दलित-आदिवासियों को 50 साल की उम्र में वृद्धा पेंशन: जानिये इस एक फैसले के बाद झारखंड की तिजोरी पर कितने सौ करोड़ का पड़ने वाला है दवाब

यही काम तो भाजपा पांच किलो राशन का जुगाड़ कर कर रही है, और यदि भाजपा का वह कदम गरीबों के उत्थान का हिस्सा है, तो हेमंत सोरेन की यह कोशिश चुनावी पहल कैसे हो गयी? हालांकि  यदि हम झामुमो की पूरी सियासत को समझने की कोशिश करें तो वह दलित पिछड़ों के साथ ही आदिवासी समाज को एक साथ खड़ा कर एक बड़ा वोट बैंक बनाने की तैयारी में है. सरना धर्म कोड, 1932 का खतियान, पिछड़ों का आरक्षण विस्तार और अब सामाजिक सुरक्षा का बढ़ता यह दायरा उसी दिशा में उठाया गया कदम है.   

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