TNP DESK- सियासी गलियारों में चल रहे तमाम कयासों को धत्ता बताते हुए ममता बनर्जी ने पीएम चेहरे के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जून खड़गे को आगे कर एक नयी सुर्खी बना दी है. हालांकि दीदी के इस प्रस्ताव को खुद मल्लिकार्जुन खड़गे ने ना तो स्वीकार किया है और ना ही अस्वीकार, खड़गे ने यह कह कर इस पर विराम लगाने की कोशिश की है कि इसका फैसला चुनाव परिणामों के बाद किया जायेगा, फिलहाल हमें सांसदों को जिता कर लाना है, यदि हमें बहुमत हासिल होता है, तब हम पीएम चेहरे पर विचार करेंगे. ठीक वैसे ही जैसा कि इंडिया गठबंधन की बैठक में शामिल होने के पहले तक खुद ममता बनर्जी राग अलाप रही थी.
राहुल गांधी को रेस से बाहर करने की साजिश तो नहीं
वैसे यहां यह सवाल खड़ा होना भी लाजमी है कि कोलकत्ता से चलते वक्त दीदी ने जो बयान दिया था, दिल्ली आते आते वह उनका मन और मिजाज क्यों बदला, क्या क्योंकि यदि बहुमत मिल ही जाता है तो फिर राहुल गांधी के चेहरे पर आपत्ति क्या है, और यदि बहुमत नहीं मिलता है, तो फिर मल्लिकार्जुन पर विचार ही क्यों! क्या दीदी का यह बयान जानबूझ कर राहुल गांधी को इस रेस से दूर रखने की कवायद भर का हिस्सा है. या फिर वाकई दीदी में मल्लिकार्जुन के सिर पर पीएम का ताज रखने की हसरत है या फिर एक दलित चेहरे को उछालकर वोटों की फसल काटने की सोची समझी प्लानिंग.लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि क्या खड़गे का यह दांव बिहार, यूपी और झारखंड में अपना कामयाब दिखला पायेगा.वैसे तो दक्षिण के तमाम राज्य और खास कर कर्नाटक, तेलांगना में मल्लिकार्जुन का चेहरा एक सफल चाल हो सकता है. लेकिन मूल सवाल यह है कि यूपी बिहार झारखंड में यह चाल कितना सफल होने वाला है. क्या इन राज्यों में मल्लिकार्जुन खड़गे का जुड़ाव दलित मतदाताओं तक है.
यूपी बिहार और झारखंड में कितना कामयाब होगा यह दांव
यहां यह भी याद रहे कि बिहार दलित-20 फीसदी, यूपी में 22 फीसदी जबकि झारखंड में 12 फीसदी है, इस प्रकार देखे तो यदि वाकई नीतीश, हेमंत और अखिलेश यादव खुले मन से मल्लिकार्जुन को आगे कर अपनी रणभेरी सजाते हैं, तो उन्हें इसका लाभ मिल सकता है, खास कर जिस प्रकार बहन मायावती अपनी चालों से रणनीतिक रुप से भाजपा को मदद पहुंचाती दिख रही हैं,उस हालत में यूपी में यह एक बड़ा चाल हो सकता है, लेकिन सवाल फिर वही है क्या नीतीश, तेजस्वी और अखिलेश इस को स्वीकार करने की स्थिति में है. और यदि इन क्षत्रपों के अंदर कोई और प्लानिंग चल रही है, तो निश्चित रुप से दीदी की यह चाल इंडिया गठबंधन को परेशानी में डाल सकती है.
इस बार सामूहिक प्रेस वार्ता क्यों नहीं
यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि क्योंकि इंडिया गठबंधन की बैठक में इस बार सामूहिक रुप से कोई प्रेस वार्ता नहीं की गयी, प्रेस वार्ता का इंतजार किये ही सीएम स्टालिन, अखिलेश यादव, नीतीश कुमार, लालू यादव, तेजस्वी और दूसरे दिग्गज अपने अपने राज्यों के लिए निकल पड़े. और यहीं से इस चाल पर संशय के बादल उमड़ रहे हैं, हालांकि यह भी संभव है कि अंदर खाने किसी प्लानिंग पर विचार किया गया हो, जिसकी खुलासा अभी नहीं किया जाना हो, यह उनकी आंतरिक रणनीति हो, यह भी संभव हो कि अलग अलग प्रदेशों में मतदाताओं को बीच यह संदेश देने की रणनीति हो कि आपके चेहते का भी गोटी लग सकता है, यानि ठीक मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ और राजस्थान की तर्ज पर, जहां हर किसी को अपने सामने एक सीएम ही खड़ा नजर आ रहा था, और इसी उहापोह में हर कोने से भाजपा को वोट भी मिल रहा था. लेकिन यहां यह याद रखा जाना चाहिए कि इसके अपने फायदे हैं तो नुकसान भी. इस हालत में इंडिया गठबंधन को दोनों ही स्थिति के तैयार रहना होगा. वैसे खड़गे का चेहरा को आगे कर एक बड़ा दांव लगाया जा सकता है.
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