Ranchi-निवर्तमान सांसद गीता कोड़ा की पलटी के बाद झामुमो ने कोल्हान के अपने सबसे सुरक्षित ठिकाने से मनोहरपुर से पांच बार की विधायक और राबड़ी सरकार से लेकर हेमंत सरकार में मंत्री रहे जोबा मांझी को मैदान में उतारा है.और इसके बाद पश्चिमी सिंहभूम लोकसभा में गीता कोड़ा और जोबा मांझी के बीच सियासी जंग की शुरुआत हो चुकी है, इस बीच गीता कोड़ा ने अपनी हत्या की साजिश की आशंका व्यक्त कर इस सियासी लड़ाई को और भी सुर्खियों में ला दिया है, जबकि दूसरी ओर जीत का ताल ठोकती जोबा मांझी के विरोध में झामुमो का ही एक धड़ा खड़ा होता दिखलायी पड़ने लगा है. इस धड़े का मानना है कि यदि हो जनजाति से आने वाली गीता कोड़ा को सामने संताल समाज से आने वाली जोबा मांझी को सामने कर झामुमो एक सियासी भूल कर रही है, और उसे इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है. झामुमो के कुछ कार्यकर्ताओं ने सीएम चंपाई से मुलाकात कर प्रत्याशी बदलने की मांग की है, ठीक इसके बाद जोबा मांझी होटवार जेल में पूर्व सीएम हेमंत से मुलाकात करने पहुंची और उसके बाद यह दावा किया गया कि हर चुनाव में किसी ना किसी के विरोध की खबर सामने आती है, यह सब कुछ सामान्य प्रक्रिया है, हालांकि जेएमएम के कुछ कार्यकर्ताओं ने अपनी राय से पार्टी को जरुर अवगत करवाया है, लेकिन सियासी मैदान में जेएमएम का हर एक कार्यकर्ता जोबा मांझी की जीत के लिए अपना खून-पसीना बहायेगा.
जेएमएम कार्यकर्ताओं में नाराजगी या हो जनजाति में भी गुस्सा
लेकिन यहां सवाल यह खड़ा होता है कि क्या यह नाराजगी सिर्फ चंद झामुमो कार्यकर्ताओं के बीच ही है या फिर झामुमो का आधार वोटर रहे हो समाज के बीच भी यह नाराजगी पसर रही है. क्या झामुमो कार्यकर्ताओं की नाराजगी के साथ ही हो समाज की नाराजगी भी दूर जायेगी, या फिर इसका नुकसान झामुमो को उठाना पड़ सकता है. और यदि यह नाराजगी वास्तव में जमीन पर दिखलायी दे रही है तो झामुमो जोबा मांझी की उम्मीदवारी को वापस लेकर किसी और चेहरे पर दांव लगाने से परहेज क्यों कर रही है? या फिर अभी झामुमो के अंदर इस विरोध या आक्रोश की तीव्रता का आकलन किया जा रहा है, और यदि यह आक्रोश एक सीमा से आगे बढ़ता नजर आया तो जोबा की उम्मीदवारी पर विचार भी किया जा सकता है.
सीएम चंपाई के साथ ही पूर्व सीएम हेमंत की पसंद जोबा
यहां ध्यान रहे कि जोबा मांझी की उम्मीदवारी को आगे करने में पूर्व सीएम हेमंत के साथ ही वर्तमान सीएम चंपाई की पसंद बतायी जा रही है, दावा किया जा रहा है कि जोबा मांझी खुद सीएम चंपाई की पसंद थें, जिस पर पूर्व सीएम हेमंत ने मुहर लगायी थी, और यदि जोबा सीएम चंपाई की पसंद है, तो फिर जोबा की राह में कांटा बोने की तैयारी कहां से की जा रही है.
सीएम चंपाई के लिए जोबा की जीत प्रतिष्ठा का सवाल है
हालांकि इस बीच मोर्चे पर खुद सीएम चंपाई तैनात होते दिख रहे हैं, सीएम चंपाई का तीन दिनों तक अपने विधान सभा में डेरा डालना जोबा की राह को आसान बनाने की कवायद मानी जा रही है. ध्यान रहे कि पश्चिमी सिंहभूम की कुल छह विधान सभा क्षेत्रों में से सरायकेला से खुद चंपई सोरन, चाईबासा से दीपक बिरुआ, मझगांव से निरल पूर्ति, मनोहरपुर से जोबा मांझी और चक्रधरपुर से सुखराम उरांव झामुमो विधायक है, इस प्रकार सीएम चंपाई का विधान सभा भी इसी पश्चिमी सिंहभूम के अंतर्गत आता है, इस नाते यह उनकी भी प्रतिष्ठा का विषय है, और शायद इसी कारण से सीएम चंपाई सारे अपनी व्यस्तता के बीच भी तीन दिनों तक अपने विधान सभा में डेरा डाले हुए है. लेकिन इसके साथ ही यह सवाल भी खड़ा होता है कि जब छह की छह विधान सभाओं पर झामुमो और कांग्रेस का कब्जा है, उस हालत में सीएम चंपाई को जोबा की राह आसान बनाने के लिए यह मेहनत करनी क्यों पड़ रही है, क्या उनके पास भी जोबा मांझी को लेकर नेगेटिव फीडबैक आ रहा है, जिसके बाद उन्हे खुद ही मोर्चा संभालना पड़ रहा है.
चाईबासा में 61 फीसदी आदिवासी और इसमें 74 फीसदी हो जनजाति की हिस्सेदारी
यहां याद रहे कि चाईबासा लोकसभा सीट में आदिवासी समुदाय की आबादी करीबन 61 फीसदी है, इसमें करीबन 74 फीसदी आबादी हो जनजाति की है. जोबा की परेशानी यहीं से शुरु होती है, जबकि उनके सामने ताल ठोक रही गीता कोड़ा हो जनजाति से आती है. इस हालत में यह सवाल खड़ा होता कि क्या जोबा मांझी पर दांव लगाकर झामुमो ने एक सियासी भूल कर दी. क्या झामुमो का किला होने के बावजूद हो जनजाति के बीच गीता कोड़ा का जादू बोलेगा, यहां यह भी याद रहे कि जगन्नाथपुर विधान सभा में मधु कोड़ा का मजबूत जनाधार है. वह मजबूत टक्कर दे सकने की स्थिति में है, लेकिन गीता कोड़ा की जीत इस बात पर निर्भर करती है कि दूसरे विधान सभाओं की तस्वीर क्या बनती है. हो जनजाति की बहुसंख्यक आबादी किसके साथ खड़ी होती है.और यदि हो जनजाति बीच गीता कोड़ा के पक्ष में लामबंदी होती है, तो झामुमो को इसका नुकसान भी उठाना पड़ सकता है.
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