्या निकलता है. हार और जीत तो अपनी जगह यदि श्रीराम डाल्टन किसान, मजूदर, युवा के साथ ही आम लोगों की जिंदगी के मुद्दे को सियासी विमर्श का हिस्सा बनाने में कामयाब रहते हैं तो यही बड़ी उपलब्धि होगी.
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