TNPDESK-चुनाव परिणाम के बाद नौ दिनों तक गहन मंथन और सामाजिक समीकरणों की चीर फाड़ के बाद आखिरकार भाजपा ने 32 फीसदी आबादी वाले ट्राईबल स्टेट में एक आदिवासी चेहरे पर दांव लगाने का फैसला कर लिया, इसके साथ ही 22 वर्षों के बाद पहली बार इस आदिवासी बहुल राज्य को पहला आदिवासी चेहरा मिल गया. यहां ध्यान रहे कि राज्य के पहले सीएम योगी भी खुद को आदिवासी होने का दावा करते थें, लेकिन उनका मामला कोर्ट में फंस गया था. बता दें कि विष्णुदेव साय छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल इलाके कुनकुरी से सटे बगिया गांव के रहने वाले हैं, वर्ष 1989 में सरपंच पद से अपने सामाजिक जीवन की शुरुआत करने वाले सोय इसके बाद लगातार सफलता की सीढ़िया चढ़ते चले गयें. वर्ष 2006 में इन्हे प्रदेश अध्यक्ष भी की जिम्मेवारी सौंपी गयी थी, वर्ष 2014 और 2019 में साय ने मोदी सरकार में केन्द्रीय राज्य मंत्री की भूमिका का निर्वाह किया, इसके बाद वर्ष 2020 में इन्हे एक बार फिर से इनके कंधों पर प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेवारी सौंप दी गयी.
आदिवासी चेहरे को सामने लाकर भाजपा ने कांग्रेस के सामने खड़ा किया पहाड़
इस प्रकार 32 फीसदी आदिवासी और करीबन 17 फीसदी दलित आबादी वाले छत्तीसगढ़ में एक आदिवासी चेहरे को सामने लाकर भाजपा ने 2024 में कांग्रेस के सामने एक बड़ी चुनौती पेश कर दी है. अब कांग्रेस के लिए इसकी काट ढूंढ़ना बेहद मुश्किल होगा, सियासी जानकारों का दावा है कि यदि भूपेश बघेल सरकार में कांग्रेस ने किसी आदिवासी या दलित के उपमुख्यमंत्री बनाया होता तो, शायद साय के सामने आने के बाद उसके सामने यह पहाड़ सी चुनौती खड़ी नजर नहीं आती. लेकिन तब कांग्रेस अपने पुराने ढर्रे की राजनीति पर ही चलती दिख रही थी, इधर पीएम मोदी के नेतृत्व में भाजपा दलित पिछड़ो को आगे कर कांग्रेस की जमीन खिंचने की खतरनाक चाल चल रही थी.
क्या काम करने लग है नीतीश का ओबीसी कार्ड
इस बीच कुछ जानकारों का यह दावा भी है कि जिस प्रकार बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़ों का प्रकाशन और पिछड़े, दलित और आदिवासियों के आरक्षण विस्तार कर सीएम नीतीश ने ओबीसी कार्ड खेला है, उस दवाब में भाजपा के लिए पिछड़ी, दलित और आदिवासी चेहरों को सामने लाना एक सियासी मजबूरी बन गयी है. और यह दवाब सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही देखने को नहीं मिलेगा, बल्कि राज्य दर राज्य भाजपा को इस चुनौती का सामना करना पड़ेगा, यदि इस प्रचंड जीत के बावजूद भी भाजपा शिवराज सिंह को किनारा लगाने का हिम्मत नहीं जुटा रही है, तो इसके पीछे नीतीश का ओबीसी पॉलिटिक्स ही है, हालांकि देखना होगा कि बाकि के दो राज्यों में भाजपा किसे अपना चेहरा बनाती है, लेकिन किसी भी हालत में अब देश की राजनीति में दलित पिछड़ों और आदिवासियों की अनदेखी इतना आसान नहीं रहा, कांग्रेस हो या भाजपा अब हर सियासी दल को इस सामाजिक समीकरण को साधना मजबूरी होगी.
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