Ranchi-31 जनवरी से शुरु हुआ झारखंड का सियासी ड्रामा आज खत्म होने के कगार पर है. राजभवन में एक सादे समारोह में दिन के 12.15 बजे विधायक दल के नवनिर्वाचित नेता चंपई सोरेन को शपथ ग्रहण करवाने का आमंत्रण पत्र मिल चुका है, इस प्रकार पिछले पिछले दो दिनों से जारी सियासी उहापोह और भ्रम की स्थिति पर विराम लगता नजर आने लगा है. लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि पिछले दो दिनों से यह सियासी ड्रामा क्यों होता रहा? झामुमो को अपने विधायकों को राजधानी रांची से दूर हैदराबाद शिफ्ट क्यों करना पड़ा? क्या महज एक पॉलिटिकल ड्रामा था या नई सरकार में विध्न बाधाओं को दूर करने की झामुमो की सियासी रणनीति, क्या वाकई उसके विधायकों को खरीद फरोख्त करने की कोशिश की जा रही थी, और क्या वाकई झामुमो को अपने कुछ विधायकों की निष्ठा पर संदेह था, और यदि झामुमो को उनकी निष्ठा पर संदेह था और है, तो इसका उपचार क्या है? क्योंकि जब तक कोई अपनी बोली लगाने को तैयार नहीं होगा, उसके जमीर को खरीदने की हिमाकत कौन कर सकता है, या फिर खरीद की राशि या ऑफर का आंकड़ा इतना बड़ा था कि अच्छे अच्छों की जमीर डोलती नजर आ रही थी.
विधायकों की एकजूटता पर कोई संदेह नहीं
झामुमो सूत्रों का दावा है कि उनको अपने विधायकों की एकजूटता पर कोई संदेह नहीं था. उनकी निष्ठा पर कोई प्रश्न नहीं था. लेकिन कई मीडिया हाउस और कुछ विपक्षी नेताओं के द्वारा इस तरह के दावे परोसे गयें कि वाकई कुछ विधायकों की निष्ठा डोल रही है, एक भाजपा सांसद ने तो इस बात का दावा भी कर दिया कि विधायकों के फोन बंद है. उनके मोबाइल को पार्टी जब्त कर चुकी है, अब सवाल यह है कि यह खबर उनके हाथ लगी कैसी, यदि इस बात को स्वीकार भी कर लिया जाय कि विधायकों ने अपना मोबाइल स्वीच ऑफ कर दिया था. तो यह जानकारी बाहर कैसी आयी, इसका मतलब तो साफ है कि उस सांसद के हमारे विधायकों से सम्पर्क करने की कोशिश की जा रही है, लगातार विधायकों का मोबाइल स्वीच ऑफ होता देख कर उनकी हसरतों पर पानी फिरता नजर आया और वह इस सियासी बेचैनी में सोशल मीडिया पर अनाप-शनाप दावे करने लगें.
चंडीगढ़ के खेल से सहमी थी झामुमो
इसका मतलब साफ है कि भाजपा के अंदर से हमारे विधायकों को तोड़ने की साजिश की जा रही थी, हालांकि हमारे विधायकों में एकजूटता बनी थी, उनकी सत्ता की व्याकूलता को हालिया चंडीगड़ में मेयर चुनाव में हुए खेल से भी समझा जा सकता है. जहां 16 पार्सदों के बूते पर मेयर पद अपने नाम कर जाती है, और आप और कांग्रेस के पास 19 का आंकड़ा रहने के बावजूद उन्हे सत्ता से बाहर कर दिया जाता है, सवाल संख्या बल का नहीं है, भाजपा किसी भी आंकड़े का साथ सत्ता में जा सकती है, यह कोई मायने नहीं रखता कि उनके पास आंकड़ा है या नहीं, सवाल तो तंत्र का है, और आज वह तंत्र उसके हाथ में है, यह वही तंत्र था, जिसकी कभी साख होती थी, लेकिन बदलते सियासी हालत में आज सारी संस्थाएं अनपी निष्पक्षता खोती नजर आ रही है, और यदि ऐसा नहीं होता तो चंपई सोरेन को दो दिनों का इंतजार नहीं करना पड़ता, दूसरे दिन ही उन्हे शपथ ग्रहण करवा कर सत्ता सौंप दी जाती, लेकिन हम 45 विधायकों के साथ जमीन से आसमान तक उड़ते रहे, लेकिन आखिकार जब हमारे विधायकों ने हैदराबाद का रुख कर लिया तब ही हमें इसका आमंत्रण मिला.
अजीत पवार के शपथ ग्रहण से लग रहा था खतरा
जबकि दूसरी ओर उस अजीत पवार को सूरज निकलने का इंतजार किये बगैर शपथ ग्रहण करवा दिया जाता है, जिसके पास बहुमत का आंकड़ा भी नहीं होता, वह सिर्फ एक कागज पर चंद विधायकों का नाम लेकर आता है, राज्यपाल को वह कागज का टूकड़ा सौंपता हैं. और उसी वक्त शपथ ग्रहण की औपचारिकता पूरी कर दी जाती है, हड़बड़ी इतनी की मीडिया को भी इस शपथ ग्रहण की खबर अजित पवार के सोशल मीडिया एकाउंट से मिलती है, इस सियासी परिवेश में झामुमो को यदि अपने विधायकों को हैदराबाद ले जाना पड़ता है, तो इसमें गुनाह कहां है, यह तो झामुमो की मजबूरी है, पैसे और ताकत के खेल को विफल करने का सियासी रणनीति है.
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