पटना(PATNA)- जातीय जनगणना का आंकड़ा सामने आते ही बिहार में दावे प्रति दावों की बहार आयी हुई है. एक तरफ भाजपा जातीय जनगणना के आंकड़ों को महज भ्रम फैलाने की चाल मान रही है. जनगणना का आंकड़ा सामने आते ही भाजपा सांसद गिरिराज सिंह जदयू राजद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. उनका सवाल है कि इस आंकड़े को सामने रख कर सरकार हासिल क्या करना चाहती है, जबकि पूर्व कानून मंत्री और भाजपा सांसद रविशंकर प्रसाद बिहार-यूपी की राजनीति में मुलायम सिंह यादव और लालू परिवार की भूमिका पर सवाल खड़े कर रहे हैं. उनका आरोप है कि पिछड़ों की सियासी मलाई इन दो घरानों के द्वारा ही खाया जाता है, बाकि पिछड़ों का तो बूरा हाल है.
मुलायम और लालू परिवार खाता रहा है पिछड़ों का हक
क्या यूपी की राजनीति में अखिलेश यादव किसी दूसरे यादव या पिछड़े चेहरे को स्थापित होने देंगे या लालू परिवार किसी दूसरे पिछड़े के लिए राह आसान बनायेगा. जबकि खुद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी के द्वारा आर्थिक सामाजिक सर्वेक्षण को सामने लाने की मांग की जा रही है. इन तमाम नेताओं के द्वारा यह आशंका जाहिर की जा रही है कि इन आंकड़ों के बाद बिहार की सियासत में जातिवाद का जोर चलेगा. जातिवादी जहर से पूरा समाज बर्बादी के कगार पर खड़ा हो जायेगा. क्या इन आंकड़ों के जारी होने के बाद हर सामाजिक-राजनीतिक सवाल को जातिवादी चश्में से देखने की कोशिश नहीं की जायेगी.
वहीं जदयू राजद का दावा है कि जातीय जनगणना को जारी कर बिहार ने देश को राह दिखला दिया है, हमने 2024 का एजेंडा सेट कर दिया है. बिहार सरकार के नक्शेकदम पर चलते हुए केन्द्र की मोदी सरकार भी पूरे देश में जातीय जनगणना करवाने की घोषणा करे.
कर्पूरी-वीपी के बाद देश को मिला सबसे बड़ा पिछड़ा चेहरा
जदयू नेता केसी त्यागी ने जातीय जनगणना को नीतीश कुमार का मास्टर स्ट्रोक बताते हुए कहा कि पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर और वीपी सिंह के बाद आज देश को नीतीश कुमार के रुप में सबसे बड़ा पिछड़ा नेता मिला है. नीतीश कुमार के रहते अब कोई पिछड़ों और अतिपिछड़ों का हकमारी नहीं कर सकता है. अब हम पूरे देश में जातीय जनगणना का अलख जगायेंगे और देश को पिछड़ों और अतिपिछड़ों को एकजुट करने का काम करेंगे.
भाजपा के लिए खतरे का अलर्ट, बदलनी होगी टिकट वितरण की रणनीति
साफ है कि जहां भाजपा जातीय जनगणना के आंकड़ों को भ्रम फैलाने की जाल बता कर नकारने की मुहिम में जुटी गयी है, वहीं जदयू राजद के हाथ में भाजपा के हिन्दुत्व की काट में पिछड़ा कार्ड हाथ लग चुका है. जिसकी अनुगूंज 2024 को लोकसभा चुनाव में सुनाई पड़नी तय है. हालांकि इसका एक दवाब खुद जदयू राजद की सियासत पर भी पड़ना तय है, टिकट बंटवारे के वक्त यदि जनसंख्या के हिसाब से भागीदारी नहीं मिली, अति पिछड़ों और दूसरी वंचित जातियों को हिस्सेदारी नहीं मिली तो उनकी नाराजगी सामने आ सकती है. साफ है आने वाले दिनों में बिहार विधान सभा की एक दूसरी सामाजिक तस्वीर भी सामने आ सकती है, और सिर्फ राजद-जदयू ही क्यों खुद भाजपा को भी बदली परिस्थितियों में टिकट वितरण में काफी चौकस रहना होगा, थोड़ी सी भी चुक भी भाजपा का पूरा खेल बिगाड़ सकती है.
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