Ranchi-इंडिया गठबंधन की तमाम कोशिश और सियासी रणनीतियों के बावजूद झारखंड की करीबन आधा दर्जन सीटों पर बहुकोणीय या त्रिकोणीय मुकाबले के आसार बनते नजर आ रहे हैं. यदि इन सीटों पर नजर डालें तो कोडरमा जहां माले ने बोगदर विधायक विनोद कुमार सिंह को अखाड़े में उतार कर अन्नपूर्णा देवी की दूसरी पारी पर विराम लगाने का सपना पाला था. झामुमो नेता और पूर्व भाजपा विधायक जयप्रकाश वर्मा के अखाड़े में उतरने के एलान के बाद यह सपना बिखरता नजर आने लगा है. राजहमल सीट जिसे झामुमो का सबसे सुरक्षित किला समझा जाता है. झामुमो के बागी चेहरा माने जाने बोरियो विधायक लोबिन हेम्ब्रम ताल ठोंकने का एलान कर चुके हैं. प्रचार-प्रसार की शुरुआत भी हो चुकी है. लोहरदगा सीट जो बदले सियासी हालात में इंडिया गठबंधन के खाते में जाती दिख रही थी. झामुमो विधायक चमरा लिंडा ने अपना नामांकन दाखिल कर दिया है. चतरा सीट से जहां से भाजपा के कालीचरण सिंह और इंडिया गटबंधन की ओर से केएन त्रिपाठी को उतारे जाने के बाद दलित-पिछड़ी जातियों के बीच से लगातार नाराजगी की खबर सामने आ रही थी, इस नाराजगी में अपनी सियासी राह आसान बनाने का ख्वाब पाले हाथी पर सवार होकर पूर्व सांसद और मंत्री नागमणि की इंट्री होती नजर आ रही है. पलामू जहां राजद की ममत भुइंया और भाजपा के बीडी राम के बीच सीधा मुकाबला के आसार बन रहे थें, पूर्व नक्सली और पूर्व सांसद कामेश्वर बैठा हाथी पर सवार होकर अखाड़े में उतरने का एलान कर चुके हैं. गिरिडीह संसदीय सीट की है, जहां टाईगर जयराम की इंट्री के बाद मुकाबला पूरी तरह त्रिकोणीय शक्ल अख्तियार लेता नजर आ रहा है. कुछ यही कहानी हजारीबाग सीट की है, जिसे भाजपा का सबसे सुरक्षित सीट माना जाता था, लेकिन यहां भी टाईगर जयराम का सिपहसलार संजय मेहता की सिर्फ ताल ठोंकने की तैयारी में ही नहीं है, बल्कि पूरे जोर शोर से प्रचार प्रसार अभियान की शुरुआत भी हो चुकी है.
किसको लाभ किसको हानि
इस हालत में सवाल खड़ा होता है कि इस त्रिकोणीय या बहुकोणीय मुकाबले का लाभ किसको मिलने वाले है? हालांकि जब तक चुनाव अपने पूरे रंग में नहीं आ जाता, पुख्ता तौर पर कुछ भी कहना मुश्किल नजर आता है. लेकिन अभी से जो सियासी फिजा बनती नजर आ रही है.
कोडरमा से जयप्रकाश वर्मा की इंट्री के बाद कुर्मी-कुशवाहा किधर
उसके अनुसार कोडरमा में जयप्रकाश वर्मा की इंट्री से करीबन चार लाख कोयरी-कुर्मी मतदाताओं का रुक्षान जयप्रकाश वर्मा की ओर हो सकता है. कुशवाहा-कुर्मी संगठनों के बीच जयप्रकाश वर्मा की इंट्री को लेकर चर्चा तेज हो चुकी है, मीटिंगों को दौर शुरु हो चुका है. इस हालत भाजपा की राह आसान होगी या लाल झंडे पर संकट गहरायेगा, देखने वाली बात होगी. हालांकि फिलहाल यह संकट लाल झंडे पर ही गहराता नजर आता है. भले ही अन्नपूर्णा अपने पुराने रिकॉर्ड 753,016 मतों तक नहीं पहुंचे, लेकिन दिल्ली की राह में कोई बड़ा संकट तो नजर नहीं आता.
राजमहल में लोबिन की इंट्री से बाद मुकाबला त्रिकोणीय!
