Ranchi-वर्ष 2023 की ओर कदम बढ़ाते ही झारखंड में एक के बाद एक घोटले की परतें खुलने की शुरुआत हुई. देखते देखते दर्जनों आरोपी काली कोठरी की शोभा बढ़ाने लगें. ईडी, सीबीआई और दूसरी एजेंसियों की बढ़ती चहकदमी के बीच यह आशंका भी गहराने लगी कि अब तो सत्ता पक्ष का पूरा मैदान ही खाली होने वाला है, यह सिर्फ समय की बात, नहीं तो सारे नेताओं के लिए जेल के दरवाजे खुले हैं. एक के बाद एक कर सभी को वहां भी पहुंचना है. सूबे के आला अधिकारियों की गिरफ्तारी से इस बात का अंदेशा भी गहराने लगा कि बहुत ही जल्द अब इन एजेंसियों का हाथ सीएम हेमंत और सत्ता पक्ष के दूसरे राजनेताओं की ओर बढ़ने वाला है, अधिकारियों की गिरफ्तारी तो उसी लक्ष्य को पूरा करने का एक छोटा सा पड़ाव है. असली निशाने पर खुद सूबे के मुखिया हैं.
2024 के पहले सप्ताह से ही हुई बड़े बदलाव की शुरुआत
लेकिन 2024 के पहले सप्ताह से सब कुछ बदलते नजर आने लगा, सीबाईआई और ईडी का जो खौफ जो नेताओं और अधिकारियों में पसरता नजर आ रहा था, एकबारगी सिमटने लगा, जिस समन से अधिकारियों और राजनेताओं को पसीने छुट्टने लगते थें, अब उसी समन को रद्दी की टोकरी में फेंके जाने की शुरुआत हो गयी, सात सात समन के बावजूद सीएम हेमंत ने हाजिरी लगाने से इंकार कर यह साफ कर दिया कि यदि लड़ाई सियासी है, तो उसकी काट भी सियासी ही होगी. अब पर्दे के पीछे की सियासत को बर्दास्त नहीं किया जायेगा. पर्दे के पीछे रहकर सियासत को हांकने वालों को अब सामने आकर मुकाबले का दम खम दिखलाना होगा और लगे हाथ अधिकारियों को यह निर्देश थमा दिया गया कि अब किसी भी बाहरी एजेंसी के सामने हाजिरी लगाने के पहले उन्हे राज्य सरकार की सहमति प्राप्त करना अनिवार्य होगा.
काफी मंथन के बाद लिया गया था यह फैसला
यह कोई छोटा कदम नहीं था, बहुत ही मंथन के बाद ही इस निष्कर्ष तक पहुंचा गया होगा. इस निष्कर्ष तक पहुंचने के पहले ना जाने कितने कानूनी जानकारों से राय ली गयी होगी, और इसका यह कदम क्यों उठाया गया था, वह तब और भी साफ हो गया जब राज्य की कैबिनेट सचिव बंदना डाडेल ने ईडी से यह सवाल कर डाला कि आपने सीएम के प्रेस सलाहकार और साहिबगंज डीसी को समन क्यों भेजा? शायद इससे पहले ईडी को कभी भी इस तरह के सवालों का जवाब देना नहीं पड़ा था. इस सवाल के बाद यह जानना दिलचस्प होगा कि अब 15 जनवरी को आर्टिटेक्ट विनोद सिंह और 16 तारीख को अभिषेक कुमार पिंटू ईडी दफ्तर का रुख करते है या नहीं, या वह भी सीएम हेमंत की राह चलते नजर आते हैं, और यदि ऐसा होता है तो निश्चित रुप से ईडी की साख पर एक और आधात होगा. उसके बाद यह भी देखना दिलचस्प होगा कि तब ईडी का रुख क्या होता है, क्योंकि सीएम होने के नाते तो सीएम हेमंत को तो कम से कम एक सुरक्षा कवच मिला हुआ है, लेकिन डीसी और अभिषेक प्रसाद पिटूं के पास ऐसा कोई सुरक्षा कवच तो दिखलायी नहीं पड़ता.
विष्णु अग्रवाल के जमानत से दूसरे आरोपियों को भी राहत की सांस
लेकिन इस बीच सत्ता पक्ष को एक और राहत जमीन घोटाले का मास्टर माइंड माने जाने वाले विष्णु अग्रवाल को बेल के रुप में मिली है, यह तो विशुद्ध न्यायिक फैसला है, सवाल यह है कि यदि कोर्ट के सामने विष्णु अग्रवाल की संलिप्ता का कोई मजबूत साक्ष्य होता, तो क्या इस जमानत याचिका का स्वीकार किया जाता. कारण चाहे जो हो, लेकिन इतना तय है कि विष्णु अग्रवाल को मिले इस जमानत से दूसरे आरोपियों को एक नया सवेरा दिखलायी पड़ रहा होगा. जेल की काली कोठरी में बैठकर आईएएस अफसर छवि रंजन और अमित अग्रवाल, प्रेम प्रकाश, प्रदीप बागची, सद्दाम हुसैन, भानु प्रताप प्रसाद, फैयाज खान के बीच इस खबर को पढ़ने की होड़ लगी होगी, उन्हे भी अपनी जिंदगी में एक सवेरा आता दिख रहा होगा, तो क्या यह माना जाय कि 2023 की काली घटा अब समाप्त होने को है, क्योंकि बात सिर्फ जमीन और मनिलांड्रिंग के आरोपियों तक ही सीमित नहीं है, इस नव वर्ष की शुरुआत पर पूर्व सीएम रघुवर दास को एक बड़ी राहत मिली है, राज्य सभा चुनाव से जुड़े हार्स ट्रेडिंग मामले में कोर्ट ने उन्हे दोष मुक्त करार दिया है, महाधिवक्ता के कानूनी सलाह के बाद रांची पुलिस ने इस मामले में क्लोजर रिपोर्ट पेश कर दिया है. पुलिस ने कोर्ट को बताया कि उनके पास कोई सबूत नहीं है, तो क्या जमीन घोटाले के आरापियों के साथ यही होने वाला है, लेकिन यहां नहीं भूलना चाहिए कि यह रघुवर दास का मामला झारखंड पुलिस के पास था, लेकिन ये सारे आरोपियों की किस्मत ईडी की मुठ्ठी में कैद है, और वहां से ऐसा कोई संकेत नजर नहीं आ रहा, बावजूद इसके विष्णु अग्रवाल के बेल से एक राहत जरुर मिलती नजर आ रही है.
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