Ranchi-लम्बे अर्से से पार्टी की सांगठनिक गतिविधियों से दूरी बनाती रही पश्चिमी सिंहभूम की सांसद गीता कोड़ा ने अपनी नाराजगी की तमाम खबरों को खारिज करते हुए इस बात का दावा किया है कि वह कांग्रेस में हैं, और कांग्रेस में ही रहने वाली हैं. इसके पहले उनके बारे में कांग्रेस का साथ छोड़ कर कमल की सवारी करने का दावा किया जा रहा था. इस अफवाह को इस बात से भी बल मिल रहा था कि कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडेय की कई बार की कोशिश के बाद भी गीता कोड़ा कांग्रेस के किसी कार्यक्रम में हिस्सा नहीं ले रही थी. साथ ही कार्यकारी अध्यक्ष के रुप में उन्हे जिन जिलों का प्रभार सौंपा गया था, उन तमाम जिलों में भी उनकी सक्रियता नहीं दिख रही थी.
कोल्हान का किला ध्वस्त करना बाबूलाल का सपना
इस बीच कई मीडिया चैनलों और सियासी जानकारों के द्वारा दावा किया जाना लगा कि गीता कोड़ा ऑपरेशन बाबूलाल की शिकार हो चुकी हैं. भाजपा की कमान संभालते ही बाबूलाल झामुमो का सबसे मजबूत किला के रुप में सामने आये कोल्हान को ध्वस्त करने के लिए कोड़ा फेमिली को कमल का पट्टा पहनाने का हसरत पाले हैं, और गीता कोड़ा की पार्टी कार्यक्रमों से दूरी की मुख्य वजह यही है.
हालांकि उस समय भी कोल्हान की जमीनी हकीकत को सामने रखते हुए कई जानकारों ने यह दावा किया था कि गीता कोड़ा के लिए कमल की सवारी करना तो बेहद आसान है, लेकिन उस कमल की सवारी से लोकसभा की दहलीज पर पहुंचना एक टेढ़ी खीर है. और इस दावे के लिए कोल्हान में झामुमो की मजबूत पकड़ को आधार बताया गया था.
दरअसल कोल्हान की छह विधान सभाओं में से आज के दिन पांच पर झामुमो और एक पर कांग्रेस का कब्जा है, कोल्हान की धरती से कमल पूरी तरह से नदारद है. सरायकेला विधान सभा से चंपई सोरन, चाईबासा से दीपक बिरुआ, मझगांव से निरल पूर्ति, मनोहरपुर से जोबा मांझी और चक्रधरपुर से सुखराम उरांव झाममो का झंडा बुलंद किये हुए हैं. जबकि जगन्नाथपुर से कांग्रेस का इकलौता विधायक सोना राम सिंकु का कब्जा है. यह वही जगन्नाथपुर विधान सभा है. जहां से मधु कोड़ा ने अपनी राजनीति की शुरुआत की थी और भाजपा होते हुए निर्दलीय के रुप में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे थें. खुद मधु कोड़ा यहां से दो दो बार और उनकी पत्नी गीता कोड़ा दो दो बार विधायक रह चुकी है. कहा जा सकता है कि जगन्नाथपुर कोड़ा फैमिली का मजबूत किला है. लेकिन सवाल यह है कि क्या जगन्नाथपुर विधान सभा पर पकड़ से भी मधु कोड़ा पश्चिमी सिंहभूम लोकसभा सभा सीट पर जीत का परचम फहरा सकते हैं.
समय रहते खतरे को भांप गयी गीता कोड़ा
जानकारों का मानना था कि भाजपा की सवारी करते ही कोड़ा फैमिली के लिए यह सपना चूर चूर हो जाता, और दावा किया जाता है कि इसी खतरे को भांप कर गीता कोड़ा ने बाबूलाल के उस ऑफर को खारिज करने में ही अपनी सियासी बुद्धिमानी मानी.
लेकिन एक दूसरा दावा यह भी किया जा रहा है कि गीता कोड़ा को इस बात की आशंका थी कि इस बार झामुमो इस सीट से खुद ही प्रत्याशी उतारने की तैयारी में है, उसके कार्यकर्ताओं और तमाम विधायकों का आरोप है कि गीता कोड़ा झामुमो कार्यकर्ताओं को भाव देती नजर नहीं आती है, इसके विपरीत वह विरोधी खेमे के कार्यकर्ताओं को ज्यादा प्रश्रय देती नजर आती है, जिसके कारण विधायकों के साथ ही कार्यकर्ताओं में भी नाराजगी फैल रही है, और जिसके बाद यह आकलन किया जाने लगा कि इस बार झामुमो इस सीट को अपने पाले में रख कर कांग्रेस को जमशेदपुर की सीट दे सकती है, जहां से अजय कुमार के रुप में कांग्रेस के पास एक मजबूत उम्मीदवार है.
झामुमो की इस तैयारी से कोड़ा फैमिली में थी बेचैनी
झामुमो के इस रणनीति की खबर जैसे ही गीता कोड़ा को लगी, कोड़ा परिवार के द्वारा अपना सियासी गणित बैठाया जाने लगा और जैसी ही बाबूलाल को इस उहापोह की खबर मिली, उन्होंने अपना पासा फेंक दिया. लेकिन मुश्किल यही थी कि कमल की सवारी तो आसान है, लेकिन उसके बाद की जीत पर सशंय है. इस बीच खबर यह आ रही है कि कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडेय ने गीता कोड़ा को आश्वस्त किया है कि उनके सामने कोई भी सियासी संकट नहीं आने वाला है, उनकी सीट सुरक्षित है, गीता कोड़ा ही कांग्रेस की यहां से उम्मीदवार होगी. जिसके बाद कोड़ा फैमिली ने फिलहाल इस यात्रा को टाल दिया. और खुद को खांटी कांग्रेसी बता इन सारे कयासों पर विराम लगा दिया. लेकिन राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता, आने वाले दिन में झामुमो का क्या स्टैंड होता है, क्या वह यह सीट कांग्रेस को देने को तैयार होगी, आज भी इस पर संशय बरकरार है.
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