राजमहल में लोबिन की इंट्री से बाद यह मुकाबला त्रिकोणीय होगा या एक छोटा सा कोण बना कर ही लोबिन सस्ते में निपट जायेंगे, यह देखना भी दिलचस्प होगा, और उससे भी बड़ी बात यह जानने की होगी, क्या यह छोटा सा कोण भी भाजपा की राह आसान करने वाला होगा. यहां ध्यान रहे कि पिछले बार हेमलाल मुर्मू यहां झामुमो से करीबन एक लाख मतों से पीछे छूट्ट गयें थें. तो क्या लोबिन एक लाख मतों की सेंधमारी की स्थिति में होंगे, और क्या हेमलाल की घर वापसी के बाद ताला मरांडी उस हेमलाल के चार लाख मतों के रिकार्ड तक पहुंच पानी की स्थिति में होंगे, यह भी एक बड़ा सवाल है. फिलहाल यहां लोबिन की इंट्री के बावजूद झामुमो के सामने कोई बड़ा संकट तो खड़ा होता तो नजर नहीं आता.
चतरा की कहानी भी कुछ कम दिलचस्प नहीं
चतरा की कहानी भी कुछ कम दिलचस्प नहीं है, जिस नागमणि की इंट्री को आज बेहद सस्ते में लिया जा रहा है, भूलना नहीं चाहिए कि चतरा में एक आलकन के अनुसार करीबन कोयरी-1.5-2.5 लाख, कुर्मी 2-3 लाख, यादव-2-3 लाख, मुस्लिम -1.5-2.25 लाख, दास-50 हजार से एक लाख के आसपास हैं, यदि नागमणि के हाथी पर कोयरी कुर्मी और दास जाति ही सवारी कर जाते हैं तो यह आंकड़ा करीबन चार लाख के आसपास हो जाता है, अब देखना होगा कि यह सेंधमारी किसको नुकसान पहुंचा पाती है. या नागमणि बिल्कुल नया समीकरण खड़ा करते हुए केएन त्रिपाठी और कालीचरण से नाराज चल रहे दो लाख यादवों को भी अपने हाथी पर जीत की दहलीज पर खडा हो जाते हैं.
गिरिडीह में मुस्लिम-आदिवासी मतदाताओं के हाथ में सत्ता की चाभी
गिरिडीह में कुर्मी मतदाताओं का रुझान किधर होता है, बहुत कुछ जीत या हार इस पर निर्भर करता है. यदि कुर्मी मतदाताओं का वोट तीन हिस्सों में बंटता है और अगड़ी जातियों का वोट एकमुस्त होकर चन्द्रप्रकाश चौधरी के हिस्से आता है, तब तो एक बार फिर से चन्द्रप्रकाश का सिक्का चल सकता है नहीं तो मुस्लिम आदिवासी और कुड़मी गठजोड़ में मथुरा महतो भी संसद तक पहंचने में कामयाब हो सकते हैं. लेकिन इस सबके बीच जयराम की भूमिका क्या होगी, देखने वाली बात होगी.
हजारीबाग में संजय मेहता की इंट्री के बाद कुड़मी मतों में बिखराव
अब तक जिस हजारीबाग में मुकाबला दो पक्षीय होता नजर आ रहा था, अब वहां से भी संजय मेहता की इंट्री हो चुकी है, प्रचार प्रसार की शुरुआत हो चुकी है, इस हालत में चार लाख कुड़मी कोयरी मतदाताओं का रुक्षान किधर होगा, आने वाले दिनों में एक बड़ा सवाल बनने वाला है. यदि कुड़मी मतदाताओं का संजय मेहता और जेपी पेटल के बीच बंटने की स्थिति आ खडी होती है, या इसका एक बड़ा हिस्सा धार्मिक धुर्वीकरण में भाजपा के साथ खड़ा हो जाता है, जो कि अब तक होता रहा है, तो फिर एक बार फिर से यहां कमल खिलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. ठीक यही कहानी पलामू की है, जहां पलामू जहां राजद की ममता भुइंया और भाजपा के बीडी राम के बीच सीधा मुकाबला के आसार बन रहा था, पूर्व नक्सली और पूर्व सांसद कामेश्वर बैठा हाथी पर सवार होकर अखाड़े में उतरने का एलान कर चुके हैं,लेकिन अभी यह शुरुआती रुक्षान है. अभी चुनावी रंगत का अपने शवाब पर पहुंचना बाकी है, जैसे-जैसे प्रचार अभियान जोर पकड़ेगा, तस्वीरें साफ होती नजर आयेगी. लेकिन इतना कहा जा सकता है कि जब भी मुकाबला आमने-सामने का होता है, भाजपा संकट में घिरी नजर आती है, बहुकोणीय या त्रिकोणीय मुकाबले में उसके लिए रास्ता आसान होता है.
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