Ranchi-भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के अवसर पर पीएम मोदी का खूंटी आगमन को लेकर प्रदेश भाजपा की पूरी टीम दिन रात लगी हुई है, कार्यकर्ताओं और नेताओं की इस टीम का एक एक बारीकियों पर नजर है, व्यवस्था को दुरुस्त करने का निर्देश दिया जा रहा है. अब तक की मिली जानकारी के अनुसार पीएम मोदी बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण के बाद एक आम सभा को भी संबोधित करेंगे. उनके साथ केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी मौजूद रहेंगे. इस अवसर पर पीएम मोदी के द्वारा विकसित भारत संकल्प यात्रा को हरि झंडी और पीवीजीटी मिशन की शॉर्ट फिल्म और पोर्टल को भी लांच किया जायेगा. इसके साथ ही कई दूसरे योजनाओं का शिलान्यास किये जाने की भी योजना है. इस बीच प्रदेश भाजपा संगठन महामंत्री कर्मवीर सिंह ने यह दावा किया है कि भारत में हर सौ वर्ष के बाद किसी ना किसी महापुरुष के अवतरण की परंपरा रही है, स्वामी विवेकानंद और सुभाष चंद्र बोस के बाद प्रधानमंत्री मोदी इसी एक अगली कड़ी हैं, आज भारत ही नहीं पूरा देश उनकी ओर आशा भरी नजरों से देख रहा है.
पीएम मोदी के आगवन के पहले विरोध की तैयारी शुरु
इधर पीएम मोदी के आगवन के पहले ही झारखंड में आदिवासी समाज के द्वारा विरोध की तैयारियां भी शुरु हो गयी है, मणिपुर में आदिवासी महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार और निवस्त्र किये जाने को लेकर आदिवासी समाज का गुस्सा आज भी कम नहीं हुआ है, और आदिवासी संगठनों का दावा है कि वह पीएम की इस यात्रा के दौरान विरोध प्रदर्शन कर आदिवासी समाज के गुस्से को अभिव्यक्त करेंगे. दूसरी ओर पूर्व भाजपा सांसद सालखन मुर्मू के द्वारा सरना धर्म कोड के मुद्दे पर बवाल काटने की तैयारी शुरु हो चुकी है. आज राजधानी रांची के मोरहाबादी मैदान में सरना धर्म कोड को लेकर आदिवासियों का महाजुटान किया जा रहा है. पूर्व भाजपा सांसद सालखन मुर्मू के नेतृत्व में आयोजित इस महाजुटान में ना सिर्फ झारखंड के आदिवासियों का जुटान हो रहा है, बल्कि आसाम, अरुणाचल प्रदेश, ओड़िशा, छत्तीसगढ़ से लेकर मध्यप्रदेश से भी आदिवासी समाज के लोग जुट रहे हैं. आदिवासी सेंगेल अभियान के संयोजक और पूर्व भाजपा सांसद सालखन मुर्मू का दावा है कि सरना धर्म कोड आदिवासियों के लिए धार्मिक स्वतंत्रता का सवाल है, आजादी के 75 वर्षों के बाद भी आदिवासी समुदाय को उसकी धार्मिक स्वंतत्रता के वंचित रखा जा रहा है, आदिवासियों को एक साजिश के तहत हिन्दू खांचे में फिट करने की कोशिश की जा रही है. जबकि आदिवासी कहीं से भी हिन्दू नहीं है. उनकी अपनी सभ्यता, संस्कृति और स्वतंत्र पहचान है, और इसका प्रतीक है सरना. यही कारण है कि आदिवासी समुदाय आज एक स्वर से सरना धर्म कोड की मांग कर रहा है, लेकिन हमारे ही बीच के कुछ सत्ता के दलालों के द्वारा आदिवासी समुदाय को दिगभ्रमित करने की कोशिश की जा रही है, कभी उन्हे सनातनी तो कभी कुछ और बताया जा रहा है.
हिन्दू राष्ट्र की मांग जायज तो आदिवासी राष्ट्र की मांग गलत कैसे
भाजपा पर कटाक्ष करते हुए सालखन मुर्मू कहते हैं कि जब इस देश में कुछ लोगों के द्वारा हिन्दू राष्ट्र के निर्माण के दावे किये जा रहे हैं. दूसरी ओर चंद लोग इस्लामी और ईसाई राष्ट्र का सपना पाल रहे हैं, इस हालत में आदिवासी समाज को भी आदिवासी राष्ट्र की मांग का हक तो हैं ही, हमारी मांग गलत कैसे हो सकती है. हम इस महाजुटान के माध्यम से इस देश के छह करोड़ आदिवासियों के धार्मिक सामाजिक मुक्ति के लिए रोड मैप तैयार करने का काम करेंगे. सरना धर्म कोड का विरोध करने वालों को चेतावनी देते हुए सांसद सालखन मुर्मू ने कहा कि अब सांत्वाना और आश्वासनों का दौर समाप्त हो चुका है, यदि हमारी बात नहीं मानी गयी, हमें सरना धर्मकोड प्रदान नहीं किया गया, जनगणना में हमारी संख्या को अलग से नहीं लिखा गया तो अब भीषण युद्ध की शुरुआत होगी. यहां हम बता दें कि राज्य की हेमंत सरकार ने 11 नवंबर 2020 को ही सरना धर्म कोड बिल को विधान सभा से पारित कर केन्द्र को भेज चुकी है. इसके साथ ही सीएम हेमंत ने पीएम मोदी को विशेष रुप से पत्र लिख कर भी आदिवासी समाज की इस मांग को स्वीकार करने का आग्रह किया है, बताया जाता है कि 2011 के जनगणना में झारखंड में 40.75 लाख और देशभर में कुल छह करोड़ लोगों ने सरना धर्म को अपना धर्म बताया है.
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